31 जनवरी 2012

बन्दर

एक महोदय डार्विन हुए थे , उन्होंने एक सिद्धांत दिया था , मनुष्य के पूर्वज बन्दर थे . या बंदरों से मनुष्य प्रजाति का विकास हुआ . पर कुछ बुद्धिमान मनुष्य तर्क देते हैं तो फिर अभी जो बन्दर हैं , वो क्या है ? तो कुछ ने मजाक में प्रति-तर्क दिया वो तो कुछ मनुष्य अवनति होकर बन्दर हो गये हैं . मगर सुना है डार्विन के सिद्धांत को चर्च ने अस्वीकार दिया था . काश विज्ञान ने भी त्याग दिया होता . बच्चे बिना प्रयोग के इस विज्ञान-पाठ से तो बच जाते . यह बात किसी उपलब्ध अकाट्य तथ्य पर अवलंबित हैं यह भी कोई नहीं बताता . मुझे व्यक्तिगत तौर से इस बात से कोई परहेज नहीं है . हिंदू हूँ तो किसी पूर्व जन्म में बन्दर भी रहा ही होऊंगा. दिक्कत तो जिन्हें पूर्वजन्म में विश्वास नहीं है , उन्हें है . वैसे इस ज़न्म में भी बड़े बुज़ुर्ग कई बार बन्दर जैसे व्यवहार का उलाहना दे चुके हैं . आप कई लोगों के बारे में मानते हैं की वो मनुष्य-योनि में दरअसल बन्दर हैं ? अब मैं क्या बोलूं ? आप बड़े-बुजुर्ग हैं . आपने दुनिया देखी है . आप मानते है तो कोई वजह होगी .  

खैर डार्विन की इस बात पर सारे प्रतिरोध मनुष्य समाज के आये हैं , बन्दर प्रजाति ने विरोध में कोई मोर्चा निकाला हो इस बात का कोई समाचार नहीं आया है . न ही कभी उनके द्वारा बंद , जुलूस , बहिष्कार , हड़ताल , ज्ञापन देने का उल्लेख किसी समाचार पत्र में देखा कभी ? न बन्दरों ने  अपने पूर्व पुरुषों के अपमान पर कभी किसी चर्च, मस्जिद , मंदिर पर हमला किया , न कोई किताब जलायी , न किसी के मुंह पर कालिख पोती.

मनुष्य जाति जिसे सभ्यता के उन्नति का इतिहास बखानती है , और प्रगति के नए-नए सोपानों पर अपने  चढ़ने का दावा करती है , उसके ठीक विपरीत जिन्हें हम बन्दर कहते हैं वो विरोध में ज्यादा से ज्यादा खींसे निपोर देंगे , थोड़ा उछल-कूद लेंगे . बन्दर आपके सूखते हुए कपड़े उठा ले जाएँगे, या अगर आप ने खिड़की खुली छोड़ दी हो तो आपके घर में घुस कर आटा बिखेर देंगे , और कुछ नहीं कर पाए तो आपकी छत ( गौर किजीये छाती नहीं लिखा ) पर कूद लेंगे जोर जोर से . हमारी आपकी तरह विकास किया होता तो मुंह से गालियों की बौछार करते , इससे भी शांति नहीं मिलती तो 
लात-घूंसों, लाठियों , छूरों,  से मामला सुलझाने की कोशिश करते , और इससे भी बात नहीं बनती तो गोलियों की बौछार करते , और इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सभ्यता से बैठकर झंझट निपटाने के लिए मिसाइलें और परमाणु बम तो है हीँ . 

हमारे हिन्दी सिनेमा के हीरो तो पेड़ों पर भले ही न उछलकूद मचाएं , उनके आसपास जरूर उछलकूद मचा लेते हैं . हालीवुड वालों ने जरूर एक सिनेमा बनाया था ,इन्सटिंक्ट, जिसमे एन्थोनी हॉपकिंस के द्वारा गोरिल्लाओं के साथ जंगल में रहने के कुछ दृश्यों द्वारा मनुष्यों और बन्दरों के व्यवहार पर टिपण्णी है .

हमने  अंग्रेज़ी भाषा के साहित्य का ज्यादा अध्ययन नहीं किया है . परन्तु हिन्दी भाषा का कुछ सीमित अध्ययन किया है . इसमे बन्दर के हाथ उस्तरा , बन्दर-बाँट , वानर-सेना ,लंगूर से शादी की धमकी या आश्वासन , हूर के साथ लंगूर जैसे मुहावरे या जुमले प्रयोग में लाये जाते हैं . इसमें से प्रथम दो लोकोक्तियाँ तो हमारी शैशवकाल पर ठहरी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को चलाने में काफी सहायक सिद्ध हो रही हैं . और जब तरह-तरह की नयी वानर सेनाएँ लंका के बजाय अयोध्या पर ही चढ़ बैठी हैं , और ये वानर सेनाएँ  वैलन्टाइन दिवस , सिनेमा प्रदर्शन , किताब प्रकाशन , चित्रकला प्रदर्शनी , प्रणय-निवेदन में व्यस्त प्रेमी-युगलों के विरुद्ध जो बागोँ में हमारी प्राचीन परंपराओं के अनुरूप वसंत-उत्सव मना रहे होते हैं पर चढ़ाई करती हैं . जो वानर सेना  पत्थरों से समुद्र पर पुल बनाने के लिए विख्यात रही है , अब वही वानर सेना पत्थरों के द्वारा समाज के सारे पुलों को तोडने के लिए कुख्यात होती जा रही है .  

