ख्वाब हो या हकीकत छू कर देखना
कहाँ उम्र पड़ी है की मुड़कर देखना .
मंदिर पै घंटियाँ या मन्नत के बांधो धागे
दुआ कबूल न हो उसे मांगकर देखना .
सुबह का धुंधलका शाम तक चला आया
बियांबा न भटके ख्वाब जागकर देखना .
अजीब दहशत में गुजरी रात जुदाई की
अँधेरे में अपने ही साये से लिपटकर देखना .
गुलमोहर से बतियाने का सिलसिला पुराना
किसी दरख़्त को दूब पर लेटकर देखना .
महबूब बस नाम है उसकी सूरत नहीं होती
शायर को पूछकर देखना पढकर देखना .
सुन्दर अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंआभार...
महबूब बस नाम है सूरत नहीं होती......बहुत सही निशाने पे जा रहे हो दादा !
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