22 मार्च 2012

काश

एकांत में बैठ 
मैं तुम्हारे वक्ष से गुज़रती धडकनें देखूँ 
तुम मेरी आती-जाती सांसें गिनो
सुनो और बताओ 
इस जुगलबंदी से 
कोई नया राग उपजा है क्या ?
एक पुरानी किताब में 
एक खत मिला है 
लिखा है -
"तुम मुझे प्राणों से प्रिय हो 
तुम्हारा प्रेम मेरे रोम-रोम में बसा है 
तुम्हे याद न किया हो , 
ऐसा शायद ही कोई पल गुजरा है 
क्या तुम्हे पता है ?"
किसकी कहानी है यह ?
क्या वो अब भी जिंदा है ?
क्या ये प्यार जिंदा है ?
किसको पता है ?
नदी के जिस किनारे हम बैठे हैं 
घास पे लेट के जिस आसमान को तक रहे हैं 
अपने में घुल-मिल मगन 
चौपाटी की भीड़ में आइसक्रीम की तरह 
एक-दूसरे में पिघल रहे हैं 
ऐसा पहले कभी हुआ है क्या ?
यह सब एकदम नया है क्या ?
मैंने तुम्हारे लिए एक कविता लिखी थी 
मैंने तुम्हारे ऊपर एक गाना बनाया था 
मैंने तुम्हे लेकर एक सपना देखा था 
तुम्हे साथ लेकर मैं कहाँ -कहाँ गया था 
कितने दिन आवारा किये थे , कितनी रातें जगा था
तुम मौसम में रातरानी सा खिली थी 
मैं पलाश सा जला था 
मैंने तुम्हारे बिना ,तुम्हे लेकर 
एक पूरी ज़िंदगी का सफर किया था 
चाँद का सफ़र बादलों में तन्हा था 
तुम हँसती थी , मैं हँसता था
तुम्हे मालूम था लोग कहते थे 
मैं तुम्हे लेकर पगला गया था
याद करता हूँ - 
उसका भी एक मज़ा था 
जैसे तेज बारिश में कोई भीगता है
तुमने भीगते हुए मुँह पोछा है क्या ?
ऐसे में कोई रोता है क्या ?
ऐसा सबके साथ होता है क्या ? 
ये बचपना है , ये सच है क्या ? 
ऐसा कभी हुआ तो नहीं ,
ऐसा मैंने सोचा तो नहीं ,
यह सब कल्पना ही तो है ,
ज़िंदगी सपना ही तो है ,
काश, मेरी काश वाली दुनिया सच होती *
मैं होता , तुम होती , काश !!
(यह पंक्ति मित्र गुरनाम  से साभार )

14 मार्च 2012

जुबान

मैनें जुबान कब खोली है 
मौन ही अपनी बोली है 
निर्मिमेष नैनों की भाषा 
आँखों में कैसी जिज्ञासा 
ज़िंदगी छल-प्रपंच-धोखा 
दुनिया बच्चों सी भोली है ||


स्वप्न सारे थे अनूठे,
ह्रदय के अभिसार झूठे,
कहीं गिरे , कहीं उठे ,
इससे जुड़े , उससे रूठे, 
बुना यही ताना-बाना 
झीनी-झीनी झोली है ||


पूर्व में गोला सहसा ,
क्षितिज से झांके कैसा,
नील देह ओढ़े भगवा ,
रात्रि ले अंगडाई जैसा,
इतना न निहारो प्रिय 
तनि कसक चोली है ||

9 मार्च 2012

होली में


हाथों में है आज बरसों बाद फिर गुलाल होली में
मुझे क्यों याद आते हैं तुम्हारे गाल होली में||


बहुत दिनों से नहीं की कोई धमाल होली में
साली याद आती है चलो ससुराल होली में ||


जाने मनचला कर गया क्या मनुहार होली में
बिना रंग के ही हो गई गोरी पूरी लाल होली में ||


चढ़ाई भांग, ठंडाई, और हुआ अब ये हाल होली में
पड़ोसन के घर ना हो जाए कोई बवाल होली में ||


भीगा बदन , चोली, दुपट्टा, , सर, बाल होली में
न उसने ना-नुकुर की न ही कोई सवाल होली में ||


छोडो बाल्टी , गुब्बारे , पिचकारी , अबीर-गुलाल
चलो रंगों से घोल दें इस साल पूरा ताल होली में ||


मिलेगा  दिन में न मौका लगा नवकी दुल्हिन को
रात में ही किया देखो दूल्हे का क्या हाल होली में ||


गाली , मस्ती, चुहल , छेड़छाड़ , और थोड़ी ठिठोली
भड़ास दिल की औ' मन का मैल निकाल होली में ||


न ठुमरी, दादरा, चैती , फाग, होरी कोई मनवा में
उसके बाद नहीं जमता हमेँ कोई सुर-ताल होली में ||


न अब चाहता है कोई हम उसे रंग में अपने डूबो दें
बुढ़ापा रंग गया है सफ़ेद हमारे सब बाल होली में ||


उड़ाओ घर पे गुझिया, मालपुआ , तरमाल होली में
हमारे हिस्से वही परदेस वही रोटी दाल होली में ||

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