6 जुलाई 2011

रोजनामचा

रोजनामचा - यानि दिनचर्या , यानि वह कहानी जो रोज लिखी जाये
जमा की , खर्च की , हिसाब की
कोई रोज जन्मता है
कोई रोज मरता है
और कोई बस एक रोज जीता है
बस उसी का चर्चा है .


जरूरी नहीं की गुजरना हो
हर सोने को तपना हो
किसी को आग की भट्टी
जला के राख कर दे .


कलम के जौहर लड़े जायेंगे
कुछ मसविदे तैय्यार होंगे
कुछ शब्द हथियार होंगे
कुछ अर्थ विस्तार होंगे
अपनी अपनी सहूलियतें देखी होंगी
सबकी वसीयतें होंगी .


हम सब एक घने जंगल से गुजरतें हैं
हम सब अँधेरे से डरते हैं
शाम होते ही घर याद आता है
कभी हंसी आती है
बस वहीं होना तरोताजा है
और डर भगाना है .


कितनी भी ताकीदें हों
अजीब वाकयात हों
डरावनी तस्वीरें हों
आईना हमारे चेहरे रोज पढता है
सामने खड़ा शख्स बहुत संवरता है
अन्दर कोई भूत छुपा है
जो आँखों में ढल जाता है
लाल लाल जलता है
मुखौटा बदल जाता है
किसी मेले में ख़रीदा था
राजा का वजीफा था .


अपनी परछाईं पहचान नहीं पाता
आदमी अपने साये से डरता है
कभी बादल डराता है
कभी रस्सी
कभी किसी आहट पर
सांस गले में अटकी
अपने ही घर में
एक कोने से दूसरे भागता
किससे पीछा छुड़ाता?


चाशनी में भीगो कर परसे हुए शब्द
में छुपा सारा विष बह निकला
अर्थ होमिओपैथी के छोटे छोटे दाने निकले
छुपे हुए रोग को उजागर कर दिया
सुन्दर सा चेहरा , अचानक बिखरा
मुख म्लान हो गया
मौसम की तरह बदला .


सड़क पर बदहवास भागता
शहर , जंगल की तरह फैलता है
फिर उसी की तरह जलता है
हर सुबह का अखबार
अंदेशों से भरा , आता है बालकनी में
रोज वही क़त्ल , हत्या , झगड़े ,फसाद , खून खराबा
रोज वही झूठ , वही प्रहसन , दिखावा


प्रसंग बदलते हैं
किरदार बदलते हैं
रोजनामचा नया नहीं होता .
जीवन जीवन है
नाटक विकल्प नहीं
मत बनो
किसी निदेशक के हाथ की कठपुतली
क्यों न हों कितने भी जानदार
मत दोहराओ संवाद ऊधार के
शब्दों को खोखला होने से पहले बचा लो


तुम्हारी जिन्दगी का पन्ना है
थाने की डायरी नहीं
जो झूठ का पुलिंदा हो .

2 टिप्‍पणियां:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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