कितनी ज़द्दोज़हद
बड़ी बड़ी तरकीबें
सबने सजाये सबने उठाये
दूसरों के कंधो पर सलीबें
ईसा के दिखाए मार्ग पर प्रशस्त
सच चल पड़ा बनिस्पत .
सच को बोएँ, उगायें
लाए कुछ विदेशी , कुछ देशी
लाये ज़दीद , अदद नस्लें
जितनी जिसकी खेती
उतनी ज़हद , वैसी फसलें
अब कुछ संकर , जातियाँ-प्रजातियाँ
देशी पतुरिया , गिटपिटाए
माटी लगी बोली , भाषा है उपनिवेश
पच्छिम से आयी आंग्ल
फटाफट पहनावा
फर्राटे से लिपट जावा
मेम के ऐश ही ऐश
छानबीन हुई , जाँच-पड़ताल हुई
एक बार हुई , बार बार कराई
सच का भ्रूण देखा परखा
सच नर है या मादा
नहीं था इरादा
हत्या का
उसका जीना , तिल-तिल मरना
किसने कहा क्रांति है , आगे मकरसंक्रांति है
बुद्धिजीवी संस्कार है
जातिवादी समीकरण है
थोड़ा गणित है , नया व्याकरण है
थोड़ा रूढ़ी है , थोड़ा साम्यवादी है
सिर्फ सांठगाठ है , थोड़ा लेनदेन है
बुद्धि से लक्ष्मी का कब हुआ मेल है
क्योँ बोलो निकम्मा है
समाज का दर्पण है
प्रजातंत्र का चौथा खम्बा है .
सच का बोलबाला है
क्या हुआ , अगर अखबार काला है .
आपने महाभारत पढ़ी है ?
किसे हडबड़ी है
देखो कितने पात्र है
सब आसपास हैं
अपनी अपनी ज़िंदगियों से ऊबे - उकताए
सन्निपात ज्वर में सब बडबड़ाएं
अश्वत्थामा हन्तो , नरो वा कुंजरो वा
क़ानून का पता नहीं
धृतराष्ट्र अंधा था
गांधारी ने बांधी थी पट्टी ?
क्या पता ? नहीं सकता .
किन्तु कुंती को नहीं था दिखता
नहीं मैं आँखों का डॉक्टर नहीं
नहीं द्रौपदी पिज्जा नहीं थी बेटी !!
फिर पाँच लोग कैसे बाँट के खाते
तुमने ठीक ही पूछा
कुंती को नहीं था दिखता
परन्तु लोग बताते हैं
धृतराष्ट्र अंधा था
गांधारी ने बांधी थी पट्टी .
पात्र स्मृतियों में आते हैं , जाते हैं
हम सब गीता उठाते हैं ,
माथे से लगाते हैं
लोग हाथ रखकर कसम खाते हैं
- जो भी कहूँगा , सच कहूँगा , सच के अलावा कुछ नहीं कहूँगा .
तुम झूठ बोलती हो ,
मैं क्योँ हसूँगा ??
महाभारत के पात्र
पॉकेट में पड़ी रेज़गारी हैं ,
आप इसे भगवान के नाम पर चढ़ा दीजिए
किसी भिखारी की तरफ उछाल दीजिए
किसी नदी में डाल दीजिए
किसी इच्छापूर्ति फव्वारे में इस्तेमाल कीजिये
किसी बच्चे के कौतूहल की भर दीजिए अँजुरी
और अगर अंतरात्मा की आवाज़ जो कचोटे
तो चित भी मेरी पट भी मेरी
सिक्का निकालिए
जो खोटा है खरा है
- क्या बडबडा रहा हूँ मैं ??
सच की खोज में लगा हूँ ??
नहीं टाइमपास कर रहा था .
ठीक कहते हैं
इसके लिए आपके पास बेहतर आइडिया है
मुन्ना लगाओ तो -
"राजा दिल मांगे चव्वनी उछाल के "
(नेपथ्य में स्वर : सच की खोज के लिए जाँचआयोग की नियुक्ति की जाती है
रिपोर्ट आने पर सार्वजनिक की जाएगी
सच सामने लाना है , सच को सामने लाएँगे
सच को सामने आना ही होगा
ये हमारा आपसे वादा है
एक ईमानदार, स्वच्छ , और पारदर्शी प्रशासन के लिए हम कटिबद्ध हैं )
वैसे यहाँ प्रासंगिक नहीं है
पर आपकी जानकारी के लिए -
अर्धसत्य के निर्देशक गोविन्द निहलानी थे .
बड़ी बड़ी तरकीबें
सबने सजाये सबने उठाये
दूसरों के कंधो पर सलीबें
ईसा के दिखाए मार्ग पर प्रशस्त
सच चल पड़ा बनिस्पत .
