30 सितंबर 2011

यथावत

घड़ी के कमान सी 
चल रही है जिन्दगी 
वक्त कट रहा है 
वक्त में सी रहा है 
खुद को आदमी .
आँखों के आंसुओं से 
उभरी दो लकीरें 
और जिन्दगी का रुख 
नहीं बदला ;
टूट टूट कर बालों ने 
समय के पहले 
बूढा किया और गर्द 
चेहरों पर सिमटी 
और इन सिमटी लकीरों में 
यादों सा पी रहा है 
अपना लहू आदमी .
समस्याओं के घेरे में घूमता पंखे सा 
और हो उठा है ठण्ड की चाहत में गर्म 
आदमी ; अंतरिक्ष में घूमता 
कैद हो गया कमरे में .

सत्य

सत्य का रूप हर दौर में बदला है 
सत्य क्या दुनिया में एक रहा है ?
सत्य है एक सुलगते चूल्हे जैसा  
हर कोई अपनी रोटी सेंक रहा है .
एक झूठ जिसे गर्द ही गर्द मिली 
सत्य के मामले मीनमेख रहा है .
सत्य जैसे एक अछूत गुडिया हो
गाल खींच हर कोई फेंक रहा है .
सत्यवादियों ने ही सत्य को छला
सत्य खुद को शर्म से देख रहा है .
सत्य की जात गिरगिट पी आई है 
सत्य तबसे राजसत्ता की सेज रहा है .  

चंद ख़यालात

किसी को उस मोड़ से दहशत नहीं होती 
जहाँ अब हाथों से ईबादत नहीं होती  .
हर मुलाकात इक  रस्म से ज्यादह नहीं 
कोई जुम्बिश कोई हरकत नहीं होती .
पहले हर चीज को मचलता था दिल 
अब किसी बात को तबियत नहीं होती .
हर चोट पर दर्द होता था जिसे , उसे 
अब जख्मों से भी दिक्कत नहीं होती .
ये दिल जो यहाँ वहां रहने से डरता है   
वर्ना रहने को क्या ईमारत नहीं होती  .
रोज़ का मजमून इक दिन का माजरा नहीं  
इसे रिश्ता कहते हैं ये सोहबत नहीं होती .  

29 सितंबर 2011

मैं कब कब पैसे के बारे में सोचता हूँ

मैं सोचता बहुत कम हूँ 
खासकर पैसे के बारे में 
क्योंकि मेरे पास अब बहुत पैसा है 
पैसा तो है 
पर आसपास आवरण है 
उसके भीतर 
मेरा खोखला आदर्श 
दम्भपूर्ण आत्मविश्वास .
मुझे याद है 
जब मैंने कभी 'चालू चाय ' के लिए 
कहा था
तो एक क्षण ख्याल आया था 
अपनी हैसियत का .
और जब स्पेशल पी गया , शंका के साथ 
अपनी और बेयरे की भूल से 
और चूका नहीं पाया उसकी कीमत 
तब तमाशबीन भीड़ के बीच 
जब 
मेरे झुकने का एहसास मुझे हुआ था 
तब और उसके बाद 
मेरे पेट पर पडी थी घुटनों की टक्कर 
यह मेरे कपड़ों पर थी 
पैसे वाले मालिक की 
और उसके कानूनदार साथी की 
मुझपर और बेयरे पर 
तब मैंने पैसे के बारे में सोचना शुरू कर दिया 
हाँ , बेयरे के बारे में नहीं कह सकता 
वह , अब भी वहीँ है , मेरी होटल में .
मैंने गलती से उच्चशिक्षा में दाखिला लिया 
वैसे तो मन की आग भी नहीं बुझती 
पर तन की भूख के आवरण में मेरा तन 
छटपटाने  लगा था 
उच्चघराने की बहू - बेटियों को देखकर 
उस छटपटाहट  के जख्म मैंने आज भी बो रक्खे हैं 
अपने सीने में 
तब मैंने सोचा ये नारी तो नहीं 
मैं इन्हें नहीं पा सकता 
इनका मापदंड पैसा है 
और मैं आदमी ज्यादा हूँ 
फिलहाल .
तब मैंने औरतों के बारे में 
बंद कर दिया  
और शुरू कर दिया सोचना 
पैसे के बारे में , सिर्फ पैसे के बारे में 
मेरे स्वयं के बिकने की वजह मिल गयी थी मुझे .
वो अब भी वहां महफ़िल जमती है 
पर मैं 
यहीं पर अकेला ठीक हूँ 
मैं बाँटकर पीता जरूर हूँ 
पर जहर नहीं 
और फिर यह मेरा तब का खून है 
जब मैं आदमी था 
मुझे याद है मेरे बाप की ईमानदारी पर हँसे थे ये 
मेरी लेडीज घड़ी पर हँसे थे 
मुझे समय का एहसास हुआ था 
और मैंने सोची थी उन गरीब मन की दयनीयता 
और मैं हँसने वाला था ,
पर उससे पहले कोई हंस दिया था जोर से 
मेरी फटी कॉलर पर 
और फिर मैं स्वयं भी हंस दिया 
अपनी फटी कॉलर पर .
और मैंने अब सोचना शुरू कर दिया 
फिर से पैसों के बारे में . 
अपने लौटने में एक करीब की टेबल पर पड़ा 
बटुआ उठा लिया मैंने और दरवाजे से 
बाहर आकर भी अब मैं लगातार सोच रहा था 
पैसे के बारे में 
अपने बारे में सोचना मैंने बंद कर दिया है 
वैसे भी मैं खोयी हुई चीजों के बारे में 
कम ही सोचता हूँ .
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