16 अगस्त 2010

पंछी का साया


बस धुंधला सा इक नाम औ’ भूली हुई सूरत
दिल से चाहोगे तो क्या खुदा नही मिलता .


चिलमन में छुपा लो चाँद को तो क्या होगा ?
बादलों में निहां चाँद से क्या दरिया नही उठता ?


सफर में साथ मेरे एक पंछी का साया था ,
उसे नहीं देखा कभी वो मुझे नही पहचानता.


इक तस्सवुर जिसके सहारे उम्र गुजार दी
उस खत पर चस्पा है न पता नही लापता.

3 टिप्‍पणियां:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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