19 अगस्त 2011

वह नहीं बोलती

वह नहीं बोलती 
खिड़की के पास बैठे 
आते जाते लोगों को देखती 
टकटकी लगाये 
देर तक 
बहुत देर तक
बिना हिले डूले
लगातार 
घंटो घंटो तक
बस देखती
नहीं बोलती .
मैंने देखा है उसे 
सामने वाले मकान की 
खिड़की के पास बैठे
वह गली से तीसरा मकान
खिड़की
तीसरी खिड़की
पहली मंजिल की
दूसरी खिड़की के सामने खम्भा है
बिजली का 
जिसके तार पर बैठा कबूतर 
इधर उधर तार पर खिसकता 
दायें बाएं .
मेरी निगाह कभी कभी
उस ओर भी चली जाती 
गली से गुजरते हैं सारा सारा दिन 
बहुत से लोग 
सुबह सुबह
दूध वाला साईकल पर
अखबार वाला
धीरे धीरे
डालता , फेंकता , सरकाता अखबार
घर घर
कभी कभी हाथों में धर देता 
गरम गरम खबरें 
सब्जी वाला ठेला 
आवाज़ लगाता - ' सब्जी - सब्जी ले लो '
सुबह सुबह एक लम्बे बांस में बंधी झाड़ू लिए 
बुहारती सड़क 
जमा करती बुहारा हुआ कूड़ा 
खम्बे के पास
नहीं कोई ख़ास 
मर्तबान 
बस यूँ ही 
एक स्थान जमा करने का
खम्बा 
जो सामने वाले घर की
दूसरी खिड़की के  सामने  था 
जहाँ उसका चबूतरा ख़त्म होता है
मैं यह सब देखता हूँ 
सोचता हूँ
पर नहीं मालूम 
वह क्या सोचती है
वह सिर्फ देखती है
खिड़की के पास बैठे
आते जाते लोगों को देखती
टकटकी लगाये
देर तक
बहुत देर तक
शब्द कभी कभी
चुप रहें तो बहुत बोलते हैं
कुछ लोग बिना बोले
कितना कुछ कह जाते हैं
हमें सारी जिन्दगी याद आते हैं
कविता बिना शब्दों के कैसी होगी ?
सामने वाले मकान की
तीसरी खिड़की
पहली मंजिल की
ओर ताकता हूँ
तीस साल बाद लौटा हूँ
अब वहां कोई नहीं बैठा है

6 टिप्‍पणियां:

  1. यादों के गलियारे से निकली एक सुंदर कविता

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  2. समय की बहुत सुन्दर यात्रा करा दी आपने

    जवाब देंहटाएं
  3. Aapke shabdo ne tasveer utaar di kagaj par....sach aisa lagta hai vakt ko dekh rahi hu aapke shabdo mai badalte huay.

    Bahut sundar aur satya kavita! Bahut bahut badhai.

    -Shaifali
    http://guptashaifali.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. Aapke shabdo ne tasveer utaar di kagaj par....sach aisa lagta hai vakt ko dekh rahi hu aapke shabdo mai badalte huay.

    Bahut sundar aur satya kavita! Bahut bahut badhai.

    -Shaifali
    http://guptashaifali.blogspot.com

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आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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