आज कल नहीं लिखता कविता
नहीं लिख पा रहा हूँ कविता
कुछ सूझता ही नहीं
कोई शीर्षक नहीं
न विषय .
और तुमने भी तो नहीं कहा -
"मेरे ऊपर कुछ लिखो ."
शब्द और अर्थ अब नहीं मिलते
बहुत दिनों से किसी गौरैय्या को नहीं देखा बाल्कनी में
नहीं देखा सुबह क्षितिज से उठता सूरज
किसी नदी के घाट पर बैठ
पाँव नहीं भिगोया बहते पानी में झुलाकर
दोपहर खाली पाँव नहीं दौड़ा घाट की जलती सीढ़ियों पर
पत्थर बहुत जल्दी जल जाता है न ?
क्या इसीलिए तुमने आना बंद कर दिया ?
कुरते की जेब में से एक पुराना कागज़ निकला है अलबत्त.
और पुरानी रेगज़ी के कुछ शब्द
पर काम नहीं बनेगा .
रेगज़ी बंद कर दी गयी है .
वैसे एक ,
रूपया भी निकला है अर्थ का
पर बाज़ार में सब चीज़ों के भाव बहुत बढ़ गएँ हैं .
कुछ नहीं सोचता , कुछ नहीं सूझता .
बहुत दिनों से एक ही कुरता पहने पहने
काफी मैला हो गया है
बदलना है
नया पत्ता पलटना है
पर करें क्या ?
ये धोबी भी तो नहीं आया कपडे लेने
पिछले महीने का गया -
और जब तक आगे वाले धुल कर नहीं आते - क्या पहने ?
पेड़ से जैसे झड गए हैं पत्ते
नंगा हो गया है
सारा का सारा ठूंठ
मैं भी क्या उतार फेंकूं ?
कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा
ऐसा बहुत दिन नहीं चलने का .
किराया नहीं दिया न
मकान मालिक ने कह दिया है
-मकान खाली कर दीजिये जल्दी .
अगले महीने लड़की और दामाद
यहीं ट्रान्सफर हो के आ रहे हैं .
कविता का कोई रिश्तेदार भी नहीं .
कहाँ जाये ??
क्या करे ?
चलो कहीं घूम ही आयें .
कहीं कोई खाली कमरा मिल जाये .
काम चलाऊ भी चलेगा .
आप की निगाह में हो तो बताइयेगा .
नहीं नहीं .
फ़ोन कर पैसा क्यों जाया करेंगे .
एक एस एम् एस भेज दीजियेगा .
मेरा काम हो जाएगा .
आजकल इससे ज्यादा कोई लिख भी कहाँ रहा है .
नहीं लिख पा रहा हूँ कविता
कुछ सूझता ही नहीं
कोई शीर्षक नहीं
न विषय .
और तुमने भी तो नहीं कहा -
"मेरे ऊपर कुछ लिखो ."
शब्द और अर्थ अब नहीं मिलते
बहुत दिनों से किसी गौरैय्या को नहीं देखा बाल्कनी में
नहीं देखा सुबह क्षितिज से उठता सूरज
किसी नदी के घाट पर बैठ
पाँव नहीं भिगोया बहते पानी में झुलाकर
दोपहर खाली पाँव नहीं दौड़ा घाट की जलती सीढ़ियों पर
पत्थर बहुत जल्दी जल जाता है न ?
क्या इसीलिए तुमने आना बंद कर दिया ?
कुरते की जेब में से एक पुराना कागज़ निकला है अलबत्त.
और पुरानी रेगज़ी के कुछ शब्द
पर काम नहीं बनेगा .
रेगज़ी बंद कर दी गयी है .
वैसे एक ,
रूपया भी निकला है अर्थ का
पर बाज़ार में सब चीज़ों के भाव बहुत बढ़ गएँ हैं .
कुछ नहीं सोचता , कुछ नहीं सूझता .
बहुत दिनों से एक ही कुरता पहने पहने
काफी मैला हो गया है
बदलना है
नया पत्ता पलटना है
पर करें क्या ?
ये धोबी भी तो नहीं आया कपडे लेने
पिछले महीने का गया -
और जब तक आगे वाले धुल कर नहीं आते - क्या पहने ?
पेड़ से जैसे झड गए हैं पत्ते
नंगा हो गया है
सारा का सारा ठूंठ
मैं भी क्या उतार फेंकूं ?
कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा
ऐसा बहुत दिन नहीं चलने का .
किराया नहीं दिया न
मकान मालिक ने कह दिया है
-मकान खाली कर दीजिये जल्दी .
अगले महीने लड़की और दामाद
यहीं ट्रान्सफर हो के आ रहे हैं .
कविता का कोई रिश्तेदार भी नहीं .
कहाँ जाये ??
क्या करे ?
चलो कहीं घूम ही आयें .
कहीं कोई खाली कमरा मिल जाये .
काम चलाऊ भी चलेगा .
आप की निगाह में हो तो बताइयेगा .
नहीं नहीं .
फ़ोन कर पैसा क्यों जाया करेंगे .
एक एस एम् एस भेज दीजियेगा .
मेरा काम हो जाएगा .
आजकल इससे ज्यादा कोई लिख भी कहाँ रहा है .
आप जिस बेबाकी से अपने हर परिवेश ,अपने दर्द और हम सब के दर्द को बयां कर जाते हैं ,वाकई शब्दों की कमी कम से कम आपको तो नहीं होने वाली है /लेकिन कुछ गंभीर प्रश्न हमें निः शब्द कर जाते हैं /परिवर्तन की टीस ,चाहे गौरैये के लुप्त होने की ,अथवा रिश्तों के की उलझन की टीस ,सचमुच हमारे सामने प्रश्न उठाते है ... की "क्या शब्द और अर्थ बदल गए ",!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंआप जिस बेबाकी से अपने हर परिवेश ,अपने दर्द और हम सब के दर्द को बयां कर जाते हैं ,वाकई शब्दों की कमी कम से कम आपको तो नहीं होने वाली है /लेकिन कुछ गंभीर प्रश्न हमें निः शब्द कर जाते हैं /परिवर्तन की टीस ,चाहे गौरैये के लुप्त होने की ,अथवा रिश्तों के की उलझन की टीस ,सचमुच हमारे सामने प्रश्न उठाते है ... की "क्या शब्द और अर्थ बदल गए ",!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से किसी गौरैय्या को नहीं देखा बाल्कनी में
जवाब देंहटाएंनहीं देखा सुबह क्षितिज से उठता सूरज
किसी नदी के घाट पर बैठ
पाँव नहीं भिगोया बहते पानी में झुलाकर
प्रकृति का सानिध्य सच में शब्द देता है हमें .... बहुत सुंदर कविता
आम आदमी की मनः स्थिति को अपने ज़रिये उतारा है आपने ! लगभग यही हाल हमारा भी है !
जवाब देंहटाएं" कुछ लिख नहीं पाता ,कुछ कह नहीं पाता,
इस माहौल में भी तो, मैं रह नहीं पाता !"
ज़ोरदार कबिताई !
नहीं देखा सुबह क्षितिज से उठता सूरज
जवाब देंहटाएंकिसी नदी के घाट पर बैठ
पाँव नहीं भिगोया बहते पानी में झुलाकर
दोपहर खाली पाँव नहीं दौड़ा घाट की जलती सीढ़ियों पर
पत्थर बहुत जल्दी जल जाता है न ?
आज का वातावरण ,मन की टीस बयां करती और कुछ वेदना सी कहती ...सुंदर कविता ...
बहुत ही मार्मिक तरीके से आपने भावनाओ को उकेरा है। आजकल इससे ज्यादा कोई लिख भी कहाँ रहा है . लौकी कद्दू से लेकर टूटॆ दिल तक लिखना है सो लिखो ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंक्या कहने
saarthak rachna badhai ....http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
जवाब देंहटाएंवाह वाह - आज कल एसएमएस से ज्यादा कोई कुछ लिख भी नहीं रहा वाह क्या पकड़ा है कलेजे की नब्ज को---- और एसएमएस में ऐसी ऐसी शार्ट फार्म आती हैं कि दिमाग चकरा जाता है कि इसका मतलब क्या है- वाह वाह,
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से कुछ नहीं लिखने की आपकी पीड़ा को भी इतने प्यारे शब्द मिलेंगे- मैंने तो उलाहना किया था - आपने तो मौन पर ही भाषण लिख दिया - जैसे पेड़ से झड़ गए पत्ते----
आपके कवि को प्रणाम ।
डॉ रावत
अनुपम अभिव्यक्ति..!!
जवाब देंहटाएंbahut hi achchi poem hai.
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