25 अक्टूबर 2010

कह दो

क्या सुनना है ?
क्या कहना है ?
न ही कुछ जानना है .
और क्या  बांटना है ?
अपने अपने हिस्से का आसमान ?
अपने पावों के नीचे जमीं ?
कागज पर खिंची कुछ लकीरें ?
सहेज कर रक्खी कुछ तस्वीरें ?
जानकर अच्छा लगता है -
की तस्वीर के कुछ चेहरे अब भी 
जिन्दा इंसान हैं .
उनके भी पावों के नीचे है एक जमीं 
उनके भी हिस्से का आसमान है .
अच्छा लगता है जानकर 
उनका भी एक भगवान है .
क्या सुनना है ?
क्या कहना है ?
न ही कुछ जानना है .
और क्या  बांटना है ?
तुम्हारा घर तुम्हारा है .
तुम्हारा परिवार तुम्हारा है .
नहीं , मैं कैसे बनूँगा तुम्हारा अतिथि ?
ऐसी नहीं कोई स्थिती.
मैं ऐसे कैसे आ धमकूं
तुम्हारे जीवन में 
किसी घुसपैठिये की तरह ?
वैसे घुसपैठिया किसी की आज्ञा का मोहताज नहीं .
क्या    सुनना है ?
क्या कहना है ?
न ही कुछ जानना है .
और क्या बांटना है ?
बीत गए कई दशक -
बिना कुछ सुने 
        कुछ कहे 
बिना कुछ जाने 
        कुछ बाँटें .
हमारे में वैसे भी साझा क्या है ,
एक दूर अतीत के अलावा ?
किसी स्कूल / कालेज / युनिवर्सिटी में साथ पढ़े थे 
किसी बेंच पर साथ खड़े थे 
किसी बस में / गाडी में साथ किया था सफ़र 
किसी तस्वीर में कैद हो गए थे पल भर 
किसी पिकनिक में साथ झगड़े थे ,
किसी बात पर साथ हँसे थे 
या कभी साथ फंसे थे .
कभी खूब खेले थे 
              नाचे थे 
              गाये थे 
किसी नदी / तालाब / समुद्र में साथ नहाये थे .
बहुत से बाजे बजाये थे .
की थी बहुत बहुत धमाल .
किसी के पास होगा अब भी शायद -
एक सूखा गुलाब ,
एक पासपोर्ट फोटो ,
या इतर से महकता रूमाल .
यादों की परतों पर 
परत दर परत 
कहीं कुछ टीस है 
तो कहीं है मिठास .
क्या सुनना है ?
क्या कहना है ?
कह दो .
मैं तुम्हे कभी पसंद नहीं था .
सच कहूँ .
तुमने नहीं कहा .
पर मैं जानता हूँ .
कह दो .
तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ .
तब नहीं लगा .
तीस साल बाद बुरा नहीं लगेगा .
दोस्त हो मेरे .

1 टिप्पणी:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...