23 फ़रवरी 2012

इतिहास ( सप्तम किश्त : क्रमशः )

व्यापार , फिर व्यापार है 
लक्ष्मी है चंचला 
कब कहाँ ठहरी है 
ये क्या ज्ञान की गठरी है 
कुबेर का खज़ाना 
कौन सदा महेंद्र है 
बदलता केन्द्र है
वक्त का पहिया दौड़ता , चलता 
बदलती है धुरी 
हारे हुए हाथी, हाथीदांत सामग्री बने 
सूत के वस्त्र , ऊनी कालीन 
इत्र , विचित्र 
काली मिर्च 
लौंग , इलायची 
मसाले , मसाले
आदि इत्यादि 
नावें बनी 
तोपची रहे तोपची 
बंदूकें बन गईं जब 
तब 
प्यादे बादशाहों पर पड़े भारी 
समुद्र के रास्ते 
बढ़ गई 
राजशाही इज़ारेदारी
झुक पहाड़ गए
अगस्त्य विन्ध्य लांघ गए
स्वतंत्र सब देश बने 
साम्राज्य उपनिवेश बने 
नवजागरण काल 
प्रतिष्ठित हुआ 
बढ़ गई पशुता 
दास व्यापार हुआ 
लज्जित मनुष्यता 
आदमी पर आदमी की प्रभुता 
उस साम्राज्य में सूर्य नहीं डूबता 
फैला इतने योजन 
चवन्नी में नहीं बिकता 
उस 
इतिहास का पर्चा
सबसे सस्ता मनोरंजन 
इतिहास चर्चा .

22 फ़रवरी 2012

इतिहास ( षष्ठ किश्त : क्रमशः )

सिर्फ नहीं बर्फीली हवाओं
और हमारे बीच मानों
हिमालय जैसे
काल के मध्य खड़ा 

वैसे ही
विन्ध्य -सतपुड़ा
दुर्गम , दुष्कर , दुरूह
प्रस्तर चोटियाँ
एक एक खण्डकाव्य
वाल्मिकी रामायण
भाषा का एक अरण्य
ऋषि अगस्त्य
वनाच्छादित
संस्कृति वांग्मय
लाँघ न पाया कोई
शत्रु, दस्यु , लुटेरा
शब्द , ध्वनि , ॐकार
वयं रक्षामः
और बच गए
सोमनाथ
जाने कितने सोमनाथ
वयं यक्षामः
एक, पद्मनाभ .

इतिहास ( पंचम किश्त : क्रमशः )

इतिहास फिर क्या है 
एक निरंतर यात्रा 
कुछ पड़ाव 
फिर आये 
बाली,जावा,सुमात्रा 
दूर-सुदूर से भरा 
स्वर्ण अर्जित कोषागार 
धन-धान्य व्यापार
तक्षशिला, नालंदा 
और करने संचय 
ज्ञान-कोष अक्षय 
ज्ञानपिपासु व्हेनसांग , फाह्यान 
मेगास्थनीज, अलबरूनी 
यूनान-मिस्त्र-रोमा  
चीनो-अरब-सारा 
इतिहास की गोचर पृष्ठभूमि 
ले फिरे किम्वदंतियां
सम्पन्नता-विवृत्तियाँ  
व्यापारी , यात्री , छात्र 
यात्रा-वृतांत 
आये , हुआ समागम
बुद्ध , गौतम , शरणागत 
धम्मं शरणं गच्छामि 
संघम शरणं गच्छामि 
बुद्धम शरणं गच्छामि 
हुआ प्रसार , प्रचार 
महावीर आगमन 
णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं 
णमो आइरियाणं 
जय जिनेन्द्र 
जय महावीर 
थी यह शून्य की आय ?
या थी यही भूमि धाय ?
सब प्रश्न पूछते हैं प्राय: !
सत्ता और शक्ति 
बदलने लगे समीकरण 
फिर छिड़ा संग्राम 
युद्ध था संहारक 
भग्नावशेष स्मारक 
लूट ली सम्पत्तियाँ
मिटा दीं सब रीतियाँ 
शोकाकुल सब समाज
कुलीन और साधारण जमात 
नैराश्य का उद्दीपन 
आस्था का उद्वेलन 
विश्वास डगमग डगमग 
इतिहास का प्रतिफलन 
कौंधा अँधेरे में चमक 
अंधकार को प्रकाश सूझा 
ज्ञान की प्रकाश्य पूजा 
मार्ग था भक्ति
भक्ति और भक्ति 
आसक्ति , विश्वास, श्रद्धा , शक्ति 
जन-संबल लौटा  
उधर बिछा 
चौसर का हाथ 
चलो चलें नए दाँव 
फिर चलो हस्तिनापुर 
रचें नई महाभारत 
इतिहास ले रहा करवट
हाथी , ऊंट , वजीर, बादशाह 
फिर बिछी बिसात 
शतरंज के प्यादे 
ढाई घर उलांघे
घोड़े आये , दौड़े आये
सरपट भागे 
पोरस के साथी 
डुबो गये हाथी 
सिकंदर को मिला आम्भी 
आया , एक अजनबी 
फारस का गज़नवी
फिर जिसके 
हाथ से 
छुटा समरकंद 
और छुटा वादी-ए-फरगना 
वहाँ से चला मंगोल 
फारस में ढला मुग़ल 
बना मुग़ल सरगना 
लाया साथ 
गोला , बारूद , आग्नेयास्त्र, तोपखाना 
पड़ गया पुराना 
धनुष की प्रत्यंचा, गदा, बर्छी, भाला, तलवार 
शक्ति का ह्रास 
बदलने लगा इतिहास 
बदला भूगोल 
हिंदुकुश निर्वासना 
दोआब में बस गया 
यहीं रच गया 
कहते रहे ज्ञानी 
बूझल बानी 
कोऊ नृप होए हमैं का हानी.

इतिहास ( चतुर्थ किश्त : क्रमशः )


संस्कृत 
वेद , ऋचा , श्लोक , उपनिषद 
दर्शन , शास्त्रार्थ 
एक प्रथा 
सिंधु सभ्यता 
की लिपी अपठित , अलभ
चित्र सन्मुख 
पशुपति – नंदी मुद्रा 
अंकित विशेष 
देवता शिव सा  
स्वरुप महेश
रूद्र महादेव 
देवाधिदेव 
तीर्थ दुर्गम  
कैलाश – मानसरोवर 
अट्ठारह ज्योतिर्लिंग 
प्राचीन अर्वाचीन देवता 
युग बाद आये  द्वापर, त्रेता  
तब छाया था 
शंकर - भाष्य 
संस्कृत भाषा 
ॐकार 
शब्द ब्रह्म 
नाद ब्रह्म
अउम ध्वनि 
व्याकरण पाणिनि 
स्मृति शाश्वत 
वैदिक विरासत 
देववाणी तुल्य 
अमृत-सम-अमूल्य 
पर इनसे इतर 
मनुष्य बहुल 
किस स्वर संकुल 
सकल-संवाद-रत 
क्या उनके प्रयत 
थे स्वर दीर्घ 
या सिर्फ 
ह्रस्व    
क्या पता 
क्या थे सब शतपत 
या एतरेय ?
तैतरीय निषाद 
एकलव्य 
संशय  की पराकाष्ठा 
है मुझे भी सालता  
क्या करें 
कैसे रहें 
सब प्रश्न स्वयं से पूछते रहे 
नचिकेत अग्नि के पूर्वाग्रह 
हों कितने भी गूढ़
हम मूढ़  
यम के द्वार डटे रहे 
आर्य –अनार्य
विभाजित के विपर्यस्त
भोगा 
राम का वनवास 
संपर्क प्रथम 
वनवासी समाज 
केवट संगम 
स्वप्न समागम 
बाँधा एक पुल,एक सेतु 
फिर भी रहा कटा 
जन-ज्वार नहीं पटा
धोबी का ताना 
बना उर-छाला
सीता - त्याग
अग्नि-परीक्षा 
आज तक खीजता 
खोजता मृगमरीचिका  
कल्पनालोक 
यूटोपिया 
किसने दिया , किसने दिया 
रामराज्य , रामराज्य   
तुलसी के सात सोपान 
भक्तिमय उपादान 
श्रवण-पान श्रवण-गान .
बदली , बदली, भाषा बदली 
चार कोस पर बोली 
ब्रज , अवधी , मीरा , रहीम , कबीर, रसखान 
विद्यापति , पद्मावत , जायसी, नानक, सूरदास 
उठे ढोल , मंजीरे 
भक्ति रस में धीरे -धीरे 
पीछे छूटा बमभोला 
हर हर महादेव 
महामृत्युन्जय
कृष्ण की रासलीला 
बाल गोपाल उनका झूला 
बही बही बयार 
उमडा उमडा जनज्वार 
कुछ-कुछ पटा
लोक-जन , जन-जन 
समरसता , समरसता 
ब्रज की बोली , अवधी की सत्ता 
भाषा का रामराज्य बसता !!

21 फ़रवरी 2012

इतिहास (तृतीय किश्त : क्रमशः )


रेगिस्तान 
रेत का वीरान 
कितने इतिहासों की स्मृति 
कितने कवलयतियों का श्मशान 
ज़िंदगी 
रण-बाँकुरा  
या कालबेलिया बंजारा 
सूरज के सिर पै सवार 
दौड़ता घुड़सवार
टापों की पुकार 
जिंदगी भागती 
रेत की आँधी
सी उड़ चली 
कट चली    
रेत के सब टीले 
बदलते रहे कबीले 
बंजारे , बंजारे 
किसको पुकारे 
आज यहाँ कल वहाँ 
चरैवेति , चरैवेति, चले 
हमको क्या धमकाते ?
क्या है जो हार जाते ?
रेत की आँधियाँ
सहस्त्रार शताब्दियाँ 
सूर्य के प्रहार 
रोज़ हम झेलते 
ज़िंदगी को ठेलते 
लड़ रहे युद्ध हैं 
रंगहीन समुद्र हैं 
किन्तु सब रंग जिया 
बांधे सिर पर लहरिया 
रंगों का इन्द्रधनुष !
जीवन एक युद्ध !
हरदम , मार्ग दुर्गम , अवरुद्ध 
था जिसका वरण
किया धारण 
हाथ - शस्त्र
लौह - वस्त्र 
नेत्र - निमेष 
शत्रु - निषेध 
दुर्ग - प्राचीर  
किले - अभेद्य 
धधकती ज्वालाओं में 
कवलित जौहर 
केसरिया पताकाओं में 
हल्दी रक्त गौहर 
अदम साहस 
अदम साहस 
आदिम अट्टहास
शिशु शैशव बचा 
जो भी बचा
एक ही इतिहास 
रक्त रंजित मञ्जूषा  
सबमें पारंगत 
भाला, बरछी , तलवार
इन्हीं खिलौनों रत  
पीढ़ी दर पीढ़ी 
लड़ाईयां लड़ी 
चलता रहा झगडा 
लड़ा, लड़ा, और लड़ा 
नहीं हुआ नत 
जीवन अस्त-व्यस्त
नहीं कोई नदी 
बहा रक्त-प्रपात 
सिंचित सारी धरा 
रक्त-प्रपात, रक्त प्रपात 
हमें कहाँ नींद , हमें कहाँ सोना
राणा प्रताप , राणा प्रताप
जीवन का तम्बू जहाँ उखड़ा
मृत्यु का वहाँ गड़ा 
जीवन अस्त-व्यस्त 
नहीं हुआ नत. 

इतिहास - ( द्वितीय किश्त: क्रमशः )

मैदान में बस गए
गंगा दोआब भए
पंजआब भए
यहाँ वहाँ सर्वत्र
भागीरथ के साठ सहस्त्र
पुरखों की हड्डियों से उर्वरा
भर गया सुनहरी
बालियों सा सोना खरा
खेती-किसानी की
तुम्हारे खलिहान भए
कोल्हू के बैल भए
गाय को माता किए
आता किए , जाता किए
खता किए, खाता किए
घाट नहाए , मंदिर के द्वार रहे
गुरु द्वारे मत्था टेका
फ़कीर की मज़ार गए
गाए कजरी , ठुमरी , चैती , फगवा
इन सबसे ऊबे तो डार लिए भगवा
बांचन लागे तुलसी की रामायन
गाए लागन मीरा,सूर के भजन
पार की वैतरणी
कबीर की बानी
दुनिया आनी जानी
थके हारे , सुते रहे
दस माह जुते रहे
पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ
कुछ बूझा, कुछ नहीं बूझा
वही काटा , जो बुआ
हम का कहें बबुआ
कोऊ नृप होए हमैं का हानी ?

हम तो पढ़ें मित्रों मरजानी ?

17 फ़रवरी 2012

प्रेम

देह है 
दैहिक है 
दहकता है 
मस्तिष्क से पैर 
शिराओं में तरल 
बहता लावा
देह वन में दावानल 
देहयष्टि 
पोर-पोर अंगारा
एक टुकड़ा  
होंठों पै 
अब भी दग्ध है 
एक टुकड़ा 
कनपटी से चिपका 
आसपास गालों तक 
रोम-रोम 
तप्त है 
सुर्ख हैं  
रक्ताभ कपोल 
जिस्म का ज्वार !
बहती है स्वेद की क्षीण धार !!
यह क्या है ह्रदय का उदगार !!!
प्रेम है 
लौकिक है 
ललकता है 
आँखों में 
थिरता है 
बैचेन एकलता है
रीझना , रूठना , मनाना
सजना , संवरना, इठलाना 
समझना , समझाना 
वृथा बहलाना 
खेल , खिलौना , खेलना 
उम्र का बचपना 
सृष्टी की रचना 
ऐसी ही है संरचना 
पिहु-पिहु पुकारना 
चकोर का ताकना 
मन की सरलता 
मन का जोड़ना 
विश्व क्या द्वैत है ?
शाश्वत द्वन्द 
ये नश्वर काया 
जो पाया   
क्या माया   
यह कैसा भोग ?
प्रेम क्यों रोग ??
क्या कहते ज्ञानी 
प्रेम की क्या बानी  
एक ही वचन बोल 
प्रिये ! सिर्फ तुमसे है प्यार !
ले कोई प्रियतम पुकार !!
ढाई आखर आखिरकार !!!


(१४ फरवरी का बुखार उतरने के बाद )

11 फ़रवरी 2012

इतिहास -अंतिम किश्त

हम सब मुद्राएँ हैं 
चांदी के सिक्के हैं 
सोने की अशर्फियाँ हैं
डालर हैं , रूपइया हैं 
मार्क हैं , फ्रांक हैं 
बुद्ध अब जेन है
जापानी येन है
यात्री ह्वेन्सांग , फाहियान 
शाखा महायान , हीनयान 
दर्शन अब युआन 

विषय भूगोल नहीं 
जी पी एस प्रद्दत है 
दुनिया कितनी मस्त है 

पृथ्वी अब गोल नहीं 
गूगल है 
आइंस्टाइन , न्यूटन से बड़ा ब्रांड 
ऐपल है 
गंगा से वोल्गा तक 
पेप्सी, कोक है 
मैक है , पिज्जा है 
मुर्गी अब के एफ सी का ब्रांड एम्बैसडर है 
मुल्कों से बड़ा मुल्क फेसबुक ट्विटर है .
वालस्ट्रीट नया मक्का है 
गीक ऋषियों की सिलिकोन वैली है 
एमोटीकोन भाषा की रोती-हँसती शैली है 
ध्यान अब डाओ-जोन्स है 
पूजा नैशडैक है 
ज़िंदगी रिपोर्टर है 
एक सौ चालीस चिन्हों में अक्षरा ट्विटर है 
बाईबल , कुरान, गीता सब विकीपीडिया है 
दौड़ती भागती ज़िन्दगी की सीढ़ियाँ है 
यंत्रवत ज़िंदगी है 
मानव एक पुर्ज़ा है 
युद्ध का कारण ज़र ज़ोरू ज़मीन नहीं 
तेल है , क्रूड है , ऊर्जा है .
पौरुष वाईग्रा है 
काम कंडोम है 
बहके हुए कदमों को थाम ले वो पिल है 
दुनिया सारी एड्स के दायरे में शामिल है  
सभ्यताओं का संघर्ष 
९/११ , कर्बला , कुरुक्षेत्र 
छोटे -छोटे युद्धों की एक सी श्रृंखला 
खर्च , खर्चा , क्रेडिट-कार्ड, खर्चा 
ज़िंदगी किश्तों में सब कुछ खरीद लाई
भविष्य अब विश्वव्यापी अवसाद की ईएमआई 
चमड़े के सिक्के जब जब चले 
ज़िंदगी दिल्ली से दौलताबाद तक जले 
हमसब अब बाइनरी गणित हैं 
विश्व के बाजार में या तो हैं खरीदार 'एक '
या फिर 'शून्य' हैं 
इससे ज्यादा नहीं हमारा कोई अस्तित्व 
इतना ही बचा खुचा 
संवेदनाओं का सतीत्व 
और हमारी भूख की भट्ठी में 
इतना सब जला है 
हवा में सांस लेना तक दूभर है 
हम विषधरों नें इतना फुँफकारा है 
अपनी ही सांसों में अब विषभरा है 
फन उठाये तैय्यार नागराज कोबरा है 
सिर्फ चित्रों और गानों में 
हरी हरी वसुंधरा है 
विश्वव्यापी तापक्रम वृद्धि से 
कौन डरा -डरा है 
पिघला दिए हिमनद 
हम नए भगीरथ 
किया नए ईश्वरों का वरण 
आज फिर कुरुक्षेत्र में खड़ा है रथ 
हे पार्थ ! हे अर्जुन !!
हे पताका पर आरूढ़ !!
सब के सब !!
किम्कर्तव्यविमूढ़ 
मुझे याद आ रहा है -
पुनश्च :
गांडीव हाथ से फिसलता जा रहा है 
- कोई है ?
कौन आ रहा है ?  

10 फ़रवरी 2012

इतिहास (प्रथम किश्त )

इतिहास चर्चा 
कभी भी कहीं भी 
इफ़रात से 
सुकरात से 
औने -पौने दाम 
टाईम पास मूँगफली
तोड़ी-फोड़ी, छिली
आड़ी-तिरछी लकीरें 
विहंगम पटल
सबका शगल 
जैसे चाहो उड़ेल दो रोशनाई 
वृहत्तर कैनवास 
सीता की अग्निपरीक्षा 
राम का वनवास 
द्रौपदी का चीरहरण 
सावित्री का व्रत-उपवास 
दुर्योधन का अट्टहास 
गांधारी का उपहास 
अंधा है धृतराष्ट्र
अंधा है धृतराष्ट्र
न चाहिए विवेक 
न शिष्टाचार 
डालो अचार , डालो अचार 
नहीं कुछ खर्चा
इतिहास चर्चा .
(क्रमशः जारी )

प्राक्कथन

मैं न तो समय हूँ , न सत्ता . न मेरे पास दिव्यदृष्टि है , न काल-यंत्र. इतिहास जो भी लिखे , जब भी लिखे , दृष्टी है , कल्पना है , टुकड़ा है , अनुमान है . मधु यामिनी पर खिंचा हुआ एक चित्र . जिसमे उपस्थित युगल के मन में क्या चल रहा है , था , आसपास उपस्थित कोई क्या लिखेगा . और युगल द्वय अगर डायरी दां हों , तो उनका दरयाफ्त अलग होगा , रोज़नामचा अलग होगा , निवेदन अलग होगा , प्रणय अलग होगा . इतिहास द्वैत है .


इसलिए मैं सोचता हूँ , इतिहास लिखने की वस्तु है , पढ़ने की वस्तु है , इतिहास समीक्षा , टीका , टिप्पणी की वस्तु नहीं है . नज़र है , जिसे कोटि-कोटि नज़रें देखें उसके कोटि-कोटि नज़ारे होंगे , कोटि -कोटि नज़रिया होगा . बैरन बन गई - गोरी तेरी नजरिया.


मैं इतिहास नहीं लिखता , न समालोचक हूँ , पढ़ी -पढाई बातों को लिखता हूँ , नज़र खराब है , चश्मा पहन रक्खा है , उसी चश्मे से देखता हूँ . मेरा नंबर , आंखों का भाई , बहुत ज्यादा है , मेरा चश्मा आप पहन लें , तो कुछ दिखेगा भी नहीं .


एक कविता , पद्य , गद्यनुमा पद्य लिखना शुरू किया था , इतिहास को लेकर , बहुत बड़ा हो गया और अभी पूरा भी नहीं हुआ . तब बचपन में पत्रिकाओं में किश्त-वार आती कहानियाँ जेहन में आयीं . क्रमशः, अगले अंक में जारी , गतांक से आगे , पिछले अंक से जारी , अब आगे की कहानी .


सोचा यही तरीका अपनाऊं  . आप भी मुझे किश्तों में झेल लिजीए . कोई किश्त नहीं चुका पाया तो बैंक का क़र्ज़ तो है नहीं जो आप गुंडे भिजवा देंगे . वैसे इतिहास है तो - काशी का गुंडा - एक कहानी का शीर्षक था यह भी .   या सिर्फ गुंडा शीर्षक था , लेखक काशी का था , वैसे काशीनाथ सिंह यकीनन काशी के हैं . वही काशी का अस्सी वाले ! भई संतन की भीड़ वाला घाट तो चित्रकूट में था पर तुलसी दास जी अस्सी पर रहते थे , जिन्होंने यह लिखा. वरुणा और अस्सी के इसी क्षेत्र को वाराणसी कहते हैं . काशीनाथ सिंह के भाई नामवर जी से सब बड़े डरते हैं , ऐसा सुना है , पढ़ा है . हिन्दी वाले आलोचक एक ही मानते हैं . बनारस में गाली देने और सुनने-सुनाने की परंपरा रही है . अगर संस्कृति का हिस्सा हो तो लोग प्यार से गाली भी सुनने में यकीन रखते हैं . आप भी दिल खोल के दें - कुछ दिन मैं भी काशी में रहा हूँ , बुरा नहीं मानूंगा .

1 फ़रवरी 2012

खोखला

खेत की मेड़‌‍‌
बहुत बड़ा 
बरगद का पेड़ 
खड़ा है 
ड़ा  है 
अंदर से पोला है  
खोखला है  
कोई आंधी नहीं 
गाँधी नहीं 
हवा का एक हल्का सा झोंका 
गिरा देगा 
हरा देगा 
कोई कुल्हाड़ी मत लाना .
न हँसी असली 
न शब्द न कथनी न करनी 
बहत्तर छेद चलनी  
मिट्टी की  गाड़ी 
मृच्छकटिकम
चलती गड़ड़
हाथों में भरे 
विषभरे अक्षर 
मन से 
मस्तिष्क से 
रक्त कलम से 
गलियों से 
खेतों से
सड़कों से 
गुजरते रहे 
आते रहे जाते रहे 
अकेले अकेले चले 
घर जले 
बस्ती जली
कस्बे जले 
जहाँ जहाँ से गुज़रे 
काफिले
चेहरे  , चेहरे , तमाम चेहरे 
लूले लंगड़े अंधे बहरे 
हाथ , हथेली , मुट्ठी बाँधे
दाँत भींचे , फूले नथुने
रक्ताभ आँखे 
जुलूस  बने , जलसा बने , बहस -मुबाहिसा हुए 
अर्थ की अर्थी उठाए 
सफहा - सफहा 
बिखरे बिखरे हरफ 
एक तरफा , एक तरफ 
गूंजने लगे 
गाने लगे 
चिल्लाने लगे 
पाँवों के तलुए 
चाटने लगे 
सूँघते हुए 
गलियाँ-गलियाँ 
घूमते
कटखौने हुए , काटने लगे 
गालियाँ - गालियाँ 
और सब तटस्थ हैं 
अर्थ सब बौने हुए 
सुविधा के बिछौने हुए 
धूप से बचने के लिए 
आँखों को ढाँप लिया 
स्वार्थों को भाँप लिया 
दाम औने-पौने हुए 
खेत की  मेड़‌‍‌  पर 
सूखे हुए कुँए के पास 
धराशायी बरगद 
भीष्म सा लहुलुहान 
और विजयी मुद्रा में पास ही खड़ा है 
एक बिजुका शिखंडी 
बजउठी रणभेरी
अट्टहास कर , नरमुण्ड बांधकर 
नृत्यप्रवृत कापालिका , चंडी  
हो गया नाटक का अंत 
पर्दा  धीरे -धीरे गिरता है 
मूक - दर्शक  अपनी -अपनी जगह खड़े  , 
बजायेंगे , करतल 
तालियाँ - तालियाँ .

उल्लू

घुग्घू  या मुआ 
किसी भी नाम से पुकारें 
उल्लू का पट्ठा
उल्लू का पट्ठा रहा !!


घोंघा बसंत होने का दर्द 
जिसने सहा हो 
वह जहाँ भी रहा हो 
पानी के करीब 
किसी पुराने खंडहर 
या किसी पेड़ का सगा  
सारी उम्र घुग्घियाता - 
घुग्घूऊ ऊऊ रहा करता ,   
उल्लू का पट्ठा 
उल्लू का पट्ठा रहा !!


गले में पड़ा है 
लक्ष्मी का पट्टा 
भाग्य घिसा-पिटा
परसाई जी का दर्द 
परसाई जी ने कहा 
सबने अपना-अपना 
उल्लू सीधा किया 
चलता बना 
उल्लू का पट्ठा 
उल्लू का पट्ठा रहा  !!


प्रेम का फर्द 
ज़माने का सिरदर्द 
पिछली पीढ़ी का क़र्ज़
अगली पीढ़ी का फ़र्ज़ 
अजीर्ण का रोग 
अनिद्रा भोग 
विरह-वियोग 
प्रथम-मिलन-सम्भोग 
भैरवी साधना 
बकवादी की बकवास 
दार्शनिक का फलसफा 
देवों का सोमपान 
देवी का निंदा-सद्यस्नान  
सब का रतजगा 
सारी सारी रात चला 
उल्लू का पट्ठा 
उल्लू का पट्ठा रहा  !!



बिसमिल्ला की शहनाई 
पर जैसे आधी रात
राग बिहाग सजा, 
बजा, जब चढ़ी तान
कामदेव का बाण
इस पर चला 
उस पर चला 
पुकारती रही 
नयनों की आतुरता 
बैठा रहा घुग्घू 
निर्मिमेष ताकता 
उल्लू का पट्ठा 
उल्लू का पट्ठा रहा  !!
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