सत्य का रूप हर दौर में बदला है
सत्य क्या दुनिया में एक रहा है ?
सत्य है एक सुलगते चूल्हे जैसा
हर कोई अपनी रोटी सेंक रहा है .
एक झूठ जिसे गर्द ही गर्द मिली
सत्य के मामले मीनमेख रहा है .
सत्य जैसे एक अछूत गुडिया हो
गाल खींच हर कोई फेंक रहा है .
सत्यवादियों ने ही सत्य को छला
सत्य खुद को शर्म से देख रहा है .
सत्य की जात गिरगिट पी आई है
सत्य तबसे राजसत्ता की सेज रहा है .
सत्य तबसे राजसत्ता की सेज रहा है...... अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएं