16 अगस्त 2010

मुड़कर देखना

ख्वाब हो या हकीकत छू कर देखना
कहाँ उम्र पड़ी है की मुड़कर देखना .


मंदिर पै घंटियाँ या मन्नत के बांधो धागे
दुआ कबूल न हो उसे मांगकर देखना .


सुबह का धुंधलका शाम तक चला आया
बियांबा न भटके ख्वाब जागकर देखना .


अजीब दहशत में गुजरी रात जुदाई की
अँधेरे में अपने ही साये से लिपटकर देखना .


गुलमोहर से बतियाने का सिलसिला पुराना
किसी दरख़्त को दूब पर लेटकर देखना .


महबूब बस नाम है उसकी सूरत नहीं होती
शायर को पूछकर देखना पढकर देखना .

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति,
    आभार...

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  2. महबूब बस नाम है सूरत नहीं होती......बहुत सही निशाने पे जा रहे हो दादा !

    जवाब देंहटाएं

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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