tag:blogger.com,1999:blog-91131270608702680322024-03-06T13:40:27.150+05:30शब्द और अर्थहर शब्द का हमारा आपका अनुभव अलग है . शब्द के अर्थ हमारे अनुभव के अनुसार हमें सुख-दुःख संताप पीड़ा आह्लाद आनंद शांति द्वेष घृणा प्रेम जैसे उदगार देते हैं - शब्द और अर्थ .मेरे अनुभव और अर्थ का विहंगम . मेरे शब्दों का सफर .Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.comBlogger162125tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-75916489170337816452013-08-16T07:30:00.000+05:302015-03-25T17:25:21.453+05:30हम पुरनिया !!
धवल-स्फटिक श्रृंगार केश का
ढीला-ढाला वस्त्र देह का ;
मद्धिम होती तपिश प्रेम की
स्वर-फुहार अतिरिक्त नेह की ;
शांत-स्निग्ध स्पर्श तुम्हारा
सदा रहें दो-दृग जल-धारा ;
मन के वृन्दावन में महा-रास
अब नहीं, रे धनिया !
हम पुरनिया !!
हम सनातन , पोंगापंथी ,
चिर रहे बंधे , कुंठा - ग्रंथि ;
हर बात पै शंका , हर पथ भ्रांति,
विस्मृत-स्मृतियों सी विश्रांति ;
नहीं कभी की कोई Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-40178608794685237592013-07-28T23:06:00.002+05:302013-07-29T10:32:58.819+05:30चौबीस घन्टे
कितने दिनों बाद
बिना किसी डायरी के
बिना शायरी के
बिताया ज़िंदगी का एक दिन !
खोला नहीं घर का मुख्य द्वार
नहीं लिया आज का अखबार
ना ही सुबह से चलाया टी वी
सिर्फ एक अदद फ़ोन, वह भी
घर से बीवी
नहीं , यह भी सिर्फ मेरा ख्याल था
स्वयं से जूझता अदद सवाल था
बिना किसी दैनंदिनी के
बिना किसी कामकाज़ के
बिना मूल या ब्याज़ केAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-88025315688915590392012-10-18T11:54:00.000+05:302012-10-18T11:54:22.957+05:30उत्सव
लो फिर आ गया मौसम
त्यौहारों का
व्यवहारों का
लौटा फिर वृक्षों पर
नये पात और नये फल लिये
खेतों में एक नयी फसल लिये
मौसम हल्की हल्की सर्दी
गुनगुनी गुलाबी धूप का
उपवन उपवन मौसम आया
कौन चितेरा आँक रहा
बादलों की तूलिका से
यौवन के सपनों , मस्ती , अंगड़ाई ,
अलसाई , काम-रूप का !!
उत्सव है , तो जीवन है ,
आशा है , श्रृंगार है ,
कामना है ,
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-83822647174833881252012-09-14T16:14:00.001+05:302012-09-14T16:22:37.669+05:30सरकारी हिन्दी की दूकान
दुकानें दो तरह की होती हैं . एक तो सरकारी राशन की दुकानों जैसी . वहाँ हर तरह का माल मिलता है जैसा वहीं मिल सकता है . राशन का चावल राशन जैसा , राशन की चीनी राशन जैसी , राशन का कपडा भी राशन जैसा . "राशन " खुद एक ब्राण्ड हो जाता है . आप वो चावल ले भी आयें , तो पका नहीं पाएंगे , पका लिया तो खा नहीं पाएंगे . आपको वो पका हुआ चावल उसी दुकान पर लौटा देना होगा . और दुकानदार से सुनना भी होगा - हम तो पहले Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-7786871112633534042012-09-14T15:42:00.000+05:302012-09-14T15:42:37.747+05:30कानों में
अपने शब्द अपने कानों में
आज शरीक़ हुए बेज़बानों में .
फिर दोस्तों की याद आयी ,
बारिशों के मौसम, रमज़ानों में .
मुल्क में आमद अच्छी नहीं ,
पैसे ज़ेब में, न माल दुकानों में .
बारिशों में रुक जाओ ,
लुत्फ़ नहीं
मिलना तुमसे हो जैसे बेगानों में .
तुम्हारी ज़बान बहुत मीठी है
मिशरी सी घोलती है कानों में .
मौसम ने बदल लिया लिबास
बहुत चर्चा है आज दीवानों Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-53457393573329270022012-06-07T10:00:00.000+05:302012-06-07T10:00:59.619+05:30प्रवेश परीक्षा और ब्रांड आईआईटी: गलतफहमी भरपूर
प्रेसीडेंसी कॉलेज अपने स्नातकीय और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले छात्रों के चयन हेतु एक नयी और दुरूह ( कठिन) ,दो चरणों की प्रवेश परीक्षा के लिए योजना बना रहा है . यह हास्यास्पद है, क्योंकि आईआईटी जिन्होंने - एक विशिष्ट प्रवेश परीक्षा की अवधारणा का बीजारोपण किया था - जेईई के माध्यम से - वे स्वयं निकट भविष्य में मजबूती से इसे सरल Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-66046505207231464612012-05-16T18:01:00.001+05:302012-05-16T18:01:06.268+05:30मुखौटा
आदमी के चेहरे पर
लिखा होता है ?
कौन है ?
क्या करता है ?
हर चेहरा मुखौटा
लगता है
हँसी , उदासी
मासूमियत
कुटिलता , लाचारी
इश्कबाज़ी
के अनेक रंगों से सजा
रोता-गाता
चीखता-चिल्लाता
डराता-धमकाता
गरियाता-रिरियाता
कभी
भिखारी की दयनीय सूरत
साधुता की पवित्र मूरत
षड्यंत्र की कुटिल मुस्कराहट
सुन्दरी की Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-89471437705416850832012-05-09T12:15:00.002+05:302012-05-09T15:46:10.791+05:30सोमवार सुबह सवेरे
वर्षों से
सुबह सवेरे
मुँह अँधेरे
ग्रीष्म, वर्षा, शीत
सारे मौसम धरे
साप्ताहिक दिनचर्या का
अभिर्भूत अंग
प्रेरक प्रसंग
घड़ी बजाती गज़र
स्वर लहरी सा फैलता
आरोह संगीत
अलसाए गुस्से से
कुढ़ता बदमिजाज़
गला घोट टीपता
बंद हो जाता साज़
अकाल-मृत्यु प्राप्त
बीच में दम तोड़ देता
अवरोह गीत
रात्रि का चौथा Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-10645661001551266672012-05-03T21:00:00.000+05:302012-05-04T00:04:48.001+05:30महाभारत
"परिस्थितियों में
जो उचित हो वही करो "
"यही तुम्हारा धर्म है "
पाञ्चजन्य के साथ
क्यों किया शंखनाद
उदघोष
क्या थी मंशा ?
शंका - कुशंका के
उचित-अनुचित के
किस तराजू पर
लटका कर चले गये
कांटे की तरह
धरती और आकाश के इन पलड़ों में
मैं कब से लटका हूँ त्रिशंकु जैसा
अपने ही पासंग विवेक पर
और लड़ता हूँ
अपनी ही इच्छाओं और Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-4323094721106121212012-05-02T22:01:00.000+05:302012-05-02T22:01:15.046+05:30तब न कविता अधूरी होगी
शब्द सिक्कों की तरह
दिमाग में खन-खन बजें
आप जेब में हाथ डाल कर
मन-मन गिनें
कुल कितने है ?
कहाँ-कहाँ से बीने हैं ?
इनसे क्या आएगा ?
क्या घर चल पायेगा ?
उधेड़ बुनता हूँ
असमंजस रहता हूँ
जेब में मुट्ठी बाँध रक्खी है
कोई शब्द कहीं छूटा तो नहीं ?
कोई फूटा रस्ता तो नहीं ?
हिसाब में कुछ कम होते हैं
अर्थ उधार पर भी मिलते हैं
बनिया अगर नहीं माना तो ?
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-90379681794479879142012-04-03T12:13:00.000+05:302012-04-03T18:09:22.451+05:30संभवामि युगे-युगे !!
संभवामि -संभवामिसंभावनाएं हैं समय की यही विडम्बनाएं हैं युगे-युगे हर युग में किसी से नहीं मिला क्यों नहीं मिले ?मिलना चाहिए !शब्दों को अर्थ देना चाहिए देखो अर्थ के बिना परसाई जी नहीं रहे शब्द व्यर्थ रहे !पाला-पोसा बड़ा किया काम नहीं आए संभावनाएं !गर्भ का शिशु अभागा ही डिड-नॉट न्यू !अभिमन्यु !किस काल में आ रहा है !घबरा रहा है भविष्य अर्थगर्भित हैपरिपूर्ण है "फ्यूचर इज प्रेग्नेंट विथ पोसीब्लीटीज "Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-35244494608558906192012-04-01T13:20:00.000+05:302012-04-01T13:20:56.765+05:30मैं जानता हूँ
आधा-अधूरा
थोड़ा-ज्यादा
सब कुछ पढ़ा
अक्षरशः
जब भी
अंतराल आया
स्मृति का चिन्ह रख छोड़ा
फिर वहीं से पकड़ा जोड़ा
मेज़ पर पड़ी हुई किताब ने
फिर अचानक क्यों पूछा -
"मुझे पहचानते हो ?"
यही सवाल -
"क्यों बार-बार,
अलमारी में रक्खी किताबें भी पूछने लगी हैं ?"
पंक्ति दर पंक्ति
पृष्ठ दर पृष्ठ
उठाया-पलटा
खंगाला-उलीचा
कोई नहीं Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-77350187111163421582012-03-22T12:24:00.000+05:302012-03-23T09:36:27.310+05:30काश
एकांत में बैठ
मैं तुम्हारे वक्ष से गुज़रती धडकनें देखूँ
तुम मेरी आती-जाती सांसें गिनो
सुनो और बताओ
इस जुगलबंदी से
कोई नया राग उपजा है क्या ?
एक पुरानी किताब में
एक खत मिला है
लिखा है -
"तुम मुझे प्राणों से प्रिय हो
तुम्हारा प्रेम मेरे रोम-रोम में बसा है
तुम्हे याद न किया हो ,
ऐसा शायद ही कोई पल गुजरा है
क्या तुम्हे पता है ?"
किसकी Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-50541031837799655302012-03-14T10:09:00.000+05:302012-03-14T10:09:25.666+05:30जुबान
मैनें जुबान कब खोली है
मौन ही अपनी बोली है
निर्मिमेष नैनों की भाषा
आँखों में कैसी जिज्ञासा
ज़िंदगी छल-प्रपंच-धोखा
दुनिया बच्चों सी भोली है ||
स्वप्न सारे थे अनूठे,
ह्रदय के अभिसार झूठे,
कहीं गिरे , कहीं उठे ,
इससे जुड़े , उससे रूठे,
बुना यही ताना-बाना
झीनी-झीनी झोली है ||
पूर्व में गोला सहसा ,
क्षितिज से झांके कैसा,
नील देह ओढ़े भगवा ,
रात्रि ले अंगडाईAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-29072347625699998832012-03-09T17:42:00.000+05:302012-03-09T17:43:12.527+05:30होली में
हाथों में है आज बरसों बाद फिर गुलाल होली में
मुझे क्यों याद आते हैं तुम्हारे गाल होली में||
बहुत दिनों से नहीं की कोई धमाल होली में
साली याद आती है चलो ससुराल होली में ||
जाने मनचला कर गया क्या मनुहार होली में
बिना रंग के ही हो गई गोरी पूरी लाल होली में ||
चढ़ाई भांग, ठंडाई, और हुआ अब ये हाल होली में