अंग्रेज़ी भाषा में अलग अलग प्रजाति के बन्दरों के लिए अलग-अलग शब्द उपलब्ध हैं मसलन - चिम्पांजी, गोरिल्ला , मंकी , लेमूर, ओरांगउटान  इत्यादि . घबराइए मत ये सब अपनी कान्वेंट में पढ़ने वाली बिटिया के नर्सरी की किताब से लिए हैं . हमारे यहाँ तो हनुमान , सुग्रीव , बाली , मयंद , अंगद रामायण के पात्र हैं और इन नामों को राम के प्रिय के रूप में पूज्य भी माना जाता है , परन्तु रामलीला वालों ने , फिर सिनेमा वालों ने , और फिर दूरदर्शन वालों ने इनकी विचित्र वेशभूषा और श्रृंगार से क्या हासिल किया या करना चाहते थे यह तो वही जाने . वैसे विश्वमोहिनी कथा में विष्णु ने नारद का श्रृंगार करने के लिए वानर-मुख क्यों चुना इसका गूढ़ अर्थ तो आपको कथावाचक ही बता सकते हैं . परन्तु इसका परिणाम यह हुआ की पूरी रामायण की नीवं इस एक चौपाई में मिल जायेगी -

          "कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी॥
            मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारी। नारि बिरहँ तुम्ह होब दुखारी॥
"

नारद उवाच - "तुमने मेरा रूप बंदर का बना दिया था, इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। तुमने मेरा बड़ा अहित किया है, इससे तुम भी स्त्री के वियोग में दुःखी होगे "
मुझे लगता है आदिवासियों , जनजातियों की कोटा राजनीति की नीव यहीं पड़ गयी थी जिससे हमारी रामराज्य नीति अभी तक जूझ रही है . आप ठीक कह रहे हैं यह दूर की कौड़ी है . परन्तु मेरा मौलिक विचार है की विष्णु नारद का मजाक नहीं उड़ा रहे थे , बल्कि  कपि-रूप ज्ञान स्वरुप है जिसे विश्वमोहिनी माया नहीं छल सकती , वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर के पास ही एक हनुमान मंदिर भी है . मालूम नहीं जो काशी जा कर विश्वनाथ के दर्शन करते हैं , वो ज्ञानवापी स्थित दक्षिणमुखी हनुमान के दर्शन करते हैं या अथवा नहीं . 

परन्तु  सारे ब्रह्मचारी युवक , ठीक है , ठीक है , ब्रह्मचारी आयु वाले युवक, हनुमान भक्त होते हैं . हर अखाड़े में आपको हनुमान की प्रतिमा या तस्वीर ज़रूर मिल जायेगी . वैसे क्रिकेट की विश्वमोहिनी सूरत में फंसे कितने नारद यह जानते हैं की  गुरु हनुमान को द्रोणाचार्य और पद्मश्री दोनों सम्मानों से नवाज़ा गया था . और जिनके आठ शिष्य  भी सर्वोच्च खेल सम्मान अर्जुन पुरस्कार प्राप्त हैं . अब अगर गुरु हनुमान ने आपको कोई दाँव नहीं भी सीखाया हो , परन्तु अगर अँधेरे से आपको  डर लगता हो तो हनुमान चालीसा का पाठ मुंह-जबानी याद कर लें , रात-बिरात अँधेरे रास्ते से गुजरने में सहायता होगी . लड़की हैं ? तो क्या हुआ ? वैसे भी हमारे पिता के मित्र व्यास जी कहा करते थे देवताओं की पूजा देवियों को और देवियों की पूजा देवताओं को करनी चाहिए .


जिस देश में भरोसा नहीं की ज़रूरत पड़ने पर क़ानून आपकी मदद को आ पायेगा , और आया भी तो हिन्दी सिनेमा की तरह समय पर तो आएगा नहीं , ऐसे में हनुमान जी को आजमाने में क्या हर्ज है ? आप इसे मेरा अंधविश्वास भी कह सकते हैं . विश्वास अंधा है तो क्यों आपत्ति करते हैं , क़ानून अंधा है तो किसी को आपत्ति तो होती नहीं . वह देवी है इसलिए क्या ? 

