अपने शब्द अपने कानों में
आज शरीक़ हुए बेज़बानों में .
फिर दोस्तों की याद आयी ,
बारिशों के मौसम, रमज़ानों में .
मुल्क में आमद अच्छी नहीं ,
पैसे ज़ेब में, न माल दुकानों में .
बारिशों में रुक जाओ , लुत्फ़ नहीं
मिलना तुमसे हो जैसे बेगानों में .
तुम्हारी ज़बान बहुत मीठी है
मिशरी सी घोलती है कानों में .
मौसम ने बदल लिया लिबास
बहुत चर्चा है आज दीवानों में .
वो जिनके संस्कार अच्छे हैं ,
गिनते नहीं ऊँचे खानदानों में .
कोयल कूकती है न गाती है ,
हमरी बोली, हमरी ज़बानों में .
आज शरीक़ हुए बेज़बानों में .
फिर दोस्तों की याद आयी ,
बारिशों के मौसम, रमज़ानों में .
मुल्क में आमद अच्छी नहीं ,
पैसे ज़ेब में, न माल दुकानों में .
बारिशों में रुक जाओ , लुत्फ़ नहीं
मिलना तुमसे हो जैसे बेगानों में .
तुम्हारी ज़बान बहुत मीठी है
मिशरी सी घोलती है कानों में .
मौसम ने बदल लिया लिबास
बहुत चर्चा है आज दीवानों में .
वो जिनके संस्कार अच्छे हैं ,
गिनते नहीं ऊँचे खानदानों में .
कोयल कूकती है न गाती है ,
हमरी बोली, हमरी ज़बानों में .
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंमनभावन रचना...
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सादर
अनु