क्या कहना है ?
न ही कुछ जानना है .
और क्या बांटना है ?
अपने अपने हिस्से का आसमान ?
अपने पावों के नीचे जमीं ?
कागज पर खिंची कुछ लकीरें ?
सहेज कर रक्खी कुछ तस्वीरें ?
जानकर अच्छा लगता है -
की तस्वीर के कुछ चेहरे अब भी
जिन्दा इंसान हैं .
उनके भी पावों के नीचे है एक जमीं
उनके भी हिस्से का आसमान है .
अच्छा लगता है जानकर
उनका भी एक भगवान है .
क्या सुनना है ?
क्या कहना है ?
क्या कहना है ?
न ही कुछ जानना है .
और क्या बांटना है ?
तुम्हारा घर तुम्हारा है .
तुम्हारा परिवार तुम्हारा है .
नहीं , मैं कैसे बनूँगा तुम्हारा अतिथि ?
ऐसी नहीं कोई स्थिती.
मैं ऐसे कैसे आ धमकूं
तुम्हारे जीवन में
किसी घुसपैठिये की तरह ?
वैसे घुसपैठिया किसी की आज्ञा का मोहताज नहीं .
क्या सुनना है ?
क्या कहना है ?
न ही कुछ जानना है .
और क्या बांटना है ?
बीत गए कई दशक -
बिना कुछ सुने
कुछ कहे
बिना कुछ जाने
कुछ बाँटें .
हमारे में वैसे भी साझा क्या है ,
एक दूर अतीत के अलावा ?
किसी स्कूल / कालेज / युनिवर्सिटी में साथ पढ़े थे
किसी बेंच पर साथ खड़े थे
किसी बस में / गाडी में साथ किया था सफ़र
किसी तस्वीर में कैद हो गए थे पल भर
किसी पिकनिक में साथ झगड़े थे ,
किसी बात पर साथ हँसे थे
या कभी साथ फंसे थे .
कभी खूब खेले थे
नाचे थे
गाये थे
किसी नदी / तालाब / समुद्र में साथ नहाये थे .
बहुत से बाजे बजाये थे .
की थी बहुत बहुत धमाल .
किसी के पास होगा अब भी शायद -
एक सूखा गुलाब ,
एक पासपोर्ट फोटो ,
या इतर से महकता रूमाल .
यादों की परतों पर
परत दर परत
कहीं कुछ टीस है
तो कहीं है मिठास .
क्या सुनना है ?
क्या कहना है ?
कह दो .
मैं तुम्हे कभी पसंद नहीं था .
सच कहूँ .
तुमने नहीं कहा .
पर मैं जानता हूँ .
कह दो .
तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ .
तब नहीं लगा .
तीस साल बाद बुरा नहीं लगेगा .
दोस्त हो मेरे .
दोस्त हो मेरे .