14 मार्च 2012

जुबान

मैनें जुबान कब खोली है 
मौन ही अपनी बोली है 
निर्मिमेष नैनों की भाषा 
आँखों में कैसी जिज्ञासा 
ज़िंदगी छल-प्रपंच-धोखा 
दुनिया बच्चों सी भोली है ||


स्वप्न सारे थे अनूठे,
ह्रदय के अभिसार झूठे,
कहीं गिरे , कहीं उठे ,
इससे जुड़े , उससे रूठे, 
बुना यही ताना-बाना 
झीनी-झीनी झोली है ||


पूर्व में गोला सहसा ,
क्षितिज से झांके कैसा,
नील देह ओढ़े भगवा ,
रात्रि ले अंगडाई जैसा,
इतना न निहारो प्रिय 
तनि कसक चोली है ||

2 टिप्‍पणियां:

  1. मैनें जुबान कब खोली है
    मौन ही अपनी बोली है

    aur sab kah bhi diya....
    khoob !!

    जवाब देंहटाएं
  2. मैनें जुबान कब खोली है
    मौन ही अपनी बोली है

    ....बहुत सच..बहुत कुछ कह दिया मौन रहकर..बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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