भोपाल की भीषण त्रासदी के बाद
विश्व कविता समारोह के आयोजन पर्व पर
गूंजा विख्यात कवि का स्वर
“मरे हुए लोगों के साथ मरा नहीं जा सकता “
मनुष्य कहाँ मरता है ?
मरती है संवेदना
भोग नहीं मरता
इच्छायें नहीं मरतीं
कामना नहीं मरती !
कौवा , कुत्ता , गाय , ब्राह्मण
दसवाँ, बारहवाँ, तेरहवीं
मुंडन ,स्नान , पगड़ी
पिण्डदान, हांडी , अस्थिफूल
सब संगम के कूल
संस्कार है मृत्यु !!
मणिकर्णिका , गया , गंगासागर
जिसको जो अनुकूल
गौदान , सीधा , भोज
तर्जन , विसर्जन
सबकी अपनी सोच
व्यापार है मृत्यु !!
अर्पण , तर्पण
संध्या , इक्कीस एकादशी
क्या हुआ , अगर है ये इक्कीसवीं सदी
अब इस अवसर की ड्रेस बनती
त्यौहार है मृत्यु !!
शोर है जीवन , श्मशान है मृत्यु .
प्रगटती है अभिलाषा
अब भी है प्रत्याशा –
“किसी जगह की मिटटी भीगे ,
तृप्ति मुझे मिल जायेगी”
कौन पीये जीवन हाला ?
मृत्यु अगर हो मधुशाला ?
उपहार है मृत्यु !!
पहले आत्मा शरीर को त्याग देती थी
अब शरीर ने आत्मा को त्याग दिया है
कठोपनिषद , गीता है ,
यम है , नचिकेता है
और कृष्ण का विराट स्वरुप
शब्द तो सारथि है
अर्थ असल पारखी है
कवि परंपरा का निर्वाह करता है
पितृपक्ष में पुत्र को ही याद करता है
बेटियों वाले कहाँ जाएँ ?
क्या हम हैं ‘ब्रह्मराक्षस’ ? 'मुक्ति – बोध' के ?
( परिकल्पना पर सर्वप्रथम प्रकाशित )
विश्व कविता समारोह के आयोजन पर्व पर
गूंजा विख्यात कवि का स्वर
“मरे हुए लोगों के साथ मरा नहीं जा सकता “
मनुष्य कहाँ मरता है ?
मरती है संवेदना
भोग नहीं मरता
इच्छायें नहीं मरतीं
कामना नहीं मरती !
कौवा , कुत्ता , गाय , ब्राह्मण
दसवाँ, बारहवाँ, तेरहवीं
मुंडन ,स्नान , पगड़ी
पिण्डदान, हांडी , अस्थिफूल
सब संगम के कूल
संस्कार है मृत्यु !!
मणिकर्णिका , गया , गंगासागर
जिसको जो अनुकूल
गौदान , सीधा , भोज
तर्जन , विसर्जन
सबकी अपनी सोच
व्यापार है मृत्यु !!
अर्पण , तर्पण
संध्या , इक्कीस एकादशी
क्या हुआ , अगर है ये इक्कीसवीं सदी
अब इस अवसर की ड्रेस बनती
त्यौहार है मृत्यु !!
शोर है जीवन , श्मशान है मृत्यु .
प्रगटती है अभिलाषा
अब भी है प्रत्याशा –
“किसी जगह की मिटटी भीगे ,
तृप्ति मुझे मिल जायेगी”
कौन पीये जीवन हाला ?
मृत्यु अगर हो मधुशाला ?
उपहार है मृत्यु !!
पहले आत्मा शरीर को त्याग देती थी
अब शरीर ने आत्मा को त्याग दिया है
कठोपनिषद , गीता है ,
यम है , नचिकेता है
और कृष्ण का विराट स्वरुप
शब्द तो सारथि है
अर्थ असल पारखी है
कवि परंपरा का निर्वाह करता है
पितृपक्ष में पुत्र को ही याद करता है
बेटियों वाले कहाँ जाएँ ?
क्या हम हैं ‘ब्रह्मराक्षस’ ? 'मुक्ति – बोध' के ?
( परिकल्पना पर सर्वप्रथम प्रकाशित )