26 जनवरी 2012

मुंडन

नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन , फिर चूड़ाकर्म या
मुंडन
सोलह सावन , सोलह श्रृंगार  
सोलह संस्कार 
अगर हुआ है आपका गर्भाधान 
जीवन का अभ्युत्थान  
उसके बाद ही शुरू होगा  
विद्यारम्भ
जब कटेंगे केश प्रारब्ध  
और गुरुकुल का दीक्षांत समारोह यानि 
केशान्त
और उसके बाद आपके जीवन भर मुंडने की बारी 
किजीये 
विवाह की तैय्यारी 
हे श्रेष्ठी !!
जब तक न हो जाए 
अन्त्येष्टि!!
जीवन में बाल सिर्फ एक बार मुंडता है 
पर आदमी कई बार गंजा होता है 
कहते हैं 
गंजापन सम्पन्नता की निशानी है
कई आदमी बुढ़ापा आते-आते सम्पन्न हो जाते हैं 
कई औरतें भी 
धीरे- धीरे बराबरी पर आ रहीं हैं 
कौन कहता है गंजापन बीमारी है  ?
कई सम्पन्न नौजवान भी होते हैं 
फिर भी लोग गंजे का मजाक उड़ाते हैं 
कभी कंघी दिखाते हैं 
कभी नाखून उगाते हैं
तिरुपती के भगवान को गंजों नें 
निर्यातक बना दिया 
देश के सबसे अमीरों में गिनती होती है 
गंजों ने देश का कितना विकास किया
हमने अपने नाऊ से पूछा -
"नाऊ -नाऊ कितने बाल ?"
बोला -
"जजमान , अभी सामने आये जाते हैं "
काहे इतराते हैं |
कितने बचे हैं 
आप अब भी बच्चे हैं ?
सीधे-सीधे बैठें .
अगर इधर-उधर लग गया ?
उस्तरे को कोसेंगे .
अब हमारी भी उम्र हो गयी है 
पुरखों की निशानी यही बची है 
बाल-बाल बचा रक्खा है 
लड़का उस्तरा थामने से बिदकता है 
कहता है यहाँ नहीं बैठूँगा 
जावेद-हबीब बनना चाहता है 
अब आप ही बताइए
कहाँ सलीम-जावेद 
कहाँ जावेद-हबीब 
अब तक लोगों को याद है
उनकी लिखी शोले 
इनकी फिल्म कब आयी ? कब गई ?
और क्या बोलें 
मैंने कहा -
क्यों घबराते हो 
तुम्हारा काम सबसे चंगा है 
बड़े-बड़े यहाँ सर नवाते हैं .
बोला - गरीब का मजाक उड़ाते हैं ,
क्या करें धंधा है 
बस एक अफ़सोस रह गया 
हमारी कमाई 
किसी गिनती में नहीं आती 
राष्ट्रीय आय में भी नहीं किया जाता शामिल
यूँ ही बोलते हैं 
देश जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता   
मरता क्या न करता 
उसे समझाना था 
दो-चार बाल बचे थे 
कुछ हफ्ते बाद फिर आना था 
गला खंखारा
थूक निगल लिया 
अगर हिल गया ?
बोला -
भोला , हम सब की है एक ही बिरादरी  
हम भी हैं सरकारी 
हम भी उसकी गिनती में नहीं आते.
भोले ने पकड़ लिया -
फट से उत्तेजित हो के बोला 
"आप लोग तो कुछ काम नहीं करते  
आपकी गिने या न गिने 
पर हम तो रात-दिन मेहनत करते हैं
उस्तरा घिसते हैं 
साबुन लगाते हैं 
गीला करते हैं 
ब्रश घुमाते हैं 
कैंची चलाते हैं
तेल लगाते हैं 
अगल-के , बगल-के
नाक के , कान के .... "
मैंने कहा -" बस 
और आगे नहीं "
रुका भोला
फिर बोला -
" बाल बनाते हैं ,
मूंड पाते हैं 
तब कहीं दो-जून खाते हैं | "
मैंने कहा -
हम को कोसते हो 
हम देश चलाते हैं
तुम इतना सब लगाते हो 
तब मूंड पाते हो 
हम साठ सालों से 
बिना किसी कैंची के काट रहे हैं 
बिना उस्तरे के नाप रहे हैं 
तुम दो-चार की बनाते हो
हम दो-चार सारे देश को मूंड रहे हैं .