पड़ोसन के घर ना हो जाए कोई बवाल होली में ||
भीगा बदन , चोली, दुपट्टा, , सर, बाल होली में
न Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-83013181908042033032012-02-23T11:30:00.000+05:302012-02-23T11:30:11.846+05:30इतिहास ( सप्तम किश्त : क्रमशः )
व्यापार , फिर व्यापार है
लक्ष्मी है चंचला
कब कहाँ ठहरी है
ये क्या ज्ञान की गठरी है
कुबेर का खज़ाना
कौन सदा महेंद्र है
बदलता केन्द्र है
वक्त का पहिया दौड़ता , चलता
बदलती है धुरी
हारे हुए हाथी, हाथीदांत सामग्री बने
सूत के वस्त्र , ऊनी कालीन
इत्र , विचित्र
काली मिर्च
लौंग , इलायची
मसाले , मसाले
आदि इत्यादि Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-83812530164706307132012-02-22T23:18:00.000+05:302012-02-23T08:19:45.145+05:30इतिहास ( षष्ठ किश्त : क्रमशः )
सिर्फ नहीं बर्फीली हवाओं और हमारे बीच मानों हिमालय जैसे काल के मध्य खड़ा
वैसे हीविन्ध्य -सतपुड़ा दुर्गम , दुष्कर , दुरूह प्रस्तर चोटियाँ एक एक खण्डकाव्य वाल्मिकी रामायण भाषा का एक अरण्य ऋषि अगस्त्य वनाच्छादितसंस्कृति वांग्मय लाँघ न पाया कोई शत्रु, दस्यु , लुटेराशब्द , ध्वनि , ॐकार वयं रक्षामः और बच गए सोमनाथ जाने कितने सोमनाथवयं यक्षामः एक, पद्मनाभ .
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-21761178086012511532012-02-22T23:03:00.000+05:302012-02-22T23:03:02.226+05:30इतिहास ( पंचम किश्त : क्रमशः )
इतिहास फिर क्या है
एक निरंतर यात्रा
कुछ पड़ाव
फिर आये
बाली,जावा,सुमात्रा
दूर-सुदूर से भरा
स्वर्ण अर्जित कोषागार
धन-धान्य व्यापार
तक्षशिला, नालंदा
और करने संचय
ज्ञान-कोष अक्षय
ज्ञानपिपासु व्हेनसांग , फाह्यान
मेगास्थनीज, अलबरूनी
यूनान-मिस्त्र-रोमा
चीनो-अरब-सारा
इतिहास की गोचर पृष्ठभूमि
ले फिरे किम्वदंतियां
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-40882907416018904722012-02-22T00:27:00.001+05:302012-02-22T00:27:30.244+05:30इतिहास ( चतुर्थ किश्त : क्रमशः )
संस्कृत
वेद , ऋचा , श्लोक , उपनिषद
दर्शन , शास्त्रार्थ
एक प्रथा
सिंधु सभ्यता
की लिपी अपठित , अलभ
चित्र सन्मुख
पशुपति – नंदी मुद्रा
अंकित विशेष
देवता शिव सा
स्वरुप महेश
रूद्र महादेव
देवाधिदेव
तीर्थ दुर्गम
कैलाश – मानसरोवर
अट्ठारह ज्योतिर्लिंग
प्राचीन अर्वाचीन देवता
युग बाद आये द्वापर, त्रेता
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-15612328591828003422012-02-21T12:32:00.000+05:302012-02-21T12:32:49.000+05:30इतिहास (तृतीय किश्त : क्रमशः )
रेगिस्तान
रेत का वीरान
कितने इतिहासों की स्मृति
कितने कवलयतियों का श्मशान
ज़िंदगी
रण-बाँकुरा
या कालबेलिया बंजारा
सूरज के सिर पै सवार
दौड़ता घुड़सवार
टापों की पुकार
जिंदगी भागती
रेत की आँधी
सी उड़ चली
कट चली
रेत के सब टीले
बदलते रहे कबीले
बंजारे , बंजारे
किसको पुकारे
आज यहाँ कल वहाँ
