एक महोदय डार्विन हुए थे , उन्होंने एक सिद्धांत दिया था , मनुष्य के पूर्वज बन्दर थे . या बंदरों से मनुष्य प्रजाति का विकास हुआ . पर कुछ बुद्धिमान मनुष्य तर्क देते हैं तो फिर अभी जो बन्दर हैं , वो क्या है ? तो कुछ ने मजाक में प्रति-तर्क दिया वो तो कुछ मनुष्य अवनति होकर बन्दर हो गये हैं . मगर सुना है डार्विन के सिद्धांत को चर्च ने अस्वीकार दिया था . काश विज्ञान ने भी त्याग दिया होता . बच्चे बिना प्रयोग के इस विज्ञान-पाठ से तो बच जाते . यह बात किसी उपलब्ध अकाट्य तथ्य पर अवलंबित हैं यह भी कोई नहीं बताता . मुझे व्यक्तिगत तौर से इस बात से कोई परहेज नहीं है . हिंदू हूँ तो किसी पूर्व जन्म में बन्दर भी रहा ही होऊंगा. दिक्कत तो जिन्हें पूर्वजन्म में विश्वास नहीं है , उन्हें है . वैसे इस ज़न्म में भी बड़े बुज़ुर्ग कई बार बन्दर जैसे व्यवहार का उलाहना दे चुके हैं . आप कई लोगों के बारे में मानते हैं की वो मनुष्य-योनि में दरअसल बन्दर हैं ? अब मैं क्या बोलूं ? आप बड़े-बुजुर्ग हैं . आपने दुनिया देखी है . आप मानते है तो कोई वजह होगी .
खैर डार्विन की इस बात पर सारे प्रतिरोध मनुष्य समाज के आये हैं , बन्दर प्रजाति ने विरोध में कोई मोर्चा निकाला हो इस बात का कोई समाचार नहीं आया है . न ही कभी उनके द्वारा बंद , जुलूस , बहिष्कार , हड़ताल , ज्ञापन देने का उल्लेख किसी समाचार पत्र में देखा कभी ? न बन्दरों ने अपने पूर्व पुरुषों के अपमान पर कभी किसी चर्च, मस्जिद , मंदिर पर हमला किया , न कोई किताब जलायी , न किसी के मुंह पर कालिख पोती.
मनुष्य जाति जिसे सभ्यता के उन्नति का इतिहास बखानती है , और प्रगति के नए-नए सोपानों पर अपने चढ़ने का दावा करती है , उसके ठीक विपरीत जिन्हें हम बन्दर कहते हैं वो विरोध में ज्यादा से ज्यादा खींसे निपोर देंगे , थोड़ा उछल-कूद लेंगे . बन्दर आपके सूखते हुए कपड़े उठा ले जाएँगे, या अगर आप ने खिड़की खुली छोड़ दी हो तो आपके घर में घुस कर आटा बिखेर देंगे , और कुछ नहीं कर पाए तो आपकी छत ( गौर किजीये छाती नहीं लिखा ) पर कूद लेंगे जोर जोर से . हमारी आपकी तरह विकास किया होता तो मुंह से गालियों की बौछार करते , इससे भी शांति नहीं मिलती तो लात-घूंसों, लाठियों , छूरों, से मामला सुलझाने की कोशिश करते , और इससे भी बात नहीं बनती तो गोलियों की बौछार करते , और इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सभ्यता से बैठकर झंझट निपटाने के लिए मिसाइलें और परमाणु बम तो है हीँ .
हमारे हिन्दी सिनेमा के हीरो तो पेड़ों पर भले ही न उछलकूद मचाएं , उनके आसपास जरूर उछलकूद मचा लेते हैं . हालीवुड वालों ने जरूर एक सिनेमा बनाया था ,इन्सटिंक्ट, जिसमे एन्थोनी हॉपकिंस के द्वारा गोरिल्लाओं के साथ जंगल में रहने के कुछ दृश्यों द्वारा मनुष्यों और बन्दरों के व्यवहार पर टिपण्णी है .
