कविता का शीर्षक हो
या माथे का चुम्बन
विवादास्पद नहीं होना चाहिए
कलियों का रसपान
या सिर्फ छूता हुआ
भ्रमर का अधर-गान
उसके होठों पर कुछ काँपता रह गया
ये पहला मिसरा कितना कुछ कह गया
गर्मियों पर उसके गालों को चूमती दोशीजा धूप सा
जो पत्तों के झुरमुटों से दबे पाँव आ -जा रही थी
मोर पंख से बंद आँखों को सहला रही थी
प्रणय-मिलन की मधुरात स्मृति का जीना चढ़ने लगी
उसके बदन की खुशबू से महकते दुशाले में
लिपटा जिस्म , ठन्डे अलाव में लोबान सा दहक उठा
ओस से नहाई हुई पत्ती
को रश्मिरथी आलिंगन में भर कर
अपनी उस्मा से सराबोर कर ताज़ा कर गया
कुछ सुलगता रह गया
अब तक याद है
कैसा संवाद है
किसने उसे चूमा ?
प्रथम आलिंगन
प्रथम चुम्बन
प्रथम प्रणय
प्रथम निवेदन
प्रथम वागदान
प्रथम अभिसार
प्रथम श्रृंगार
अनुभूति अपरम्पार !!
सब थे अद्वितीय
इसलिए याद रहे
कौन भूला
जिह्वा का कंपन ?
कदाचित अनुभूत जीवन
फिर फिर
गया छला
पर सन्मुख आँखों के
लौट आयी
तिर-तिर
वही बेला
उम्रदराज़ चेहरे की क्योँ कर रहे खिंचाई
मुस्कराहट दबे पाँव आती है
जल्दी लौट जाती है
चेहरे की नहीं लौटी लुनाई
उसने नहीं बोला
आज तुम्हारा चुम्बन तुम्हे लौटाने आया हूँ
मैंने हाथ पकड़ के पूछा -
उस दिन के भी जिस दिन मैंने अमृत पिया था .
तुम्हारे सारे जिस्म को सिर्फ होंठों से छुआ था .
आज
मैं अकेला खड़ा था
जो तुमने जड़ा था
मेरे माथे पर
मेरे होठों पर
सुतवा सजा है
हमारे रिश्ते का
महकता जेवर है
वही कलेवर है
दहकता तेवर है
शरारों में तहबंद रिश्ते
न भर पाए , न रहे रीते
हम रहे खाली
अपने खामखयाली
सपने देखते रहे
और सोचते थे
कितने बसंत आये
कितने बसंत गए
हम पलाश की तरह जले
रेत घड़ी की तरह सरकता रहा
पल-पल जीवन
क्षितिज के पार फैला था सन्नाटा
मैं पागलों की तरह
रहा बडबडाता
वह चुंबन था या चिकोटी ??
अधूरा सपना था
भिनसारे देखा था
टूट गया
टीसता है
जो अब तक जड़ा था
अनगढ़ गढ़ा था
किसने पढ़ा था ??
या माथे का चुम्बन
विवादास्पद नहीं होना चाहिए
कलियों का रसपान
या सिर्फ छूता हुआ
भ्रमर का अधर-गान
उसके होठों पर कुछ काँपता रह गया
ये पहला मिसरा कितना कुछ कह गया
गर्मियों पर उसके गालों को चूमती दोशीजा धूप सा
जो पत्तों के झुरमुटों से दबे पाँव आ -जा रही थी
मोर पंख से बंद आँखों को सहला रही थी
प्रणय-मिलन की मधुरात स्मृति का जीना चढ़ने लगी
उसके बदन की खुशबू से महकते दुशाले में
लिपटा जिस्म , ठन्डे अलाव में लोबान सा दहक उठा
ओस से नहाई हुई पत्ती
को रश्मिरथी आलिंगन में भर कर
अपनी उस्मा से सराबोर कर ताज़ा कर गया
कुछ सुलगता रह गया
अब तक याद है
कैसा संवाद है
किसने उसे चूमा ?
प्रथम आलिंगन
प्रथम चुम्बन
प्रथम प्रणय
प्रथम निवेदन
प्रथम वागदान
प्रथम अभिसार
प्रथम श्रृंगार
अनुभूति अपरम्पार !!
सब थे अद्वितीय
इसलिए याद रहे
कौन भूला
जिह्वा का कंपन ?
कदाचित अनुभूत जीवन
फिर फिर
गया छला
पर सन्मुख आँखों के
लौट आयी
तिर-तिर
वही बेला
उम्रदराज़ चेहरे की क्योँ कर रहे खिंचाई
मुस्कराहट दबे पाँव आती है
जल्दी लौट जाती है
चेहरे की नहीं लौटी लुनाई
उसने नहीं बोला
आज तुम्हारा चुम्बन तुम्हे लौटाने आया हूँ
मैंने हाथ पकड़ के पूछा -
उस दिन के भी जिस दिन मैंने अमृत पिया था .
तुम्हारे सारे जिस्म को सिर्फ होंठों से छुआ था .
आज
मैं अकेला खड़ा था
जो तुमने जड़ा था
मेरे माथे पर
मेरे होठों पर
सुतवा सजा है
हमारे रिश्ते का
महकता जेवर है
वही कलेवर है
दहकता तेवर है
शरारों में तहबंद रिश्ते
न भर पाए , न रहे रीते
हम रहे खाली
अपने खामखयाली
सपने देखते रहे
और सोचते थे
कितने बसंत आये
कितने बसंत गए
हम पलाश की तरह जले
रेत घड़ी की तरह सरकता रहा
पल-पल जीवन
क्षितिज के पार फैला था सन्नाटा
मैं पागलों की तरह
रहा बडबडाता
वह चुंबन था या चिकोटी ??
अधूरा सपना था
भिनसारे देखा था
टूट गया
टीसता है
जो अब तक जड़ा था
अनगढ़ गढ़ा था
किसने पढ़ा था ??
चुम्बन जो बोलता है, हमें तौलता है !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सी बातें भूलने वाली नहीं होती ...
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