वह नहीं बोलती
खिड़की के पास बैठे
आते जाते लोगों को देखती
टकटकी लगाये
देर तक
बहुत देर तक
बिना हिले डूले
लगातार
घंटो घंटो तक
बस देखती
नहीं बोलती .
मैंने देखा है उसे
सामने वाले मकान की
खिड़की के पास बैठे
वह गली से तीसरा मकान
खिड़की
तीसरी खिड़की
पहली मंजिल की
दूसरी खिड़की के सामने खम्भा है
बिजली का
जिसके तार पर बैठा कबूतर
इधर उधर तार पर खिसकता
दायें बाएं .
मेरी निगाह कभी कभी
उस ओर भी चली जाती
गली से गुजरते हैं सारा सारा दिन
बहुत से लोग
सुबह सुबह
दूध वाला साईकल पर
अखबार वाला
धीरे धीरे
डालता , फेंकता , सरकाता अखबार
घर घर
कभी कभी हाथों में धर देता
गरम गरम खबरें
सब्जी वाला ठेला
आवाज़ लगाता - ' सब्जी - सब्जी ले लो '
सुबह सुबह एक लम्बे बांस में बंधी झाड़ू लिए
बुहारती सड़क
जमा करती बुहारा हुआ कूड़ा
खम्बे के पास
नहीं कोई ख़ास
मर्तबान
बस यूँ ही
एक स्थान जमा करने का
खम्बा
जो सामने वाले घर की
दूसरी खिड़की के सामने था
जहाँ उसका चबूतरा ख़त्म होता है
मैं यह सब देखता हूँ
सोचता हूँ
पर नहीं मालूम
वह क्या सोचती है
वह सिर्फ देखती है
खिड़की के पास बैठे
आते जाते लोगों को देखती
टकटकी लगाये
देर तक
बहुत देर तक
शब्द कभी कभी
चुप रहें तो बहुत बोलते हैं
कुछ लोग बिना बोले
कितना कुछ कह जाते हैं
हमें सारी जिन्दगी याद आते हैं
कविता बिना शब्दों के कैसी होगी ?
सामने वाले मकान की
तीसरी खिड़की
पहली मंजिल की
ओर ताकता हूँ
तीस साल बाद लौटा हूँ
अब वहां कोई नहीं बैठा है