हमने अंग्रेज़ी भाषा के साहित्य का ज्यादा अध्ययन नहीं किया है . परन्तु हिन्दी भाषा का कुछ सीमित अध्ययन किया है . इसमे बन्दर के हाथ उस्तरा , बन्दर-बाँट , वानर-सेना ,लंगूर से शादी की धमकी या आश्वासन , हूर के साथ लंगूर जैसे मुहावरे या जुमले प्रयोग में लाये जाते हैं . इसमें से प्रथम दो लोकोक्तियाँ तो हमारी शैशवकाल पर ठहरी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को चलाने में काफी सहायक सिद्ध हो रही हैं . और जब तरह-तरह की नयी वानर सेनाएँ लंका के बजाय अयोध्या पर ही चढ़ बैठी हैं , और ये वानर सेनाएँ वैलन्टाइन दिवस , सिनेमा प्रदर्शन , किताब प्रकाशन , चित्रकला प्रदर्शनी , प्रणय-निवेदन में व्यस्त प्रेमी-युगलों के विरुद्ध जो बागोँ में हमारी प्राचीन परंपराओं के अनुरूप वसंत-उत्सव मना रहे होते हैं पर चढ़ाई करती हैं . जो वानर सेना पत्थरों से समुद्र पर पुल बनाने के लिए विख्यात रही है , अब वही वानर सेना पत्थरों के द्वारा समाज के सारे पुलों को तोडने के लिए कुख्यात होती जा रही है .
अंग्रेज़ी भाषा में अलग अलग प्रजाति के बन्दरों के लिए अलग-अलग शब्द उपलब्ध हैं मसलन - चिम्पांजी, गोरिल्ला , मंकी , लेमूर, ओरांगउटान इत्यादि . घबराइए मत ये सब अपनी कान्वेंट में पढ़ने वाली बिटिया के नर्सरी की किताब से लिए हैं . हमारे यहाँ तो हनुमान , सुग्रीव , बाली , मयंद , अंगद रामायण के पात्र हैं और इन नामों को राम के प्रिय के रूप में पूज्य भी माना जाता है , परन्तु रामलीला वालों ने , फिर सिनेमा वालों ने , और फिर दूरदर्शन वालों ने इनकी विचित्र वेशभूषा और श्रृंगार से क्या हासिल किया या करना चाहते थे यह तो वही जाने . वैसे विश्वमोहिनी कथा में विष्णु ने नारद का श्रृंगार करने के लिए वानर-मुख क्यों चुना इसका गूढ़ अर्थ तो आपको कथावाचक ही बता सकते हैं . परन्तु इसका परिणाम यह हुआ की पूरी रामायण की नीवं इस एक चौपाई में मिल जायेगी -
"कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी॥
मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारी। नारि बिरहँ तुम्ह होब दुखारी॥॥"
नारद उवाच - "तुमने मेरा रूप बंदर का बना दिया था, इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। तुमने मेरा बड़ा अहित किया है, इससे तुम भी स्त्री के वियोग में दुःखी होगे "
खैर डार्विन की इस बात पर सारे प्रतिरोध मनुष्य समाज के आये हैं , बन्दर प्रजाति ने विरोध में कोई मोर्चा निकाला हो इस बात का कोई समाचार नहीं आया है . न ही कभी उनके द्वारा बंद , जुलूस , बहिष्कार , हड़ताल , ज्ञापन देने का उल्लेख किसी समाचार पत्र में देखा कभी ? न बन्दरों ने अपने पूर्व पुरुषों के अपमान पर कभी किसी चर्च, मस्जिद , मंदिर पर हमला किया , न कोई किताब जलायी , न किसी के मुंह पर कालिख पोती.
