किसी को उस मोड़ से दहशत नहीं होती
जहाँ अब हाथों से ईबादत नहीं होती .
हर मुलाकात इक रस्म से ज्यादह नहीं
कोई जुम्बिश कोई हरकत नहीं होती .
पहले हर चीज को मचलता था दिल
अब किसी बात को तबियत नहीं होती .
हर चोट पर दर्द होता था जिसे , उसे
अब जख्मों से भी दिक्कत नहीं होती .
ये दिल जो यहाँ वहां रहने से डरता है
वर्ना रहने को क्या ईमारत नहीं होती .
रोज़ का मजमून इक दिन का माजरा नहीं
इसे रिश्ता कहते हैं ये सोहबत नहीं होती .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके समय के लिए धन्यवाद !!