2 मई 2012

तब न कविता अधूरी होगी

शब्द सिक्कों की तरह 
दिमाग में खन-खन बजें 
आप जेब में हाथ डाल कर
मन-मन गिनें 
कुल कितने है ?
कहाँ-कहाँ से बीने हैं ?
इनसे क्या आएगा ?
क्या घर चल पायेगा ?
उधेड़ बुनता हूँ 
असमंजस रहता हूँ 
जेब में मुट्ठी बाँध रक्खी है 
कोई शब्द कहीं छूटा तो नहीं ?
कोई फूटा रस्ता तो नहीं ?
हिसाब में कुछ कम होते हैं 
अर्थ उधार पर भी मिलते हैं 
बनिया अगर नहीं  माना तो ?
खाली हाथ फिर लौटा तो ?
और शब्द कमाने होंगे 
जेब काफी भरनी होगी 
शब्दों के बाज़ार में अब 
जिन्सों की कीमत बढ़ी हुई है 
आसमान को छूती हैं अब 
जीना फिर भी लाचारी है 
कम मुकम्मल तैय्यारी है 
कुछ काम नया लेना होगा 
थोड़ा और समय लगेगा 
थोड़ा शब्द कमाना होगा 
कुछ और बचाना होगा 
जब पूरी जेब भरी होगी 
तब न कविता अधूरी होगी 
बाज़ार तभी पहचानेगा 
मुखपृष्ठों पे आने देगा 

4 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों की कमाई अब अर्थ से हो रही है !!

    जवाब देंहटाएं
  2. शुक्रवार के मंच पर, लाया प्रस्तुति खींच |
    चर्चा करने के लिए, आजा आँखे मीच ||
    स्वागत है-

    charchamanch.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. थोड़ा और समय लगेगा
    थोड़ा शब्द कमाना होगा !!
    भाव को सुन्दर शब्दों का साथ मिल जाएगा !

    जवाब देंहटाएं

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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