मनुष्य जाति जिसे सभ्यता के उन्नति का इतिहास बखानती है , और प्रगति के नए-नए सोपानों पर अपने चढ़ने का दावा करती है , उसके ठीक विपरीत जिन्हें हम बन्दर कहते हैं वो विरोध में ज्यादा से ज्यादा खींसे निपोर देंगे , थोड़ा उछल-कूद लेंगे . बन्दर आपके सूखते हुए कपड़े उठा ले जाएँगे, या अगर आप ने खिड़की खुली छोड़ दी हो तो आपके घर में घुस कर आटा बिखेर देंगे , और कुछ नहीं कर पाए तो आपकी छत ( गौर किजीये छाती नहीं लिखा ) पर कूद लेंगे जोर जोर से . हमारी आपकी तरह विकास किया होता तो मुंह से गालियों की बौछार करते , इससे भी शांति नहीं मिलती तो लात-घूंसों, लाठियों , छूरों, से मामला सुलझाने की कोशिश करते , और इससे भी बात नहीं बनती तो गोलियों की बौछार करते , और इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सभ्यता से बैठकर झंझट निपटाने के लिए मिसाइलें और परमाणु बम तो है हीँ .
हमारे हिन्दी सिनेमा के हीरो तो पेड़ों पर भले ही न उछलकूद मचाएं , उनके आसपास जरूर उछलकूद मचा लेते हैं . हालीवुड वालों ने जरूर एक सिनेमा बनाया था ,इन्सटिंक्ट, जिसमे एन्थोनी हॉपकिंस के द्वारा गोरिल्लाओं के साथ जंगल में रहने के कुछ दृश्यों द्वारा मनुष्यों और बन्दरों के व्यवहार पर टिपण्णी है .
हमने अंग्रेज़ी भाषा के साहित्य का ज्यादा अध्ययन नहीं किया है . परन्तु हिन्दी भाषा का कुछ सीमित अध्ययन किया है . इसमे बन्दर के हाथ उस्तरा , बन्दर-बाँट , वानर-सेना ,लंगूर से शादी की धमकी या आश्वासन , हूर के साथ लंगूर जैसे मुहावरे या जुमले प्रयोग में लाये जाते हैं . इसमें से प्रथम दो लोकोक्तियाँ तो हमारी शैशवकाल पर ठहरी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को चलाने में काफी सहायक सिद्ध हो रही हैं . और जब तरह-तरह की नयी वानर सेनाएँ लंका के बजाय अयोध्या पर ही चढ़ बैठी हैं , और ये वानर सेनाएँ वैलन्टाइन दिवस , सिनेमा प्रदर्शन , किताब प्रकाशन , चित्रकला प्रदर्शनी , प्रणय-निवेदन में व्यस्त प्रेमी-युगलों के विरुद्ध जो बागोँ में हमारी प्राचीन परंपराओं के अनुरूप वसंत-उत्सव मना रहे होते हैं पर चढ़ाई करती हैं . जो वानर सेना पत्थरों से समुद्र पर पुल बनाने के लिए विख्यात रही है , अब वही वानर सेना पत्थरों के द्वारा समाज के सारे पुलों को तोडने के लिए कुख्यात होती जा रही है .
अंग्रेज़ी भाषा में अलग अलग प्रजाति के बन्दरों के लिए अलग-अलग शब्द उपलब्ध हैं मसलन - चिम्पांजी, गोरिल्ला , मंकी , लेमूर, ओरांगउटान इत्यादि . घबराइए मत ये सब अपनी कान्वेंट में पढ़ने वाली बिटिया के नर्सरी की किताब से लिए हैं . हमारे यहाँ तो हनुमान , सुग्रीव , बाली , मयंद , अंगद रामायण के पात्र हैं और इन नामों को राम के प्रिय के रूप में पूज्य भी माना जाता है , परन्तु रामलीला वालों ने , फिर सिनेमा वालों ने , और फिर दूरदर्शन वालों ने इनकी विचित्र वेशभूषा और श्रृंगार से क्या हासिल किया या करना चाहते थे यह तो वही जाने . वैसे विश्वमोहिनी कथा में विष्णु ने नारद का श्रृंगार करने के लिए वानर-मुख क्यों चुना इसका गूढ़ अर्थ तो आपको कथावाचक ही बता सकते हैं . परन्तु इसका परिणाम यह हुआ की पूरी रामायण की नीवं इस एक चौपाई में मिल जायेगी -
"कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी॥
मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारी। नारि बिरहँ तुम्ह होब दुखारी॥॥"
नारद उवाच - "तुमने मेरा रूप बंदर का बना दिया था, इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। तुमने मेरा बड़ा अहित किया है, इससे तुम भी स्त्री के वियोग में दुःखी होगे "
मुझे लगता है आदिवासियों , जनजातियों की कोटा राजनीति की नीव यहीं पड़ गयी थी जिससे हमारी रामराज्य नीति अभी तक जूझ रही है . आप ठीक कह रहे हैं यह दूर की कौड़ी है . परन्तु मेरा मौलिक विचार है की विष्णु नारद का मजाक नहीं उड़ा रहे थे , बल्कि कपि-रूप ज्ञान स्वरुप है जिसे विश्वमोहिनी माया नहीं छल सकती , वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर के पास ही एक हनुमान मंदिर भी है . मालूम नहीं जो काशी जा कर विश्वनाथ के दर्शन करते हैं , वो ज्ञानवापी स्थित दक्षिणमुखी हनुमान के दर्शन करते हैं या अथवा नहीं .