सच को बोएँ, उगायें
लाए कुछ विदेशी , कुछ देशी
लाये ज़दीद , अदद नस्लें
जितनी जिसकी खेती
उतनी ज़हद , वैसी फसलें
अब कुछ संकर , जातियाँ-प्रजातियाँ
देशी पतुरिया , गिटपिटाए
माटी लगी बोली , भाषा है उपनिवेश
पच्छिम से आयी आंग्ल
फटाफट पहनावा
फर्राटे से लिपट जावा
मेम के ऐश ही ऐश
छानबीन हुई , जाँच-पड़ताल हुई
एक बार हुई , बार बार कराई
सच का भ्रूण देखा परखा
सच नर है या मादा
नहीं था इरादा
हत्या का
उसका जीना , तिल-तिल मरना
किसने कहा क्रांति है , आगे मकरसंक्रांति है
बुद्धिजीवी संस्कार है
जातिवादी समीकरण है
थोड़ा गणित है , नया व्याकरण है
थोड़ा रूढ़ी है , थोड़ा साम्यवादी है
सिर्फ सांठगाठ है , थोड़ा लेनदेन है
बुद्धि से लक्ष्मी का कब हुआ मेल है
क्योँ बोलो निकम्मा है
समाज का दर्पण है
प्रजातंत्र का चौथा खम्बा है .
सच का बोलबाला है
क्या हुआ , अगर अखबार काला है .
आपने महाभारत पढ़ी है ?
किसे हडबड़ी है
देखो कितने पात्र है
सब आसपास हैं
अपनी अपनी ज़िंदगियों से ऊबे - उकताए
सन्निपात ज्वर में सब बडबड़ाएं
अश्वत्थामा हन्तो , नरो वा कुंजरो वा
क़ानून का पता नहीं
धृतराष्ट्र अंधा था
गांधारी ने बांधी थी पट्टी ?
क्या पता ? नहीं सकता .
किन्तु कुंती को नहीं था दिखता
नहीं मैं आँखों का डॉक्टर नहीं
नहीं द्रौपदी पिज्जा नहीं थी बेटी !!
फिर पाँच लोग कैसे बाँट के खाते
तुमने ठीक ही पूछा
कुंती को नहीं था दिखता
परन्तु लोग बताते हैं
धृतराष्ट्र अंधा था
गांधारी ने बांधी थी पट्टी .
पात्र स्मृतियों में आते हैं , जाते हैं
हम सब गीता उठाते हैं ,
माथे से लगाते हैं
लोग हाथ रखकर कसम खाते हैं
- जो भी कहूँगा , सच कहूँगा , सच के अलावा कुछ नहीं कहूँगा .
तुम झूठ बोलती हो ,
मैं क्योँ हसूँगा ??
महाभारत के पात्र
पॉकेट में पड़ी रेज़गारी हैं ,
आप इसे भगवान के नाम पर चढ़ा दीजिए
किसी भिखारी की तरफ उछाल दीजिए
किसी नदी में डाल दीजिए
किसी इच्छापूर्ति फव्वारे में इस्तेमाल कीजिये
किसी बच्चे के कौतूहल की भर दीजिए अँजुरी
और अगर अंतरात्मा की आवाज़ जो कचोटे
तो चित भी मेरी पट भी मेरी
सिक्का निकालिए
जो खोटा है खरा है
- क्या बडबडा रहा हूँ मैं ??
सच की खोज में लगा हूँ ??
नहीं टाइमपास कर रहा था .
ठीक कहते हैं
इसके लिए आपके पास बेहतर आइडिया है
मुन्ना लगाओ तो -
"राजा दिल मांगे चव्वनी उछाल के "
(नेपथ्य में स्वर : सच की खोज के लिए जाँचआयोग की नियुक्ति की जाती है
रिपोर्ट आने पर सार्वजनिक की जाएगी
सच सामने लाना है , सच को सामने लाएँगे
सच को सामने आना ही होगा
ये हमारा आपसे वादा है
एक ईमानदार, स्वच्छ , और पारदर्शी प्रशासन के लिए हम कटिबद्ध हैं )
वैसे यहाँ प्रासंगिक नहीं है
पर आपकी जानकारी के लिए -
अर्धसत्य के निर्देशक गोविन्द निहलानी थे .
सच को तलाशती सार्थक अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंसुषमा जी , आपके आगमन का धन्यवाद !
हटाएंVery difficult to search truth...Profound work!
जवाब देंहटाएंThanks Saru! Did I ever tell your name in Gujrati means 'Nice'.
हटाएंआपको लोहड़ी हार्दिक शुभ कामनाएँ।
जवाब देंहटाएं---------------------------------------------------------------
कल 13/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
आपको भी लोहड़ी और संक्रांति की शुभकामनाएँ. आपका आगमन यहाँ हलचल बढ़ा देता है .
हटाएंसच की खोज में लिखी गई आपकी रचना अच्छी लगी ...
जवाब देंहटाएंपसंद आयी , सच की खोज . कृतज्ञ हुआ .
हटाएंएक अच्छे भाव की सफल प्रस्तुति - सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
सच की तलाश में न जाने कितने इतिहास के पन्ने पलट दिए ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसत्य की तलाश कितनी मुश्किल है...बहुत सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं