रात दौड़ती जा रही ,
सन्नाटे के साये में .
दोनों ओर
खड़े पेड़
हाथ फैला
रोकना चाहते हों पथ मानो.
एक लम्बी
लपलपाती जीभ की तरह फैली सड़क .
यह सफ़र
मुंह से पेट
या जीवन से मृत्यु का ?
छूटता जा रहा है पीछे
नीरव सत्य .
मन में फट पड़े
विचारों के सैकड़ों ज्वालामुखी .
तप्त लावे की धार
बह पड़ी आँखों से .
पसीने में नहा गया बदन
पूस की रात .
निकल पड़ी कविता
या
एक दुह्स्वप्न बात.
एक निश्चल निश्वास.
laplapaati jeebh ki tarah faili sdak achchi upma...sundar kavita...
जवाब देंहटाएंहाथ फैला
जवाब देंहटाएंरोकना चाहते हों पथ मानो.
एक लम्बी
लपलपाती जीभ की तरह फैली सड़क .
bahu sundar abhivyakti
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
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