18 जनवरी 2012

भौंकना

भौं ‌‍‌ऽऽऽऽऽ उं उं
भों , भों , भों ,भों , भौं ऽऽऽऽऽऽऽ
भू भू भू भूंह भूंह ब्हुंह ऽऽऽऽऽऽ
भौं भौं भौं भौं भौं भौं भौं भौं भौं भौं भौं ओं ओं ओं ओं
हंसिये मत
हँसना मना है
मैं ऋषि नहीं हूँ
और ना ही ये बीज मंत्र हैं
हाँ ठीक समझे आप यह
भौंकने वाले प्राणी की विविध-भारती है
अब विशेषज्ञ तो हूँ नहीं
इसलिए आपका इसमें परिपूर्णता ढूँढना ज्यादती है
 क्या आप भौंक सकते हैं ?
नहीं यह तो असंस्कृत तरीका हुआ
ऐसे पूछता हूँ -
"क्या आप भौंकना जानते है ?"
किसी विश्वविद्यालय से स्नातक हैं ?
या सिर्फ सुनी सुनायी ज्ञातक हैं ?
दरअस्ल मैं विभिन्न पाये के भौंकने वाले तलाश रहा हूँ
ऐसे क्या देख रहे हैं ?
नहीं न मुझे कुत्ते पालने का शौक हुआ है
न  मुझे अपनी कुतिया के लिए अच्छी नस्ल के कुत्ते की तलाश है
मेरे हाथों में बचे हुए बिस्किट भी नहीं  हैं
आप निश्चित रहें मुझे किसी कुत्ते ने नहीं काटा.
मैं पिछले के पिछले के पिछले जन्म में
युधिष्ठिर  के साथ साथ हिमालय तक गया था
अपनी कौम का इकलौता था
अब अखबार निकालता हूँ
सपने में टी वी कयास रहा हूँ
मुझे अच्छे रिपोर्टर , एंकर , विशेषज्ञ भी चाहिए
अब आप ही बताइए
चौबीस घंटे , सात दिन
कोई गुर्रा तो नहीं सकता
भौंकने के अलावा क्या बचता
सुबह मुँह अँधेरे सैर को क्या निकले
पीछे से जब ये आवाज गूंजती है
तो न सिर्फ घिग्घी बंधती है
फट जाती है
मन ही मन आसमानों की तरफ तकता हूँ
खुदा वन्द करीम की रहमत की दुआ करता हूँ
संकट में धर्म किसे याद रहता है
आँखों के आगे सिर्फ इंजेक्शन घूमता है
आधी रात को नींद में बडबडाता हूँ
जब भी किसी रोते हुए कुत्ते के रोने की आवाज़ सुनता हूँ
दिल अक्सर ब्रेकिंग न्यूज़ सुनकर दहल जाता है
पर जबसे हर कुत्ता रात-बिरात ब्रेकिंग न्यूज़ की माफिक
कहीं भी कभी भी चालू हो जाता है
तबसे अपनी भी जेब में पत्थर सवार है
पत्नी भी पूछती है
धर्मं बदल कर दूसरा ब्याओ करे क्या
ये पत्थर क्योँ धरे मियाँ ?
अब उस बावरी को कैसे समझाऊं
मानिक वर्मा सा हो गया हूँ
कविता नहीं खम्बा ढूँढता हूँ .
आजकल विश्वविद्यालय में कोई बिना पी एच डी के प्रोफ़ेसर नहीं हो सकता
ऐसे ही एक मित्र कल घर आये
बोले विषय सुझाओ
मैंने कहा बहुतेरे हैं
गाय के मूत्र पर कर लो
कोलावेरी-डी है
ढंका हुआ हाथी है
बोले मेरे को प्रोफ़ेसर न बनने देने की ये क्या ओछी राजनीति है ?
मैंने कहा राजनीति ओछी नहीं , ओबीसी है .
बोले मजाक मत करो
सुझाना है सुझाओ
उपहास तो मत उड़ाओ
वैसे ही दुखी हूँ
देश की शिक्षा रसातल को जा रही है
शिक्षा में विदेशी पूँजी आ रही है
मैंने कहा आप इसके खिलाफ भौंकते क्योँ नहीं ??
दोस्त ने सुना नहीं , या गुना नहीं ,
अपनी ही तान में बोला -
क्या भौंके ?
हम तो गुर्रा तक आये
पर बोटी तो क्या कोई हड्डी तक नहीं डालता .
मैंने कहा गुरु मिल गया
मैं भौंकने पर कविता लिख रहा हूँ
तुम भौंकने पे शोध कर लो .
मित्र बोले - इसमें शोध क्या है ?
कोई भी अगर कुत्ता है , भौंक लेता है
मैंने कहा - नहीं बहुतेरे प्रश्न है
जैसे -
रात और दिन में भौंकने में क्या फर्क है ?
क्या  उभयचर भौकने वाले वास्तव में होते हैं -
जो दिवा और निशा दोनों काल में समान विशेषज्ञता से  भौंक सकें ?
दुम उठाकर और दुम  दबाकर भौंकने में क्या फर्क है ?
लगातार भौंकने या कभी -कभी भौंकने वाले में कौन ज्यादा सफल है ?
भौंकने में बीच-बीच में श्लोक उदधृत करने के क्या फायदे या नुकसान हैं ?
क्या भौंकने की विशेष शैली से यह ज्ञात होता है कि -
भौंकने वाला संघी , कांग्रेसी , साम्यवादी , समाजवादी , या सिर्फ किसी सुविधावादी
घर से बंधा है ?
या फिर छुट्टा है ?
क्या कुत्ते के बकरे की तरह दाढ़ी होती है - अगर हाँ ,
तो दाढ़ी वाले कुत्ते के भौंकने का
अन्य कुत्तों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
दाढ़ी वाला कुत्ता क्या अन्य कुत्तों को डराने के लिए भौंकता है ?
जो कुत्ता अपने मोहल्ले में जोर जोर से भौंकता है
वह क्या अन्य मोहल्ले में भी उतने रूआब से भौंकता है ?
या उसकी आवाज़ मिमिया जाती है ?
कुत्ता अगर अपनी गली में शेर होता है
तो उसवक्त वह गुर्राता है या उसका भौंकना ही गुर्राना मान लिया जाता है ?
कुत्ते  योगासन मुद्रा में दोनों पाँव उठाकर भौंकने से क्या फायदा पा सकते हैं ?
फैंसी ड्रेस में भाग ने वाले कुत्ते क्या भारतीय ड्रेस सलवार कमीज़ पहन सकते हैं ?
क्या कुत्ते सामूहिक रूप से भौंकने के लिए रामलीला ग्राउंड या जंतर-मंतर का इस्तेमाल कर सकते हैं / या करते हैं ?
भौंकने की समयसीमा तय की जानी चाहिए ?
भौंकने के लिए कोई न्यूनतम आयु क्यों नहीं है संविधान में ?
भौंकने के लिए क्या किसी न्यूनतम अहर्ता का होना अनिवार्य होना चाहिये ?
भौंकना क्या मौलिक अधिकारों में शामिल करने के लिए उपयुक्त होगा ?
लिटररी फेस्टिवल में क्या भौकने पर किसी संवाद का आयोजन हुआ है ,
अगर नहीं तो क्या वहाँ भूँकने पर प्रतिबन्ध जायज़ होगा ?
क्या भौंकने पर कोई उपाधि या सम्मान विश्व में दिया जाता है ,
यह सम्मान अब तक किसे -मिला है ?
इसमें कोई प्रवासी भारतीय शामिल है ?
कुत्ते भौंकते वक्त किस भाषा का इस्तेमाल करते हैं ?
क्या उनमे भाषा को लेकर कोई विवाद है ?
या किसी भाषा में भौंकना अपराध है ?
भौंकने पर अब तक कितनी कमिटी या कितने आयोग बिठाए गए हैं ?
भौंकना सुनने वाले खुद आते हैं या किराये पे लाये गए हैं ?
सबसे मूल प्रश्न तो छूट ही गया
भौंकने वाला जब किसी कुतिया को देखता है ,
तो सर क्यों हिलाने लगता है ?
दुम क्यों उठाता है ?
चारों तरफ घूमता है ?
सिर्फ सूंघता है ?
दोनों पंजे लंबे कर लेट सा जाता है ,
भौंकना भूल कर सिर्फ मिमियाता है .
बसंत से कुत्ते का क्या नाता है ?
और बंधु , प्रोफ़ेसर जब हो जाओ ,
यह ,मत भूलना
कुत्ते की जात
जब से रही आदमी के साथ
गुर्राना भूल गयी
सिर्फ अब भौंकती है
सुविधा की हड्डी
पे जिसने मुंह मार लिया
लार किया , लार किया .
मुझे मत ढूँढना
आजकल
सामाजिक मीडिया पर
सक्रिय हूँ
भौंकना -भूंकाना दिनरात जारी है
नौकरी सरकारी है
तरमाल डी पी है
कुतिया है या कुत्ता
क्या पता
आदमी की शक्ल में है
एक अंडा
पर भाषा की सांसत है
हिन्दी में भौंको तो रोमन चाहिए
अब खजराहा कुत्ता अल्सेशियन होने से रहा
पामेरियन हो तो लोग गोद में उठा लेते हैं
हम सब निरपेक्ष देखते हैं
भूँकने की नयी गीता बाँच रहे हैं
नए लेब्राडोर हैं
दूसरे का फेंका लपियाते हैं ,
तलुवे ही नहीं तालू चाट जाते है ,
कुछ सेलेब्रिटी हैं 
एकतरफा भौंकते है 
बीच में बोलो तो सिर्फ टोकते हैं 
और उनपर गुर्राओ तो 
ढंके हुए हाथी हैं 
साफ़ गुज़र जाते हैं 
आप सिर्फ मिमियाते हैं 
पर हम अब भी टेरियर हैं
शिकार पर अकेले  हैं
भौंकना धर्म नहीं
धर्म है काटना
आप अच्छे हैं
तो दुम हिलाऊँगा
नहीं तो सावधान
काट खाऊंगा
शांति में विश्वास है
तरीका उग्रवाद है .

