30 सितंबर 2011

सत्य

सत्य का रूप हर दौर में बदला है 
सत्य क्या दुनिया में एक रहा है ?
सत्य है एक सुलगते चूल्हे जैसा  
हर कोई अपनी रोटी सेंक रहा है .
एक झूठ जिसे गर्द ही गर्द मिली 
सत्य के मामले मीनमेख रहा है .
सत्य जैसे एक अछूत गुडिया हो
गाल खींच हर कोई फेंक रहा है .
सत्यवादियों ने ही सत्य को छला
सत्य खुद को शर्म से देख रहा है .
सत्य की जात गिरगिट पी आई है 
सत्य तबसे राजसत्ता की सेज रहा है .  

1 टिप्पणी:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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