रेगिस्तान
रेत का वीरान
कितने इतिहासों की स्मृति
कितने कवलयतियों का श्मशान
ज़िंदगी
रण-बाँकुरा
या कालबेलिया बंजारा
सूरज के सिर पै सवार
दौड़ता घुड़सवार
टापों की पुकार
जिंदगी भागती
रेत की आँधी
सी उड़ चली
कट चली
रेत के सब टीले
बदलते रहे कबीले
बंजारे , बंजारे
किसको पुकारे
आज यहाँ कल वहाँ
चरैवेति , चरैवेति, चले
हमको क्या धमकाते ?
क्या है जो हार जाते ?
रेत की आँधियाँ
सहस्त्रार शताब्दियाँ
सूर्य के प्रहार
रोज़ हम झेलते
ज़िंदगी को ठेलते
लड़ रहे युद्ध हैं
रंगहीन समुद्र हैं
किन्तु सब रंग जिया
बांधे सिर पर लहरिया
रंगों का इन्द्रधनुष !
जीवन एक युद्ध !
हरदम , मार्ग दुर्गम , अवरुद्ध
था जिसका वरण
किया धारण
हाथ - शस्त्र
लौह - वस्त्र
नेत्र - निमेष
शत्रु - निषेध
दुर्ग - प्राचीर
किले - अभेद्य
धधकती ज्वालाओं में
कवलित जौहर
केसरिया पताकाओं में
हल्दी रक्त गौहर
अदम साहस
अदम साहस
आदिम अट्टहास
शिशु शैशव बचा
जो भी बचा
एक ही इतिहास
रक्त रंजित मञ्जूषा
सबमें पारंगत
भाला, बरछी , तलवार
इन्हीं खिलौनों रत
पीढ़ी दर पीढ़ी
लड़ाईयां लड़ी
चलता रहा झगडा
लड़ा, लड़ा, और लड़ा
नहीं हुआ नत
जीवन अस्त-व्यस्त
नहीं कोई नदी
बहा रक्त-प्रपात
सिंचित सारी धरा
रक्त-प्रपात, रक्त प्रपात
हमें कहाँ नींद , हमें कहाँ सोना
राणा प्रताप , राणा प्रताप
जीवन का तम्बू जहाँ उखड़ा
मृत्यु का वहाँ गड़ा
जीवन अस्त-व्यस्त
नहीं हुआ नत.
सुन्दर पंक्तियों के साथ लिखी गई बेहतरीन रचना ...
जवाब देंहटाएंसशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंहर दिशा छान मारी
जवाब देंहटाएंइतिहास की हर परत उघाड़ी
लेखनी चल रही निरंतर ,
हो गए हो अतुल-खिलाडी !!