घड़ी के कमान सी
चल रही है जिन्दगी
वक्त कट रहा है
वक्त में सी रहा है
खुद को आदमी .
आँखों के आंसुओं से
उभरी दो लकीरें
और जिन्दगी का रुख
नहीं बदला ;
टूट टूट कर बालों ने
समय के पहले
बूढा किया और गर्द
चेहरों पर सिमटी
और इन सिमटी लकीरों में
यादों सा पी रहा है
अपना लहू आदमी .
समस्याओं के घेरे में घूमता पंखे सा
और हो उठा है ठण्ड की चाहत में गर्म
आदमी ; अंतरिक्ष में घूमता
कैद हो गया कमरे में .
यथार्थ को कहती विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 03-10 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में ...किस मन से श्रृंगार करूँ मैं
'अंतरिक्ष में घूमता
जवाब देंहटाएंकैद हो गया कमरे में ..
अब क्या कहें,इसके आगे ?
बढ़िया लिखा है.
जवाब देंहटाएं