7 जून 2012

प्रवेश परीक्षा और ब्रांड आईआईटी: गलतफहमी भरपूर


प्रेसीडेंसी कॉलेज अपने स्नातकीय और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले छात्रों के चयन हेतु एक नयी और दुरूह ( कठिन) ,दो चरणों की  प्रवेश परीक्षा के लिए योजना बना रहा है . यह हास्यास्पद है, क्योंकि आईआईटी जिन्होंने - एक विशिष्ट प्रवेश परीक्षा की अवधारणा का बीजारोपण किया था -  जेईई के माध्यम से - वे स्वयं निकट भविष्य में मजबूती से इसे सरल और तरल बनाने की उम्मीद कर रहे हैं.


जेईई के उत्थान और पतन की एक त्वरित समीक्षा इस संदर्भ में बहुत समीचीन  होगी .


अपनी कई असफलताओं के बावजूद, पांच मूल आईआईटी देश के शैक्षिक परिदृश्य को पुनःपर्रिभाषित करने में एक उत्कृष्ट भूमिका निभाई है. जबकि आईआईटी इंजीनियरों ने राष्ट्र के निर्माण में कुछ सीमित भूमिका निभाई है, उनकी मुख्य भूमिका "भारतीय प्रतिभा" के चारों ओर एक रहस्य का आवरण का निर्माण करने के लिए थी , विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में  , एक राष्ट्र जिसने उनकी लायकता  को अपने देश की बनिस्पत ज्यादा पहचाना था! वास्तव में आईटी उद्योग से पहले भारत को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में स्थान दिलाने वाला  "ब्रांड आईआईटी"  था और एक हद तक अभी भी है. वास्तव में यह सबसे शक्तिशाली  भारत जनित अंतरराष्ट्रीय ब्रांड है .




लेकिन "ब्रांड आईआईटी" को लेकर कुछ गलतफहमियां भी हैं  एक छात्र होने के नाते मुझे मालूम है , मुझे पता है कि  विभिन्न आईआईटी संस्थानों में जो पढ़ाया जाता है वह कोई नई या अनूठी चीज़ नहीं है  और अधिकांशतः शिक्षकों में भी कोई सुरखाब  के पर नहीं लगे हैं  . यह सच है, वहाँ पैसे की कोई कमी तो कभी नहीं थी , इसलिए भौतिक सुविधाएँ काफी अच्छी थीं , हालांकि अब ऐसा नहीं है. पर बाद में, जब मैं अपने मास्टर्स और पीएचडी के लिए विदेश चला गया, मुझे एहसास हुआ कि कतिपय कारणों से , जिनकी समीक्षा अन्यत्र अलग से की जा सकती है - अग्रणी क्षेत्रों में अनुसंधान आईआईटी में लगभग गैर मौजूद या नगण्य  था.


वास्तव में "ब्रांड आईआईटी" , जो "ब्रांड जेईई " और पाँच मूल आईआईटी की प्रसिद्धि के लिए छद्मआवरण या पर्दा मात्र है - और हमें उन के बाद के आईआईटी - गुवाहाटी इतर पीढ़ी को पृथक देखने की जरूरत है -  और यह पूर्णतया उन छात्रों की गुणवत्ता पर पूरी तरह से निर्भर थी जो जांच के बाद उसमें आए थे , न कि   इस बात पर की उन्हें वहाँ क्या सिखाया गया था ! छात्र जो वैसी ही अच्छे थे, वे वैसे भी सफल होते , जहाँ भी जाते और एक उपफल - बाई-प्रोडक्ट - कम समय में अर्जित उत्कृष्टता की प्रसिद्धि थी जो आईआईटी की झोली में टपकी -  वहाँ पढ़ाने वालों  या प्रबंधन के बिना किसी प्रयास या योगदान के ही  ! एक गलत अवधारणा जन्मी जिसमें छात्रों की असली उत्कृष्टता को संस्थानों की उत्कृष्टता के साथ जोड़ कर देखा गया .