16 जनवरी 2012

चुम्बन

कविता का शीर्षक हो 
या माथे का चुम्बन 
विवादास्पद  नहीं होना चाहिए 
कलियों का रसपान 
या सिर्फ छूता हुआ 
भ्रमर का अधर-गान 
उसके होठों पर कुछ काँपता रह गया 
ये पहला मिसरा कितना कुछ कह गया  
गर्मियों पर उसके गालों को चूमती दोशीजा धूप सा 
जो पत्तों के झुरमुटों से दबे पाँव आ -जा रही थी 
मोर पंख  से  बंद आँखों को सहला रही थी 
प्रणय-मिलन की मधुरात स्मृति का जीना चढ़ने लगी 
उसके बदन की खुशबू से महकते दुशाले में 
लिपटा जिस्म , ठन्डे अलाव में लोबान सा दहक उठा 
ओस से नहाई हुई पत्ती 
को रश्मिरथी आलिंगन में भर कर 
अपनी उस्मा से सराबोर कर ताज़ा कर गया 
कुछ सुलगता रह गया 
अब तक याद है 
कैसा संवाद है 
किसने उसे चूमा ?
प्रथम आलिंगन 
प्रथम चुम्बन 
प्रथम प्रणय 
प्रथम निवेदन
प्रथम वागदान 
प्रथम अभिसार 
प्रथम श्रृंगार 
अनुभूति  अपरम्पार !!
सब थे अद्वितीय 
इसलिए याद रहे 
कौन भूला
जिह्वा का कंपन ?
कदाचित अनुभूत जीवन 
फिर फिर 
गया छला 
पर सन्मुख आँखों के 
लौट आयी
तिर-तिर 
वही बेला
उम्रदराज़ चेहरे की क्योँ कर रहे खिंचाई 
मुस्कराहट दबे पाँव आती है 
जल्दी लौट जाती है  
चेहरे की नहीं लौटी लुनाई 
उसने नहीं बोला 
आज तुम्हारा चुम्बन तुम्हे लौटाने आया हूँ 
मैंने हाथ पकड़ के पूछा - 
उस दिन के भी जिस दिन मैंने अमृत पिया था .
तुम्हारे सारे जिस्म को सिर्फ होंठों से छुआ था . 
आज  
मैं अकेला खड़ा था 
जो तुमने जड़ा था 
मेरे माथे पर 
मेरे होठों पर 
सुतवा सजा है 
हमारे रिश्ते का 
महकता जेवर है 
वही कलेवर है 
दहकता तेवर है 
शरारों में तहबंद रिश्ते 
न भर पाए , न रहे रीते 
हम रहे खाली 
अपने खामखयाली
सपने देखते रहे 
और सोचते थे 
कितने बसंत आये 
कितने बसंत गए 
हम पलाश की तरह जले 
रेत घड़ी की तरह सरकता रहा 
पल-पल जीवन 
क्षितिज के पार फैला था सन्नाटा 
मैं पागलों की तरह 
रहा बडबडाता 
वह चुंबन था या चिकोटी ??
अधूरा सपना था 
भिनसारे देखा था 
टूट गया 
टीसता है 
जो अब तक जड़ा था 
अनगढ़ गढ़ा  था 
किसने पढ़ा था ??

13 जनवरी 2012

तोता

द्वापायन वेदव्यास के अयोनिज पुत्र शुक देव बारह वर्ष तक गर्भ में रह कर कृष्ण के इस आश्वासन के बाद निकले की उनके ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा .


द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते । तयारन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यश्रत्रन्यो अभिचाकशीति ॥( ऋग्वेद)
एक डाल पर बैठे हैं वे दोनों दोनों के पंख सुनहरे हैं पेट भी दोनों के हैं एक का पेट भरा है वह फिर भी खाता है दूसरे का पेट खाली है वह फिर भी देखता है केवल देखता है!(ऋषभ )


अर्थात समान आख्यान वाले दो पक्षी एक वृक्ष पर एक साथ बैठे हुए हैं उनमें एक मधुर फल का स्वाद लेता है और दूसरा निष्क्रिय बना उसे देखता करता है।


राजा परीक्षित को भगवान शुकदेव ने भागवत सुनाई और मुक्त किया . कलियुग से इस कथा का सम्बन्ध है |इससे हमारा भी है .


