जमीं पर उतरे चाँद से बतियाता है कौन
स्निग्ध चांदनी में है ये किसका मौन
किसने साहिल पे बिखेरी चांदी की रेत
इन पत्तियों पर खिला किसका स्वेद
हिमाच्छादित चोटियों पर किसका तेज
हजारों रास्ते कौन सा उससे आमेज
चलो फिर इन घाटियों में ढूंढें खोई हवा
हमारी बस्तियों से रूठ कर निकली सबा
फिर पुरनम आँखों से हुआ विसाल
पत्थर से बादल टकराए बरसे हिमाल
गर्मिए ग़म से निकले कितने चेनाब
दौड़ता दरिया सागर से मिलने बेताब
फिर इन चश्मो से निकलें मौजें बहारां
गूंजे यहाँ उसके जलवों का लश्कारा.
स्निग्ध चांदनी में है ये किसका मौन
किसने साहिल पे बिखेरी चांदी की रेत
इन पत्तियों पर खिला किसका स्वेद
हिमाच्छादित चोटियों पर किसका तेज
हजारों रास्ते कौन सा उससे आमेज
चलो फिर इन घाटियों में ढूंढें खोई हवा
हमारी बस्तियों से रूठ कर निकली सबा
फिर पुरनम आँखों से हुआ विसाल
पत्थर से बादल टकराए बरसे हिमाल
गर्मिए ग़म से निकले कितने चेनाब
दौड़ता दरिया सागर से मिलने बेताब
फिर इन चश्मो से निकलें मौजें बहारां
गूंजे यहाँ उसके जलवों का लश्कारा.
गर्मिए ग़म से निकले कितने चेनाब
जवाब देंहटाएंदौड़ता दरिया सागर से मिलने बेताब
बहुत खूबसूरत ... आमेज का अर्थ नहीं समझ आया ..
bahut sundar bhavabhivyakti .aabhar
जवाब देंहटाएंईश्वर से मिला हुआ कौन सा रास्ता है "उससे आमेज ". वैसे एक प्रयोग दुष्यंत की पंक्तियों में है " मसलहत आमेज होते हैं सियासत के कदम , तू ना समझेगा सियासत तू अभी इंसान है ".
जवाब देंहटाएंमैंने मिलाया नही , यौगिक रूप में , एक छोर पर रास्ता और एक छोर पर वो ईश्वर , आमेज कौन सा यही नही समझ पाया .
बहुत सुंदर बनी है रचना ...
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में गहन अर्थ लिए हुए....
''phir purnam aankhon se hua visaal''-ye bhi nahin samajh aaya .
@अनुपमा त्रिपाठी पुरनम यानि भींगी हुई विसाल का अर्थ मिलन या सामना .
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