मैंने हमेशा शब्दों को अहमियत दी
अंकों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया
जोड़ना घटाना
अंको का पहाड़ा
गुणा भाग , सबने
मुझे हमेशा पछाड़ा
वो तीन तेरह करता रहा
मैं नौ दो ग्यारह हो गया
अंक में बच्चा
हिसाब में कच्चा
बीजगणित सोचता
कृषि विज्ञान है
और रेखा से कौन अनजान है
शब्द तो सावन भादों
बाग़ बगीचों
बाज़ार ले जाते रहे
हम उँगलियों से जुल्फ सहराते रहे
लोग गिनते गए
हम अलंकार मात्रा और छंद पीते गए
शब्द यहाँ वहां बिखरे थे
उन्हें आँखों में पढ़ा
चेहरे पै गढ़ा
हाथों से थामा
पलकों से जिया
दिल से तलाशा
गढ़नी थी भाषा
अनकहा लिखना था
बिन लिखा पढना था
मौन को नापना था
कितना कुछ बांटना था
शब्द सारथी थे
कल्पना के रथ की लगाम थामे
डटे थे कुरुक्षेत्र में
गिनना था युद्ध के पश्चात
दोनों पक्षों के क्षत विक्षत शरीर
क्रंदन , करुणा, अवसाद
ईश्वर का गणित समझना
हमसे इतर था
या था शून्य या
सूक्ष्म से सूक्ष्म
अनंत से अनंत
हमारी पहुँच से परे
शब्द हमारी जेब में पड़े सिक्के थे
जब चाहा निकाला, खेला , उछाला
असली या खोटा
अर्थ हमारा मितर था
जितना हमारे बाहर था
उतना भीतर था .
मुझे तुम्हारा नाम याद है
तुम्हारा नम्बर - पता नहीं ?
वैसे तुम आदमी हो या मकान हो ?
bahut hi gaharai liye hue.ankon aur shabdon ke saath likhi anoothi rachanaa,badhaai aapko,
जवाब देंहटाएंmere blog main bhi aaiye.
शब्द सारथी थे
जवाब देंहटाएंकल्पना के रथ की लगाम थामे
डटे थे कुरुक्षेत्र में
गिनना था युद्ध के पश्चात
दोनों पक्षों के क्षत विक्षत शरीर
raas per achhi pakad hai saarthi kee
मैंने हमेशा शब्दों को अहमियत दी
जवाब देंहटाएंअंकों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया
जोड़ना घटाना
अंको का पहाड़ा
गुणा भाग , सबने
मुझे हमेशा पछाड़ा
वो तीन तेरह करता रहा
gahan ...samvedansheel rachna ...!!
शब्द हमारी जेब में पड़े सिक्के थे
जवाब देंहटाएंजब चाहा निकाला, खेला , उछाला
असली या खोटा
अर्थ हमारा मितर था
जितना हमारे बाहर था
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..रेखा और सावन भादो को खूब लिखा है :):)
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!