फट गयी खेतों की मिट्टी ,
सूरज की गरमी सह सह कर |
अमवा सी बौराई देह
पोर - पोर टूटे ,
सरसों फिर फूटे ||
लेटा है कलुआ आँगन ,
ढांप अंगोछा , बिछा चटाई ,
काली बिल्ली पुरवा से ,
चट कर गई दूध मलाई |
जाती बछिया को तक ,
गैय्या डोल रही खूंटे |
सरसों फिर फूटे | |
ख़त्म हुई कुंए और पनघट की बातें ,
नहीं सुहाता तनिक कमरों का बंधन ,
गौना होकर आ रही पायल की रुनझुन ,
नीक बहुत होती हैं छत पर ठंडी रातें |
अम्मा - दादी , लहंगा - चुनरी ,
टांक रही बूंटे |
सरसों फिर फूटे | |
ख़त्म हुई कुंए और पनघट की बातें ,
जवाब देंहटाएंनहीं सुहाता तनिक कमरों का बंधन ,
गौना होकर आ रही पायल की रुनझुन ,
नीक बहुत होती हैं छत पर ठंडी रातें |
अम्मा - दादी , लहंगा - चुनरी ,
टांक रही बूंटे |
सरसों फिर फूटे | |
ati sundar bhav abhivakti
khubsurat bhavna pradhan tukbandi........achha laga........
जवाब देंहटाएंख़त्म हुई कुंए और पनघट की बातें ,
जवाब देंहटाएंनहीं सुहाता तनिक कमरों का बंधन ,
गौना होकर आ रही पायल की रुनझुन ,
नीक बहुत होती हैं छत पर ठंडी रातें |
sundar bhavon kee khoobasurat abhivyakti.shubhakamnayen.
बहुत ही झनकृत करदेने वाली कविता...."
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
great artistic, great selection of eords
जवाब देंहटाएंkhubsurat bhavna pradhan tukbandi........achha laga......
जवाब देंहटाएंVery Interesting!
जवाब देंहटाएंThank You!
खूब-सूरत परिदृश्य -परिकल्पना !
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