मैनें जुबान कब खोली है
मौन ही अपनी बोली है
निर्मिमेष नैनों की भाषा
आँखों में कैसी जिज्ञासा
ज़िंदगी छल-प्रपंच-धोखा
दुनिया बच्चों सी भोली है ||
स्वप्न सारे थे अनूठे,
ह्रदय के अभिसार झूठे,
कहीं गिरे , कहीं उठे ,
इससे जुड़े , उससे रूठे,
बुना यही ताना-बाना
झीनी-झीनी झोली है ||
पूर्व में गोला सहसा ,
क्षितिज से झांके कैसा,
नील देह ओढ़े भगवा ,
रात्रि ले अंगडाई जैसा,
इतना न निहारो प्रिय
तनि कसक चोली है ||
मौन ही अपनी बोली है
निर्मिमेष नैनों की भाषा
आँखों में कैसी जिज्ञासा
ज़िंदगी छल-प्रपंच-धोखा
दुनिया बच्चों सी भोली है ||
स्वप्न सारे थे अनूठे,
ह्रदय के अभिसार झूठे,
कहीं गिरे , कहीं उठे ,
इससे जुड़े , उससे रूठे,
बुना यही ताना-बाना
झीनी-झीनी झोली है ||
पूर्व में गोला सहसा ,
क्षितिज से झांके कैसा,
नील देह ओढ़े भगवा ,
रात्रि ले अंगडाई जैसा,
इतना न निहारो प्रिय
तनि कसक चोली है ||
मैनें जुबान कब खोली है
जवाब देंहटाएंमौन ही अपनी बोली है
aur sab kah bhi diya....
khoob !!
मैनें जुबान कब खोली है
जवाब देंहटाएंमौन ही अपनी बोली है
....बहुत सच..बहुत कुछ कह दिया मौन रहकर..बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...