26 जुलाई 2011

बेजुबाँ

दो जिस्मो के बीच टूटा रिश्ता पड़ा था 
करवट का फासिला  कितना बड़ा था .

बहुत बेजुबाँ थी दिलों की तल्खियां 
अल्फाज था फिर गले में अकड़ा था .

अक्सर करीने से सजे फूलों का ही  
यहाँ बागीचे के बागबां से झगड़ा था .

इसी बहाने पुराने खतों का जिक्र आया
ये याद आया कितने शौक से पढ़ा था .

यादों के बादल तब ही  आँखों में उतरे
दिल में जब बहुत उमड़ा -घुमड़ा था .

आओ उसे फिर उन्ही गलियों में ढूंढे  
बचपन के खिलौनों का टूटा टुकड़ा था .

कच्ची नींद का ख्वाब सिरहाने बैठा रहा  
जिसे अधूरा समझा वही पूरा गढ़ा था .

4 टिप्‍पणियां:

  1. beautifully describe every situation touching also
    thangs for follow my blog and permoting my post hope ur visit in future also

    जवाब देंहटाएं
  2. यादों के बादल तब ही आँखों में उतरे
    दिल में जब बहुत उमड़ा -घुमड़ा था .

    आओ उसे फिर उन्ही गलियों में ढूंढे
    बचपन के खिलौनों का टूटा टुकड़ा था .

    बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ...आभार ।

    जवाब देंहटाएं

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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