उपरोक्त कथा इस बात का द्योतक है कि तोता कोई साधारण पक्षी नहीं है . जब शंकराचार्य निकले और मंडनमिश्र के घर शास्त्रार्थ का फैसला उनकी विदुषी पत्नी के द्वारा हुआ पर उनके घर की पहचान का कारण यही साधारण पक्षी तोता था .


अतैव जब विचार हुआ की कोयल , मयूर , गरुड़  , नीलकंठ  , क्रौंच पक्षी जो स्थापित ब्रांड हैं इसके विपरीत किसी ऐसे पक्षी को विषयवस्तु बनाया जाए जो उपयोगी तो बहुत है परन्तु जिस पर व्यवस्थित  सामग्री उपलब्ध नहीं है .और यह आपको परोस रहा हूँ .


अब फुटपाथ पर बैठे पिंजरे में कैद तोता जब बाहर आकर आपका भाग पढ़ सकता है तो वह मेरे लेखन की विषयवस्तु अवश्य  बन सकता है .शायद मुझ बिल्ली के हाथ छींका नहीं तोता आ जाए . वैसे हो सकता है मेरा भाग्य उस जादूगर सा हो जिसकी जान किसी द्वीप में कैद किसी तोते में अटकी है . जिसे आप आज़ाद कर दें .  परीक्षा की ऋतु आये तो आपको इस देश की पूरी शिक्षा प्रणाली एक तोते रूपी कृष्ण के विराट स्वरूप जैसी नज़र आएगी . जहाँ सारा ज्ञान रटंत विधा द्वारा एक कान से अंदर जाता और दूसरे से बाहर आता नज़र आएगा . ठीक वैसे ही जैसे विशाल आकार से छोटा स्वरुप ग्रहण कर हनुमान नागमाता सुरसा के मुख से प्रवेश कर कान से बाहर आ गए थे . वैसी पूरी रामायण कैकेयी और दशरथ की जुबान , सुपर्णखा  के नाक कान , रावण की नाभि के अमृत  , अंगद के पाँव पर टिकी हुई है . किसी आँख -नाक -कान विशेषज्ञ की अज्ञात परछाई पड़ रही है रामायण की कथा पर . और तोते के गले से मनुष्य की वाणी का निकलना भी किसी डॉ डूलिटल की मेहरबानी का मोहताज नहीं, क्योंकि वह हमारे सिखाए शब्दों और भाषा का इस्तेमाल करता है .


तोता न होता तब हमारे शिक्षा मंत्रालय का क्या होता ? शरद्जोशी जी ने लिखा था हमारे वित्त मंत्रालय को अपने कार्यालय के सामने कोलंबस की प्रतिमा लगवाना चाहिए , युति समझाई थी - यह कह कर कि अगर कोलंबस ने अमेरिका की खोज न की होती तब हम कहाँ से उधार लेते ? अब इस प्रश्न से तो समाजवादी तोतों के हमारे हाथों से उड़ जाने के कारण हम मुक्त हो चुके हैं . परन्तु अब भी हमारे प्रत्येक शिक्षा संस्थान के बाहर तोते की प्रतिमा लगवाने का मेरा सुझाव निहायत प्रासंगिक है और काफी समय तक इसके बने   रहने की पूरी तैय्यारी भी है . यह आप किसी भी विशेषज्ञ तोते से दो मिनट बात कर आश्वस्त हो जायेंगे .


तोता मंडनमिश्र के घर रह कर वेद का पाठ और मंत्र उच्चारण तो सीख ही जाता है . और उसके कानों में पिघला शीशा भी नहीं डाला जाता . भले ही तोते को उसका अर्थ या ज्ञान ताउम्र न हो . पर उससे क्या फर्क पडता है - हमारे तोते उम्र भर राम - राम करते हैं बिना राम को जाने , समझे .


तोते को खिलाई हुई झूठी मिर्च तुतलाते बच्चे को खिलाकर उसे तोते की तरह बोलने का टोटका तो हमारे समाज का वह दर्पण है जिसे हम अपने समाज , राजनीति , संचार माध्यम की वाचलता / मुखरता के बाहुल्य में रोज देख पाते हैं और मन ही मन सोचते हैं काश इन सबको तोते की जूठी मिर्च इनके माता-पिता ने न खिलाई होती .


वे माता -पिता जिनके बुढ़ापें की लाठी विदेश जा कर बस गई है . वे अपने आँगन में चहचहाने के लिए पैराकीट  रंगबिरंगे तोते पाल लेते हैं . जिन्हें जीवन में रंग कम लगते हैं वो सोलोमन द्वीप के बहुरंगी एक्लेक्टस तोते पाल लेते हैं . देशी पुत्रों को जब मातापिता को छोड़ विदेश रहने में अपनी अंतरात्मा के चुप्पी साध लेने पर उनके माता पिता  मनुष्य की किसी भी भाषा में बोलने के अलावा बिल्ली के बोलने , कुत्ते के भौंकने , और बच्चे के रोने की आवाज़ निकालने की क्षमता रखने वाले ये तोते अपने मन और जीवन में बसे सन्नाटे को तोडने में सहायक तोते पाल लेते हैं , और ये तोते कितने सहायक होते हैं यह तो वो ही बता सकता है जिसे इनका सानिध्य प्राप्त हुआ है . गफ्फार अहमद साहब का तोता अंग्रेजी बोलता है और उर्दू में अस्सलाम अलयकुम भी बोलता है .


