28 दिसंबर 2011

त्वरितर : नयी ज़मीन की तलाश

त्वरितर  पर बहुत दिनों से सक्रिय हूँ . बहुत से और लोग भी हैं साथ में . ऐसे जो नागरी में त्वरित करते हैं और कुछ लोग रोमन हिन्दी में . और कुछ जब जैसा अच्छा लगे . सुविधा अनुसार .

हिन्दी में ब्लॉगिंग पर बहुत दिनों से हाथ आजमा रहा था . फिर त्वरितर पर क्यों ? ब्लॉग पर कुछ लिखो , फिर लोग जो पढ़ने वाले हैं वो भी या तो खुद ब्लॉग लिखते हैं या लिखना चाहते हैं . प्रतिक्रिया और टिप्पणी ज्यादातर बहत अच्छा लिखा है या कुछ उससे मिलता जुलता .

त्वरितर पर उससे ज्यादा कुछ होता है ? नहीं . ब्लॉग को ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिये मित्र आमंत्रण भी देते हैं टिप्पणी के साथ , हमारे ब्लॉग पर आइये . हमने आपकी पीठ खुजाई है , आप हमारी खुजा जाइए की तर्ज़ पर .

इसके साथ फीड है , हिंदी ब्लॉग के ऐग्रीगेटर (समन्वयक ) हैं जैसे हमारीवाणी , ब्लॉगअड्डा, नेटवर्कड ब्लॉग, चिटठाजगत , ब्लॉगजनता , ब्लॉगप्रहरी ईत्यादी. इसी के साथ जखीरा , अनुभूति , कबाडखाना जैसे ब्लॉग हैं जिसके कई लेखक हैं . इसके साथ कुछ और प्रयास हैं जैसे आज की हलचल , वटवृक्ष आदि जो अन्य ब्लॉग लेखन को अपने यहाँ रोज प्रस्तुत करते हैं . कुछ ने पाठकों की खोज में फेसबुक पर भी पृष्ठ बना लिए हैं .

फिर इसमें त्वरितर जो की महज  १४० टंकको की समरभूमि है पर क्या जोर आजमाइश की  जा सकती है . दरअसल हिन्दी के लेखकों या कवियों की समस्या पाठक है . पाठक को पठन सामग्री नहीं मिल रही . पत्र-पत्रिकाएं प्रायः नगण्य उपलब्ध है . पढ़ना पढ़ाना कम हो रहा है . लेखक और कवि सुपरिचित नाम नहीं रहे . हिन्दी की पत्रिकाएं अब या तो बहनजी मार्का रह गयी हैं या मनोहर , मधुर कहानियों की तरह या अंगरेजी में प्रकाशित पत्रिकाओं की चचेरी बहन जैसी . जो घर में रहती है साथ , हाँ ये भी है की तरह .

और इसी में हमारी इती श्री हो जाती है . हम लिख तो रहे हैं पर पाठक वर्ग खोता जा रहा है . मैंने पूर्व लेख में लिखा था की हमारा हिंदी पढने वालों के साथ लिखने वालों का दायित्व बनता है पाठक वर्ग तक श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य की झलक ले जाना . बड़ी बड़ी कम्पनियां अपने उत्पाद का मुफ्त सैम्पल बांटी फिरती हैं . ताकि हम और आप फिर जब बाज़ार में जाएँ तो नाम याद रक्खें और फिर माल खरीद भी लायें . लिखने वाले अगर चाहते हैं की पाठक उन्हें पढ़ें तो उन्हें पाठक भी तैयार करने पड़ेंगे . और इसके लिए आपको सिर्फ अपना लिखा नहीं परन्तु आप जिस परंपरा के हैं उस परंपरा को भी आप को पाठकों तक ले जाना पडेगा .

इसीलिए आह्वान किया था की समय की कमी है , लोग बहुत लम्बा एक साथ नहीं पढ़   पाते , सब समय संगणक के सामने नहीं बैठ सकते , अतएव जब मोबाइल फ़ोन जो लोगों के पास करोड़ों में हैं . और जिस पर जहाँ चाहें जब चाहें त्वरितर पर लोग सक्रिय हैं उसका इस्तेमाल इसलिए किया जाए .

