देह है
दैहिक है
दहकता है
मस्तिष्क से पैर
शिराओं में तरल
बहता लावा
देह वन में दावानल
देहयष्टि
पोर-पोर अंगारा
एक टुकड़ा
होंठों पै
अब भी दग्ध है
एक टुकड़ा
कनपटी से चिपका
आसपास गालों तक
रोम-रोम
तप्त है
सुर्ख हैं
रक्ताभ कपोल
जिस्म का ज्वार !
बहती है स्वेद की क्षीण धार !!
यह क्या है ह्रदय का उदगार !!!
प्रेम है
लौकिक है
ललकता है
आँखों में
थिरता है
बैचेन एकलता है
रीझना , रूठना , मनाना
सजना , संवरना, इठलाना
समझना , समझाना
वृथा बहलाना
खेल , खिलौना , खेलना
उम्र का बचपना
सृष्टी की रचना
ऐसी ही है संरचना
पिहु-पिहु पुकारना
चकोर का ताकना
मन की सरलता
मन का जोड़ना
विश्व क्या द्वैत है ?
शाश्वत द्वन्द
ये नश्वर काया
जो पाया
क्या माया
यह कैसा भोग ?
प्रेम क्यों रोग ??
क्या कहते ज्ञानी
प्रेम की क्या बानी
एक ही वचन बोल
प्रिये ! सिर्फ तुमसे है प्यार !
ले कोई प्रियतम पुकार !!
ढाई आखर आखिरकार !!!
(१४ फरवरी का बुखार उतरने के बाद )
दैहिक है
दहकता है
मस्तिष्क से पैर
शिराओं में तरल
बहता लावा
देह वन में दावानल
देहयष्टि
पोर-पोर अंगारा
एक टुकड़ा
होंठों पै
अब भी दग्ध है
एक टुकड़ा
कनपटी से चिपका
आसपास गालों तक
रोम-रोम
तप्त है
सुर्ख हैं
रक्ताभ कपोल
जिस्म का ज्वार !
बहती है स्वेद की क्षीण धार !!
यह क्या है ह्रदय का उदगार !!!
प्रेम है
लौकिक है
ललकता है
आँखों में
थिरता है
बैचेन एकलता है
रीझना , रूठना , मनाना
सजना , संवरना, इठलाना
समझना , समझाना
वृथा बहलाना
खेल , खिलौना , खेलना
उम्र का बचपना
सृष्टी की रचना
ऐसी ही है संरचना
पिहु-पिहु पुकारना
चकोर का ताकना
मन की सरलता
मन का जोड़ना
विश्व क्या द्वैत है ?
शाश्वत द्वन्द
ये नश्वर काया
जो पाया
क्या माया
यह कैसा भोग ?
प्रेम क्यों रोग ??
क्या कहते ज्ञानी
प्रेम की क्या बानी
एक ही वचन बोल
प्रिये ! सिर्फ तुमसे है प्यार !
ले कोई प्रियतम पुकार !!
ढाई आखर आखिरकार !!!
(१४ फरवरी का बुखार उतरने के बाद )
बुखार उतर गया,
जवाब देंहटाएंप्रेम निखर गया !
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना है....