तोते वैसे भी आपके बच्चों से कितना मेल खाते हैं . वो उन्ही की तरह स्नान करते हैं . जिनके बच्चे शरीर पर पानी डाल कर बदन भिगाने को स्नान कहते हैं, उन्हें माता उलाहने में कहतीं हैं हो गया तुम्हारा "तोता स्नान " . और फिर वही तोते हाथ से उड़ जाते हैं . जब वो अपनी पसंद के लड़के या लड़की से शादी कर लेते हैं , या किसी दूर प्रान्त या देश में जीविका अर्जन करने चले जाते हैं . ऐसा नहीं की माँ -बाप इन सपनो से अपने को अलग रक्खे हुए हैं या इन सपनो के खिलाफ हैं . सपनों से समझौते किये उन्हें  दुःख इस बात का नहीं है , उन्हें तो यह सालता है की इन सपनों में वे कहीं प्रवेश ही नहीं करते हैं .


पदमावती के पास सिंहल द्वीप में हीरामन तोता था . नाराज पिता गन्धर्वसेन उसे मार देने पर उद्यत हो गए और वह उसकी अनुनय -विनय के कारण बच गया था . जब वह मानसरोदक गई हुई थी तो तोता खटके के कारण उड़ गया . तोते को प्राणों से चाहने वाली पदमावती बहुत दुखी हुई - कवि जायसी ने उस दुःख का वर्णन करते हुए लिखा था  - सुआ जो उत्तर देत हा पूँछा , उड़ी गा पिंजर न बोले छूँछा |  माता -पिता भी अपने सोने के पिंज़रे दरों दीवार से यही पूछते हैं , पर खाली छूँछा न पद्मावती से कुछ बोला न उनसे बोलेगा .


हिन्दी सिनेमा में एक डाल पर तोता बोले -एक डाल पर मैना  , तोता -मैना की कहानी पुरानी हो गई जैसे गीतों के माध्यम से तोता मौजूद है . अब मैं इन बूढ़े तोतों को क्या सिखाऊंगा .


रघुवीर सहाय होता तो आपको बोलता -


अगर कहीं मैं तोता होता
तोता होता तो क्या होता?
तोता होता।
होता तो फिर?
होता,'फिर' क्या?
होता क्या? मैं तोता होता।
तोता तोता तोता तोता
तो तो तो तो ता ता ता ता
बोल पट्ठे सीता राम|

आशा है जब अगली बार जब आपकी तोताराम या तोते जैसी नाक वाले किसी व्यक्ति से मुलाकात होगी तो उसे कुछ श्रद्धा और आदर से देखेंगे .

11 जनवरी 2012

सच की तलाश

कितनी ज़द्दोज़हद
बड़ी बड़ी तरकीबें 
सबने सजाये सबने उठाये
दूसरों के कंधो पर  सलीबें
ईसा के दिखाए मार्ग पर प्रशस्त 
सच चल पड़ा बनिस्पत .

सच को बोएँ, उगायें 
लाए कुछ विदेशी , कुछ देशी 
लाये ज़दीद , अदद नस्लें 
जितनी जिसकी खेती 
उतनी ज़हद , वैसी फसलें 
अब कुछ संकर , जातियाँ-प्रजातियाँ
देशी पतुरिया , गिटपिटाए
माटी लगी बोली , भाषा है उपनिवेश
पच्छिम से आयी आंग्ल 
फटाफट पहनावा 
फर्राटे से लिपट जावा 
मेम के  ऐश ही ऐश 
छानबीन हुई , जाँच-पड़ताल हुई 
एक बार हुई , बार बार कराई 
सच का भ्रूण देखा परखा 
सच नर है या मादा 
नहीं था इरादा 
हत्या का 
उसका जीना , तिल-तिल मरना 
किसने कहा क्रांति है , आगे मकरसंक्रांति है 
बुद्धिजीवी संस्कार है
जातिवादी समीकरण है
थोड़ा गणित है , नया व्याकरण है  
थोड़ा रूढ़ी है , थोड़ा साम्यवादी है 
सिर्फ सांठगाठ है , थोड़ा लेनदेन है 
बुद्धि से लक्ष्मी का कब हुआ मेल है
क्योँ बोलो निकम्मा है 
समाज का दर्पण है 
प्रजातंत्र का चौथा खम्बा है .
सच का बोलबाला है 
क्या हुआ , अगर अखबार काला है .

