29 जून 2011

'कोटा' का बंकर

कत्लेआम मचाया नादिरशाह ने दिल्ली में
प्यास अभी तक है बाकी खंजर क्या करे ?

अंकतालिका है या घी का विज्ञापन कोई ?
इस देश में कैसे -कैसे मंजर क्या करे .

चक्रव्यूह में चला अभिमन्यु प्रवेश को
पता उसका 'कोटा' का बंकर क्या करे ?

ऋषी मुनियों की तपोभूमि का हश्र है ,
सब भूमी गोपाल की बंजर क्या करे .

है वक्त की पहचान शत नंबर क्या करे
यही फर्क आदमी औ' बंदर क्या करे .


मर्तबान को तल तक चाट गए बिलाव
कौए ले के चोंच में कंकर क्या करे ?



23 जून 2011

सपनो को उग आयें पर

ख़त का जवाब ले आएगा हरकारा
चाहो मीत पुराना जब टूटे एक तारा .


निस दिन चहुँ ओर कोयल कूकेगी
भूला भटका दिख जाये  बादल बंजारा.


पत्ता पत्ता जलतरंग जब झूमे सावन
अम्बर नाचे हाथों में ले इकतारा.


हम नदी में दीप  जलाने  आ गए,
तुम्हारे गाँव जायेगी यह जलधारा .


अक्सर चांदनी रातों में छत पर ,
ढाई अक्षर अपने ढूंढे शहर सारा .

उस कुँए में सिक्का डाल के चाहा ,
सपनो को उग आयें पर , यारा !!




22 जून 2011

बारिशों के मौसम में

हमारे शहर का हाल भीगा भीगा है ,
गीला गीला उसकी आँखों में तारा .

तुम्हारे ख़त के अक्षर धुंधले धुंधले 
मोती का पानी अब उतरा उतरा .

सूरज का नूर छुपा है बादल में, 
अब झांके तब झांके काला-गोरा .

बूढ़े बरगद के नीचे सिमटा जंगल ,
प्लावन में दुबका सहमा हर चेहरा.


कभी गर्मी की लू सताती है उसको,
कभी बारिश में वो बिफरा बिखरा .

घुटने घुटने पानी तेरी गलियों में
कागज  की कश्ती सहरा सहरा .


यादों के बादल जब मन में घुमड़े  ,
गीली लकड़ी , धुआं गहरा गहरा . 


लम्बी भीगी रातों में ऐसा होता है ,
गर्म लिहाफों में रिश्ता ठहरा ठहरा.


जब जवाँ दरिया हो उफान पर ,
टूट जाता हर बांध कतरा-कतरा .



16 जून 2011

ईश्वर है या नहीं

कर रहा हूँ
तलाश ईश्वर की .
उसने स्वर्ग को नकार कहा -
वह है परी - कथा .
नहीं, यह नहीं है मेरी व्यथा .
कुछ ने कहा -


ईश्वर का अस्तित्व नहीं है
मैं नहीं तलाश रहा
ईश्वर को
किसी प्रमाण के लिए .
ना मुझे करनी है प्रार्थना
न चाहिए कोई वर
मुझे उससे कोई शिकायत नहीं करनी
न दूसरों की न अपनी
मैंने चढ़ावे के लिए नहीं रखी है चवन्नी
वो तो मैं लंगड़े भिखारी को दे चुका.


आकार और निराकार का फर्क नहीं देखना , दिखाना
मुझे उसके अवतारों और दूतों का पता नहीं लगाना
मैं किसी सत्य और असत्य के विवाद में नहीं पड़ा
किसी इंसान या शैतान का नहीं झगडा
मैंने किसी गुरु की नहीं लेनी शरण
मुझे नहीं चाहिए धर्मग्रंथों के निर्देशों का प्रमाणीकरण
मैं नहीं किसी लिंग , जाति, देश , भाषा, संस्कृति का प्रचारक
किसी की संस्तुति में लिप्त या वाचक .


मैं तलाश रहा हूँ ईश्वर को
सिर्फ पूछना है -
अगर वह सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी ,अन्तर्यामी है
तो बताये
सृष्टी - जिसकी भी बनाई हो
उसमे कोई और जगह तो है
धरती के अलावा .
जहाँ जाकर रह लेंगे


अज्ञानी , ज्ञानी , विज्ञानी ;
धर्मांध , आस्तिक , नास्तिक ;
नेता , अभिनेता , राजा, प्रजा ;
वैज्ञानिक , कलाकार , ज्योतिष ;
व्यवसायी , उद्योगपति , भूखा , भिखारी ;
कर्महीन , मेहनती , लेखक , कवि;


जिस तरह से रौंदी जा रही है प्रकृति
उजड़ी जा रही है धरा
धुंए में सिसकती हैं सांसे
सुलगते हैं आच्छादित वन
सूखती जा रही हैं नदियाँ , तालाब, जलाशय
विलुप्त हो रही हैं जातियाँ-प्रजातियाँ
पिघलते जा रहे हैं हिमनद
फैलते जा रहे हैं रेगिस्तान
और बढ़ता जा रहा है तापमान


अगर नहीं है ऐसी कोई जगह
तो क्या फर्क पड़ता है
की मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक
ईश्वर है या नहीं
और इस प्रश्न का उत्तर
उसके पास भी है या नहीं
वो मुझे मिले या नहीं !
क्या फर्क पड़ता है ?

