26 जनवरी 2012

मुंडन

नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन , फिर चूड़ाकर्म या
मुंडन
सोलह सावन , सोलह श्रृंगार  
सोलह संस्कार 
अगर हुआ है आपका गर्भाधान 
जीवन का अभ्युत्थान  
उसके बाद ही शुरू होगा  
विद्यारम्भ
जब कटेंगे केश प्रारब्ध  
और गुरुकुल का दीक्षांत समारोह यानि 
केशान्त
और उसके बाद आपके जीवन भर मुंडने की बारी 
किजीये 
विवाह की तैय्यारी 
हे श्रेष्ठी !!
जब तक न हो जाए 
अन्त्येष्टि!!
जीवन में बाल सिर्फ एक बार मुंडता है 
पर आदमी कई बार गंजा होता है 
कहते हैं 
गंजापन सम्पन्नता की निशानी है
कई आदमी बुढ़ापा आते-आते सम्पन्न हो जाते हैं 
कई औरतें भी 
धीरे- धीरे बराबरी पर आ रहीं हैं 
कौन कहता है गंजापन बीमारी है  ?
कई सम्पन्न नौजवान भी होते हैं 
फिर भी लोग गंजे का मजाक उड़ाते हैं 
कभी कंघी दिखाते हैं 
कभी नाखून उगाते हैं
तिरुपती के भगवान को गंजों नें 
निर्यातक बना दिया 
देश के सबसे अमीरों में गिनती होती है 
गंजों ने देश का कितना विकास किया
हमने अपने नाऊ से पूछा -
"नाऊ -नाऊ कितने बाल ?"
बोला -
"जजमान , अभी सामने आये जाते हैं "
काहे इतराते हैं |
कितने बचे हैं 
आप अब भी बच्चे हैं ?
सीधे-सीधे बैठें .
अगर इधर-उधर लग गया ?
उस्तरे को कोसेंगे .
अब हमारी भी उम्र हो गयी है 
पुरखों की निशानी यही बची है 
बाल-बाल बचा रक्खा है 
लड़का उस्तरा थामने से बिदकता है 
कहता है यहाँ नहीं बैठूँगा 
जावेद-हबीब बनना चाहता है 
अब आप ही बताइए
कहाँ सलीम-जावेद 
कहाँ जावेद-हबीब 
अब तक लोगों को याद है
उनकी लिखी शोले 
इनकी फिल्म कब आयी ? कब गई ?
और क्या बोलें 
मैंने कहा -
क्यों घबराते हो 
तुम्हारा काम सबसे चंगा है 
बड़े-बड़े यहाँ सर नवाते हैं .
बोला - गरीब का मजाक उड़ाते हैं ,
क्या करें धंधा है 
बस एक अफ़सोस रह गया 
हमारी कमाई 
किसी गिनती में नहीं आती 
राष्ट्रीय आय में भी नहीं किया जाता शामिल
यूँ ही बोलते हैं 
देश जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता   
मरता क्या न करता 
उसे समझाना था 
दो-चार बाल बचे थे 
कुछ हफ्ते बाद फिर आना था 
गला खंखारा
थूक निगल लिया 
अगर हिल गया ?
बोला -
भोला , हम सब की है एक ही बिरादरी  
हम भी हैं सरकारी 
हम भी उसकी गिनती में नहीं आते.
भोले ने पकड़ लिया -
फट से उत्तेजित हो के बोला 
"आप लोग तो कुछ काम नहीं करते  
आपकी गिने या न गिने 
पर हम तो रात-दिन मेहनत करते हैं
उस्तरा घिसते हैं 
साबुन लगाते हैं 
गीला करते हैं 
ब्रश घुमाते हैं 
कैंची चलाते हैं
तेल लगाते हैं 
अगल-के , बगल-के
नाक के , कान के .... "
मैंने कहा -" बस 
और आगे नहीं "
रुका भोला
फिर बोला -
" बाल बनाते हैं ,
मूंड पाते हैं 
तब कहीं दो-जून खाते हैं | "
मैंने कहा -
हम को कोसते हो 
हम देश चलाते हैं
तुम इतना सब लगाते हो 
तब मूंड पाते हो 
हम साठ सालों से 
बिना किसी कैंची के काट रहे हैं 
बिना उस्तरे के नाप रहे हैं 
तुम दो-चार की बनाते हो
हम दो-चार सारे देश को मूंड रहे हैं .

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