3 अप्रैल 2012

संभवामि युगे-युगे !!

संभवामि -संभवामि
संभावनाएं हैं
समय की यही विडम्बनाएं हैं
युगे-युगे
हर युग में
किसी से नहीं मिला
क्यों नहीं मिले ?
मिलना चाहिए !
शब्दों को अर्थ
देना चाहिए
देखो
अर्थ के बिना
परसाई जी नहीं रहे
शब्द व्यर्थ रहे !
पाला-पोसा
बड़ा किया
काम नहीं आए
संभावनाएं !
गर्भ का शिशु अभागा
ही डिड-नॉट न्यू !
अभिमन्यु !
किस काल में आ रहा है !
घबरा रहा है
भविष्य अर्थगर्भित है
परिपूर्ण है
"फ्यूचर इज प्रेग्नेंट विथ पोसीब्लीटीज "
वायदा
वायदा-कारोबार 

वायदे-का-कारोबार 
"यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत 
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः "
सूचकांक 
ऊपर-नीचे 
नीचे-ऊपर 
शंकु -त्रिशंकु
सूचना का युग
सूचना-क्रांति
सूचना का विस्फोट
अर्थ नहीं चला
शब्दों में था खोट !!
बदलो -बदलो
वक्तव्य बदलो
ज़िल्द बदलो
कलेवर बदलो 

"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय 
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- 
न्यन्यानि संयाति नवानि देही"
बदलने का युग है  समय परिवर्तनशील है
सुबह का वक्तव्य शाम को वापिस लो
जैसा चाहो तोड़-मरोड़ लो
खुद को अष्टावक्र सा बना डालो
अपने आप को बदलो
आईना बदलो
युग बदलो
संभवामि युगे -युगे
हर हर गंगे !
हर हर महादेव !!
क्या क्या हरे 

गंगे-महादेव
हर्रे लगे न फिटकरी 
फिटकरी से याद आया 
कुछ गंगा में भी डाल देवें 
प्रदूषण कुछ कम हो जाए शायद !
संभावनाएं हैं
सतत-प्रयास करो
प्रयत्नशील रहो
चलते रहो
चरैवेति -चरैवेति
क्रांति-क्रांति
सतयुग आ रहा है
बस रिजर्वेशन मिल जाए !!
सम्भावना कितनी है ?
कोई चांस नहीं
कुछ ले-दे के होगा ?
देखना पड़ेगा 
आप इतना रिकुएस्ट किये है
तो कोशिश करेंगे
आखिर मानवता भी कोई चीज है
हम अपनी तरफ से कोई कसर बाकि नहीं रखेंगे
निसाखातिर रहें
आखिर अपने देस के हैं
परदेस में अपना अपने के काम नहीं आएगा
तो कौन आएगा ?
काम तो हो जाएगा न ?
भरोसा रखिए
वो "ऊपर वाला "है न
वो सबकी "खबर " रखता है
उस पर भरोसा रक्खें
(उसको अपने आप पर है न ?, बस !)
साहस नहीं छोडना चाहिए
सम्भावना पूरी है
भरोसा बनाए रखिए
वो भरोसे वाला क्या मुहावरा है -
भरोसे की भैंस पाड़ा .......??

भैंस से
याद आया 

भाई
किसने खाया
चारा ?
भाई -चारा ? , भाई चारे में सब चलता है !!
संभवामि युगे युगे
"हम सब हैं भाई-भाई
ये सरकार कहाँ से आई ?"
यह तो नारा हो गया !!
वाह !!
आप तो कविता लिखने बैठे थे ?
नहीं ?
फिकर नॉट !!
आपका भविष्य अब उज्जवल है
जल्द ही टिकट मिलने की सम्भावना है !!
संभवामि , युगे -युगे !!

इस युग में सब संभव है !!

1 अप्रैल 2012

मैं जानता हूँ

आधा-अधूरा 
थोड़ा-ज्यादा 
सब कुछ पढ़ा  
अक्षरशः
जब भी 
अंतराल आया 
स्मृति का चिन्ह रख छोड़ा 
फिर वहीं से पकड़ा जोड़ा 
मेज़ पर पड़ी हुई किताब ने 
फिर अचानक क्यों पूछा - 
"मुझे पहचानते हो ?"
यही सवाल -
"क्यों बार-बार,
अलमारी में रक्खी किताबें भी पूछने लगी हैं ?"

पंक्ति दर पंक्ति 
पृष्ठ दर पृष्ठ 
उठाया-पलटा  
खंगाला-उलीचा 
कोई नहीं मिला 
फिर कौन बोला 
किसने मौन तोड़ा 
शब्द को अर्थ किसने दिया 
क्या कोई पात्र जीवंत हो गया ?
मैं सहसा कितना डर गया !!
कुछ था जो अन्दर भर गया 
सर से पाँव तक एक सिहरन 
दौड़ गई 
आँखें दरवाज़े तक गईं 
फिर खिड़की के परदे पर जा टिकीं 
और वहाँ से छत पे घुमते पंखे पर 
अगर यह चल रहा है ?
तो मेरे माथे पे पसीना क्यों आ रहा है ?
ज्वर है ?
ये किसकी परछाईं है ?
कौन मेरे सिराहने खड़ा है ?
खुद को चिकुटी काटी
यह कोई स्वप्न नहीं है 
मैं तो जगा हूँ 
अकेला हूँ , अभागा हूँ 
तभी तो किरदारों में पड़ा हूँ 
इन्ही से बातें की हैं 
इन्ही को समझा है 
पात्र-अपात्र 
सखा, भाई , सगे सब यही हैं 
यही रिश्ते-नाते हैं 
यही सखा हैं , प्रेमी हैं 
सुख-दुःख में साथ निभाते हैं 
रोते-हंसाते हैं 
रात-बिरात जागते हैं 
मेरे साथ ही मेज़ पर बैठ 
चाय-नाश्ता होता है 
सिगरेट का छल्ला उड़ता है 
मेरे ही बिस्तर पर 
बेतरतीब पड़ना 
मेरे साथ उठते-बैठते 
मेरी किताबों के किरदार 
कब किताबों से मेरे जेहन में 
घुस गए 
अब मुझसे ही पूछते हैं -
"मुझे पहचानते हो ?"
इस प्रश्न का मैं क्या उत्तर दूँ ?
मैं जानता हूँ ?
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