आपने महाभारत पढ़ी है ?
किसे हडबड़ी है
देखो कितने पात्र है 
सब आसपास हैं 
अपनी अपनी ज़िंदगियों से ऊबे - उकताए 
सन्निपात ज्वर में सब बडबड़ाएं
अश्वत्थामा हन्तो , नरो वा कुंजरो वा 
क़ानून का पता नहीं 
धृतराष्ट्र अंधा था 
गांधारी ने बांधी थी पट्टी ?
क्या पता ? नहीं सकता .
किन्तु कुंती को नहीं था दिखता 
नहीं मैं आँखों का डॉक्टर नहीं 
नहीं द्रौपदी पिज्जा नहीं थी बेटी !!
फिर पाँच लोग कैसे बाँट के खाते 
तुमने ठीक ही पूछा 
कुंती को नहीं था दिखता 
परन्तु लोग बताते हैं 
धृतराष्ट्र अंधा था 
गांधारी ने बांधी थी पट्टी .
पात्र स्मृतियों में आते हैं , जाते हैं 
हम सब गीता उठाते हैं ,
माथे से लगाते हैं 
लोग हाथ रखकर कसम खाते हैं 
- जो भी कहूँगा , सच कहूँगा , सच के अलावा कुछ नहीं कहूँगा .
तुम झूठ बोलती हो ,
मैं क्योँ हसूँगा ??
महाभारत के पात्र 
पॉकेट में पड़ी रेज़गारी हैं ,
आप इसे भगवान के नाम पर चढ़ा दीजिए
किसी भिखारी की तरफ उछाल दीजिए 
किसी नदी में डाल दीजिए 
किसी इच्छापूर्ति फव्वारे में इस्तेमाल कीजिये 
किसी बच्चे के कौतूहल की भर दीजिए अँजुरी 
और अगर अंतरात्मा की आवाज़ जो कचोटे 
तो चित भी मेरी पट भी मेरी 
सिक्का निकालिए 
जो खोटा है खरा है 
- क्या बडबडा रहा हूँ मैं ??
सच की खोज में लगा हूँ ??
नहीं टाइमपास कर रहा था .
ठीक कहते हैं 
इसके लिए आपके पास बेहतर आइडिया है 
मुन्ना लगाओ तो -
"राजा दिल मांगे चव्वनी उछाल के "  
(नेपथ्य में स्वर : सच की खोज के लिए जाँचआयोग की नियुक्ति की जाती है 
रिपोर्ट आने पर सार्वजनिक की जाएगी 
सच सामने लाना है , सच को सामने लाएँगे
सच को सामने आना ही होगा 
ये हमारा आपसे वादा है 
एक ईमानदार, स्वच्छ , और पारदर्शी प्रशासन के लिए हम कटिबद्ध हैं )
वैसे यहाँ प्रासंगिक नहीं है 
पर आपकी जानकारी के लिए -
अर्धसत्य के निर्देशक गोविन्द निहलानी थे .

6 जनवरी 2012

भूल गए

बचपन में दादी के किस्से-कहानियाँ 
माँ की लोरियाँ 
रेडियो पर बजती चैती , कजरी 
सरसों की मालिश , छत की धूप 
धूत - अवधूत 
पर नींद गहरी
सुनी, गुनी 
खाए , फूल गए 
भूल गए .


आदर्श नारी 
आदर्श बालक 
हमारे पूर्वज 
सब सहज   
पढ़ा , बनारस रहा 
स्कूल गए
बाकी सब भूल गए .


कवितायें , कहानियाँ , उपन्यास 
उपनिषद , स्मृतियाँ , इतिहास 
भाषा , विज्ञान , गणित 
विषय मूल , विषय अतिरिक्त 
प्रबंधन , वाणिज्य 
भौतिकी , जीव , रसायन 
अनुक्रमणिका , पाठ , प्राक्कथन 
उपसंहार 
प्रश्न और उत्तर 
और प्रश्न , और उत्तर 
व्याकरण , विश्लेषण 
संविधान , कानून , मनोविज्ञान 
साहित्य और समाज 
संस्कृति , व्यंग्य , उपहास 
सबने छला
कौन बचा भला 
प्रकृति का दोहन 
उत्पादन , विपणन
आये सब झंझावात 
एक के बाद , एक निष्पात 
परीक्षा दर परीक्षा 
होती रही समीक्षा 
उतीर्ण , अनुतीर्ण 
फला , अफला 
पादप फला - फूला 
ऋतुएँ हुई अवतीर्ण 
कभी पादप जीर्ण 
नये किसलय , नयी काया 
पतझड़ वसंत आया 
कोंपलें आती रहीं 
ग्रीष्म कुछ ताप लाया 
बढ़ती रही शाखा -प्रशाखा 
पाताल विस्तृत जड़ 
नभ प्रसरित चेतन 
यौवन का नया राग 
गाये विहाग 
आये कुछ शूल नये 
फिर सब भूल गए .


यहाँ वहाँ घूमा 
अँजुरी में ओस ली 
माथे पे माटी 
झील की शांति 
लौ की काँति 
समुद्र का गर्जन 
भ्रमर का गुंजन 
ग्राम कि निस्तब्धता 
शहर का कोलाहल 
कभी मन शांत स्थिर 
कभी वाचाल , पागल 
देखा , सुना , गुना , भान , विपान 
सब विस्मृत , सब वितान
एक मृगमरीचिका 
शब्द है छलावा 
पर्त दर  पर्त 
सत्य हो निर्वस्त्र 
ज्ञान का आवरण 
सबके मूल गए 
फिर सब भूल गए .

3 जनवरी 2012

खत

समय पे लिखा था
हर्फ़ - हर्फ़
अक्षर - अक्षर पढ़ा था
ज़िंदगी ने गढा था
कोई तहरीर नहीं थी
गूँजता था
ओंकार
ध्वनि - प्रतिध्वनि - ध्वनि
रोम रोम में कंपन
छिद्र - छिद्र में टंकार
ओंकार
किसी तूफ़ान के पूर्व का हुंकार
विचलित सा कर जाता
ह्रदय था कंपकपाता
फिर निःशब्द
शांत
शून्य
स्थिर निरंतर
अन्धकार.
कोई उत्तर नहीं , कोई प्रत्युत्तर नहीं
न ही कोई कामना
स्थिरप्रज्ञ हो जैसे
प्रश्न सारे , अनगिनत असंख्य तारे
न दिवा - न रात्रि
कौन है जो मौन मुझको पुकारे
है किसका आमंत्रण
न कोई क्षितिज  न कोई किनारा
यहाँ
सब स्थिर
सब स्थित
न जरा घटता न जुड़ता
होता सिर्फ प्रस्फुटित
क्या यही है संपूर्ण कविता
क्या आदि से जिसे चाहा , ढूँढा
वो सब समय यहीं था
जिसका न था आदि,  न अनादि
जो था स्वयं में संपूर्ण
मैं अपनी ही
सीमाओं में बद्ध
उसे नाप रहा था
भांप रहा था .
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