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-73533842062120703992012-02-21T00:03:00.001+05:302012-02-22T00:28:50.693+05:30इतिहास - ( द्वितीय किश्त: क्रमशः )
मैदान में बस गए गंगा दोआब भए पंजआब भए यहाँ वहाँ सर्वत्र भागीरथ के साठ सहस्त्र पुरखों की हड्डियों से उर्वरा भर गया सुनहरी बालियों सा सोना खरा खेती-किसानी की तुम्हारे खलिहान भए कोल्हू के बैल भए गाय को माता किए आता किए , जाता किए खता किए, खाता किए घाट नहाए , मंदिर के द्वार रहे गुरु द्वारे मत्था टेका फ़कीर की मज़ार गए गाए कजरी , ठुमरी , चैती , फगवा इन सबसे ऊबे तो डार लिए भगवा बांचन लागे Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-53217918042043621882012-02-17T15:08:00.001+05:302012-02-17T15:10:38.679+05:30प्रेम
देह है
दैहिक है
दहकता है
मस्तिष्क से पैर
शिराओं में तरल
बहता लावा
देह वन में दावानल
देहयष्टि
पोर-पोर अंगारा
एक टुकड़ा
होंठों पै
अब भी दग्ध है
एक टुकड़ा
कनपटी से चिपका
आसपास गालों तक
रोम-रोम
तप्त है
सुर्ख हैं
रक्ताभ कपोल
जिस्म का ज्वार !
बहती है स्वेद की क्षीण धार !!
यह क्या है ह्रदयAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-72669098696405876212012-02-11T19:14:00.002+05:302012-02-13T10:59:26.853+05:30इतिहास -अंतिम किश्त
हम सब मुद्राएँ हैं
चांदी के सिक्के हैं
सोने की अशर्फियाँ हैं
डालर हैं , रूपइया हैं
मार्क हैं , फ्रांक हैं
बुद्ध अब जेन है
जापानी येन है
यात्री ह्वेन्सांग , फाहियान
शाखा महायान , हीनयान
दर्शन अब युआन
विषय भूगोल नहीं
जी पी एस प्रद्दत है
दुनिया कितनी मस्त है
पृथ्वी अब गोल नहीं
गूगल है
आइंस्टाइन , न्यूटन से बड़ा ब्रांड&Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-26479433034082397762012-02-10T12:54:00.000+05:302012-02-10T12:54:26.932+05:30इतिहास (प्रथम किश्त )
इतिहास चर्चा कभी भी कहीं भी इफ़रात से सुकरात से औने -पौने दाम टाईम पास मूँगफलीतोड़ी-फोड़ी, छिलीआड़ी-तिरछी लकीरें विहंगम पटलसबका शगल जैसे चाहो उड़ेल दो रोशनाई वृहत्तर कैनवास सीता की अग्निपरीक्षा राम का वनवास द्रौपदी का चीरहरण सावित्री का व्रत-उपवास दुर्योधन का अट्टहास गांधारी का उपहास अंधा है धृतराष्ट्रअंधा है धृतराष्ट्रन Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9113127060870268032.post-61078153133213902942012-02-10T12:12:00.002+05:302012-02-10T12:13:11.028+05:30प्राक्कथन
मैं न तो समय हूँ , न सत्ता . न मेरे पास दिव्यदृष्टि है , न काल-यंत्र. इतिहास जो भी लिखे , जब भी लिखे , दृष्टी है , कल्पना है , टुकड़ा है , अनुमान है . मधु यामिनी पर खिंचा हुआ एक चित्र . जिसमे उपस्थित युगल के मन में क्या चल रहा है , था , आसपास उपस्थित कोई क्या लिखेगा . और युगल द्वय अगर डायरी दां हों , तो उनका दरयाफ्त अलग होगा , रोज़नामचा अलग होगा , निवेदन अलग होगा , प्रणय अलग होगा . इतिहास द्वैत Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08928212793008107322noreply@blogger.com1