परन्तु सारे ब्रह्मचारी युवक , ठीक है , ठीक है , ब्रह्मचारी आयु वाले युवक, हनुमान भक्त होते हैं . हर अखाड़े में आपको हनुमान की प्रतिमा या तस्वीर ज़रूर मिल जायेगी . वैसे क्रिकेट की विश्वमोहिनी सूरत में फंसे कितने नारद यह जानते हैं की गुरु हनुमान को द्रोणाचार्य और पद्मश्री दोनों सम्मानों से नवाज़ा गया था . और जिनके आठ शिष्य भी सर्वोच्च खेल सम्मान अर्जुन पुरस्कार प्राप्त हैं . अब अगर गुरु हनुमान ने आपको कोई दाँव नहीं भी सीखाया हो , परन्तु अगर अँधेरे से आपको डर लगता हो तो हनुमान चालीसा का पाठ मुंह-जबानी याद कर लें , रात-बिरात अँधेरे रास्ते से गुजरने में सहायता होगी . लड़की हैं ? तो क्या हुआ ? वैसे भी हमारे पिता के मित्र व्यास जी कहा करते थे देवताओं की पूजा देवियों को और देवियों की पूजा देवताओं को करनी चाहिए .
जिस देश में भरोसा नहीं की ज़रूरत पड़ने पर क़ानून आपकी मदद को आ पायेगा , और आया भी तो हिन्दी सिनेमा की तरह समय पर तो आएगा नहीं , ऐसे में हनुमान जी को आजमाने में क्या हर्ज है ? आप इसे मेरा अंधविश्वास भी कह सकते हैं . विश्वास अंधा है तो क्यों आपत्ति करते हैं , क़ानून अंधा है तो किसी को आपत्ति तो होती नहीं . वह देवी है इसलिए क्या ?
जिस देश में भरोसा नहीं की ज़रूरत पड़ने पर क़ानून आपकी मदद को आ पायेगा , और आया भी तो हिन्दी सिनेमा की तरह समय पर तो आएगा नहीं , ऐसे में हनुमान जी को आजमाने में क्या हर्ज है ? आप इसे मेरा अंधविश्वास भी कह सकते हैं . विश्वास अंधा है तो क्यों आपत्ति करते हैं , क़ानून अंधा है तो किसी को आपत्ति तो होती नहीं . वह देवी है इसलिए क्या ?
अभी भारत ऑस्ट्रेलियाई सरजमी पर है ,बन्दर पुराण बाचने का सही समय आपने चुना ,अब हारने मे व्यथा नहीं होगी !खैर मजाक से परे -
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना की प्रतीक्षा मैं कर रहा था !बिना किसी पूर्वाग्रह के इसे मैं श्रेष्ठ व्यंग्य मानता हूँ ,कृपया जागरण मे प्रकाशित करने की अनुमति दें ,स्वयं संपादिका महोदया का आग्रह है ,मैंने आपसे बिना अनुमति के उन्हें इस रचना का अवलोकनार्थ निवेदन किया था !बाबूजी को भी आपकी रचना अत्यंत अच्छी लगी !आपके मेल की प्रतीक्षा मे !
आपका अनुज !