प्रेसीडेंसी कॉलेज अब अपने अति कठिन प्रवेश परीक्षा के साथ ही वही खेल खेलने की कोशिश कर रहा है इस उम्मीद के साथ इससे उसे सबसे अच्छे  छात्र मिलेंगे जो बाद में दुनिया भर में उसकी प्रसिद्धि फैलाएँगे


लेकिन दुर्भाग्य से प्रवेश परीक्षा की पवित्रता से समझौता किया गया है. हो सकता है  जेईई अभी भी ईमानदारी से आयोजित किया जा सकता है, पर वास्तविकता के धरातल पर सबूतों से पता चलता है कि अच्छे छात्रों को पहचान पाने की उसकी   निर्णायक ख़ुफ़िया शक्ति ध्वस्त हो चुकी है क्योंकि उसकी जगह ले ली है कोचिंग कक्षाओं की वृद्धि ने जिसने मौलिक प्रतिभा को  रट्टापंती और  "परीक्षा पार करने के अन्य कौशल और उपकरणों से"  जिससे उच्च रैंक प्राप्त हो से बदल दिया .


आईआईटी के अध्यापक अभी भी इस सच्चाई  से इनकार करते हैं . उन्हें यह हजम नहीं होती . कई लोगों का दावा है कि जेईई अभी भी महत्वपूर्ण है, लेकिन सब लोग अपने अंदर गहरे जानते है किअब ऐसा नहीं है लेकिन उन्हें लगता है जेईई का परित्याग "ब्रांड आईआईटी ' के मृत्यु-नाद जैसा होगा . जेईई के बिना, आईआईटी , एनआईटी और देश में अन्य सरकार से वित्त पोषित कॉलेजों से अलग नहीं रहेंगे . यह , और कुछ व्यक्तियों द्वारा जेईई  आयोजन से अर्जित धन ही , असली कारण है कि क्यों वे अभी भी आईआईटी जेईई के मृत-बछड़े को भूसा भरकर जितने लंबे समय हो दुधारू गाय का दूध दुहने के लिए बचाए रखना चाहते हैं.


मानव संसाधन विकास मंत्रालय और आईआईटी परिषद सही ढंग से आईआईटी के लिए एकल और अनन्य जेईई की सीमाओं को समझ एक व्यापक प्रवेश परीक्षा योजना बनाई है जो प्रवेश प्रक्रिया को सरल बनाये और असहाय छात्रों को जिन्हें अनेक विशिष्ट प्रवेश परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है से मुक्ति दिलाए.


विशिष्ट आईआईटी जेइइ समय के एक खास मोड़ पर महत्वपूर्ण और प्रासंगिक था.  अब इसकी उपयोगिता समाप्त प्राय  है और यह  विकसित होकर अन्य रूप में तब्दील होने की प्रक्रिया में है. प्रेसीडेंसी कॉलेज को एक ब्रांड के रूप में उभरने  जो  "ब्रांड आईआईटी" जैसा शानदार हो का पूरा अधिकार है लेकिन यह समझना चाहिए कि जो रास्ता आईआईटी ने  दशकों पूर्व अपनाया था अब न उपयुक्त है न उपलब्ध .


हार्वर्ड, एमआईटी, प्रिंसटन, स्टैनफोर्ड और दुनिया में अन्य सभी उच्चतम मानक संस्थान मानक सैट / जी.आर.ई . परीक्षा का स्कोर छात्रों की  जाँच और प्रवेश के लिए करते हैं . प्रेसीडेंसी या आईआईटी को ही अपनी प्रतिष्ठा का निर्माण के लिए क्यों एक विशेष प्रवेश परीक्षा की बैसाखी की जरूरत महसूस होती है ? एक विशिष्ट प्रवेश परीक्षा शिक्षा के क्षेत्र में  दुशप्राप्य उत्कृष्टता के लिए न तो जरूरी है और न ही पर्याप्त है. उन मुद्दों पर ध्यान देने की बात ज्यादा महत्वपूर्ण है जो संरचनात्मक हैं जिन्हें पूर्व पोस्ट में चिन्हित किया गया है और उन पर चर्चा किया गया है.

(अनुवाद मूल लेखक पृथ्वीस मुख़र्जी की अनुमति से : मूल अंग्रेजी लेख यहाँ है )
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