15 जून 2011

अबकी बारिशों में

अबकी बारिशों में सराबोर  का मन है 
उसकी यादों से रक्स  मोर का मन है .
कौन खड़ा है बंद दरवाजों  के पीछे ,
तांकता-झांकता किस चोर का मन है .
सुलगा  जिनके चुम्बन से दावानल ,
उन पत्थरों से घटा- घनघोर का मन है .  
समंदर के किनारे  रेत पर  लेटे हुए
तुम्हारे नाम की हिलोर का मन है .
अँधेरी रात कड़कती बिजली से डर के
लिपट जाये सोचता कमजोर का मन है .
अबकी बारिश में दरक  जायेगा ये मंका
तुम्हारे शहर में किसी ठोर का मन है .
इन वादियों में  लेकर तुम्हारा नाम 
खामोशी तोड़ने , कुछ शोर का मन है .
मौसम के दस्तूर बहुत पुराने हैं 
गर्म पकौड़ी - चाय  चटोर का मन है

13 जून 2011

ठगा हुआ

सुबह बहुत ऊमस थी 
दोपहर  तल्ख़ धूप
शाम सराबोर बारीश मुंह चिढ़ा रही विद्रूप 
मौसम के सामने खड़ा ठगा हुआ 
इतना तेजी से क्या बदलना हुआ ?
जब हम तैयार नहीं होते 
हाथों में हथियार नहीं होते 
हाथों से उड़ जाते तोते 
जब कोई परिचित नहीं पहचानता 
अपना - अपना नहीं मानता
तब लगता है ठगा सा 
जैसे कोई दगा सा 
बिना किसी ठौर -ठिकाने के 
आदमी खड़ा होता है ठगा हुआ 
बदले हुए मौसम का फलसफा हुआ 
बहुत बेचारगी सा , वो लम्हा 
कितना दिल-फरेब , कितना तन्हा
किसी घर की खड़खड़ाई साँकल
उधर से आयी आवाज़ "कौन"
"कमलेश  जी घर पर हैं?"
फिर एक लम्बा मौन 
नहीं वो तो नहीं हैं , कुछ कहना था ?
"नहीं यूँ ही , कुछ खास नहीं ,बस मिलना था ,
एक स्वर दबा हुआ ,
शब्द लगता है - ठगा हुआ !!     

3 जून 2011

रात सखा दीवार छिपकली

बहुत दिनों से 
मौसम से बतियाता था
वो बूढा या बच्चा था
उसको हर बात सताती
क्यों फूलों के पंख झडे हैं
और हवा में धूल पसरी है
जुगनू में क्यों आग नहीं है
क्यों आकाश में बदरी है ?
अम्बर अगर बड़ी छतरी है
तो क्यों सर पर धूप चढी है
कलियाँ क्यों ना आँख मिलाती
किससे इतना शर्माती ?
दिन इतनी जल्दी क्यों ढल जाता है
उसको कहाँ की हडबडी है
ध्रूव तारा क्यों वहीं अटका है
पैरों में क्या जंजीर पड़ी है ?
चाँद दुल्हन क्या नई नवेली
जो बादल की ओट हो जाती
जब भी तारों की बारात गुजरती
क्या उनमे है रिश्तेदारी ?
और बदलिया क्या पायल पहने है
जब गुजरे है रुनझुन बाजे है
गुलमोहर क्या दुल्हा है
इतना क्यों हरसिंगार साजे है ?
पत्ते क्यों सब झर जाते हैं
इतन रूखापन क्या अच्छा है
लाल कोपले क्या फबती हैं
जैसे कोई नवजात बच्चा है
और रंगीनी तितली की देखो
सब फूलों पर सो जाती
क्यों तालाब का पानी मैला
मिट्टी इतना क्यों घुलमिल जाती 

कितने सारे फूल खिले हैं
जैसे सजा कोई छैला
सब अपनी में उलझें हैं
गिरगिट भी घिघियाता है
मेंढक अपनी ही टरियाता है
इतनी भीड़ नहीं अच्छी है
तबीयत अपनी घबराती है
जुगनू मेरी कहाँ सुनता है
बस अपनी भिनियाता है .
पंछी घास पर सो जाते
सूखे पत्ते पैरों से रौंदे जाते
आंधियां सब उड़ा कहाँ ले जातीं
उसकी अपनी भी क्या कोई बरसाती ?
गर्मी इतना क्यों सताती ?
नींद रात भर खो जाती
रात सखा दीवार छिपकली 
अब फिसली तब फिसली !

1 जून 2011

ईश्वर का हाथ

बेगानों के बीच
भीड़ में खड़ा अकेला
तब धरा हाथ तुमने काँधे पर
जोर जोर से धडकता दिल शांत हुआ |
जिसे पुकारता था
उस ईश्वर को याद किया
अश्रुपूरित नम आँखों से
जब धरा हाथ तुमने काँधे पर |
बुझते दीये की लौ को हाथों की अँजुरी से लिया ओट में
रोते हुए बच्चे को उठा लिया गोद में
रात में अनजाने पथिक के लिए जलाया द्वार पर दीपक
ग्रीष्म में पंछी के लिए छत पर रक्खा दाना - पानी
कमरे में फरफराती गौरैय्या के लिए किया बन्द पंखा
किसी खाँसते हुए मरीज की पीठ पर फिराया हाथ
किसी लड़खड़ाते हुए को झट लिया थाम
देख कर लगा बंधू , सखा !
ईश्वर का हाथ, मुझे छूकर चला गया
वो हाथ जो धरा तुमने काँधे पर |
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