27 सितंबर 2010

जीवन की आपाधापी


जीवन की आपाधापी में ,

कुछ साथ रहा कुछ छूट गया |

बचपन था कितना भोला था ,

    कुछ खेल था , खिलौना था ,

कुछ अब बस स्मृतियाँ हैं ,

    कुछ बस यादों का कोना था |

कुछ सपना सा , कुछ अपना सा ,

    कुछ साबुत है , कुछ टूट गया ||

जीवन की आपाधापी में

    कुछ साथ रहा कुछ छूट गया ||

यौवन था एक उन्मुक्त ज्वार ,

    टूटे बंधन , खुली बयार ,

कुछ पागलपन , कुछ उन्माद ,

    कुछ खुला –खुला , एकल संवाद |

कुछ बंधा सम्बन्ध जन्मो का

    कोई है , जो रूठ गया ||

जीवन की आपाधापी में

    कुछ साथ रहा , कुछ छूट गया ||

अब गागर उलटें , अब सागर मथ लें ,

    जो रीता था , वो क्या कभी भरा ?

अविनाशी , ये समय सभी का साक्षी है ,

    वो रहा खुशी , या मरा मरा !!

जीवन अमृत या विष का प्याला ,

    फिर दो चार बूंद , या दो घूँट गया ||

जीवन की आपाधापी में

    कुछ साथ रहा कुछ छूट गया ||

आगे एक शिथिल शरीर दो बोझल आँखें

    एक व्याकुल मन , कुछ उखड़ी साँसे ,

पर मन कब बूढा होता है

    वह मिलता है , वह खिलता है |

वह अब भी तुम्हे देख

    उतना ही प्रफुल्लित होता है ||

आह्लाद छुपा था बरसों से ,

    तुमको देखा तो फूट गया ||

जीवन की आपाधापी में

    कुछ पास रहा कुछ छूट गया ||
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