एक चेहरा ढूंढना उम्र के लम्बे सफ़र में ,
एक छाँव ,हर तपिश , हर दोपहर में .
एक परिन्द आसमान में जितना ऊँचा उड़े ,
एक डाल दिखती थके हारे पर में .
भूल गए ढाई अक्षर प्रेम के दहलीज पर ,
एक साया याद रहा अंतिम प्रहर में .
दूर देश में अपनों की यादों के सहारे ,
कभी दिल रोया , कभी आँख घर में .
एक छाँव ,हर तपिश , हर दोपहर में .
एक परिन्द आसमान में जितना ऊँचा उड़े ,
एक डाल दिखती थके हारे पर में .
भूल गए ढाई अक्षर प्रेम के दहलीज पर ,
एक साया याद रहा अंतिम प्रहर में .
दूर देश में अपनों की यादों के सहारे ,
कभी दिल रोया , कभी आँख घर में .
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंदूर देश में अपनों की यादों के सहारे ,
कभी दिल रोया , कभी आँख घर में
-क्या बात है!
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’