बहुत से ब्लॉगमित्र नहीं लेखक , मित्र कैसे कह सकता हूँ वो मुझ अकिंचन को जानते तक नहीं अपना खाता त्वरितर पर खोल तो लिए पर उसे समझ नहीं पाए और निष्क्रिय हैं . सतीश पंचम जी हैं , प्रतिभा कटियार जी  हैं . और कुछ हैं जो वहां सिर्फ अपने या अन्य ब्लॉग के लिंक डाल कर समीर लाल उड़नतश्तरी की तरह फुर्र हो जाते हैं . यह काम तो ब्लोगवाणी सरीखे समन्वयक अच्छे से कर रहे है.

कौतुहल होना चाहिए , कौतुहल जगाना चाहिए , जिज्ञासा उठे , इच्छा जगे - क्या है ? तब तो सार्थकता है .

त्वरितर का उपयोग कैसे हो , यह बहुत कठिन नहीं है . अविनाश वाचस्पति तो बहुत धुरंधर हैं , किसी को घास ही नहीं डालेंगे . पर संतोष त्रिवेदी हैं , भाई नवीन चतुर्वेदी हैं , रवीश जी हैं , अविनाश हैं , ब्रह्मात्म अजय हैं , अलोक रंजन हैं अर्कजेश हैं प्रवीण त्रिवेदी हैं सब धीरे धीरे हिंदी के दर्शन त्वरितर पर करा देते हैं . वंदना जी हैं . सब मिलजुल कर सहयोग कर सकते हैं . त्वरित का सहायता पृष्ठ भी है . जिसका लिंक पूर्व में मकडजाल वाले लेख के नीचे टिप्पणी में दिया था . आंग्ल भाषा में है . अगर दुविधा न हो तो उपयोग सहज है . वैसे भी जिसने ब्लॉग पर कारस्तानी कर ली वह हाथपाँव पटके तो इसमें भी सिद्धहस्त हो जायेगा .

मकडजाल पर पूर्व में लिखा था की त्वरितर का उपयोग कैसे हो . इस बारे में कुछ उदहारण एकत्रित किये हैं . जैसे किसी ने पाने त्वरितर पर अनुभव को लेकर एक कहानी लिखी . वह भी आंग्लभाषा में हैं पर उपयोगी होंगी . आप सब बुद्धिजीवी हैं . आप के लिए सहज और सरल है अपने लिए रत्न चुन लेना .

फिर कुछ और उदाहरण हिन्दी कविता , ग़ज़ल , त्वरित टिप्पणी इत्यादि की भी एकत्र की हैं . आज फिर एक कहानी मिली है जो किसी ने अपने  त्वरितर  पर एक वर्ष जन्मदिन मनाने को लेकर लिखी है .

यहाँ समाचार हैं , प्रेमकहानियाँ  भी हैं . खेल है , जीवन के सब रंग हैं , सब रस हैं,  सब भावनाएं हैं . आपको कई कवितायें , कई शेर , कई कहानियाँ मिल जायेंगी . मुक्तिबोध जी के शब्दों के साथ इस प्रकरण को यहीं समाप्त करना चाहता हूँ , ऊपर उल्लेखित सामग्री आप के साथ आगे बाटूंगा . तब तक आप मुक्तिबोध जी को पढ़ लें :

मुझे कदम-कदम पर
चौराहे मिलते हैं
बाँहे फैलाए !!

एक पैर रखता हूँ
कि सौ राहें फूटतीं
व मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूँ
बहुत अच्छे लगते हैं
उनके तजुर्बे और अपने सपने
सब सच्चे लगते हैं
अजीब सी अकुलाहट दिल में उभरती है
मैं कुछ गहरे मे उतरना चाहता हूँ
जाने क्या मिल जाए !!

मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में
चमकता हीरा है
हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है
प्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा है
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य-पीड़ा है
पलभर मैं सबमें से गुजरना चाहता हूँ
प्रत्येक उर में से तिर आना चाहता हूँ
इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूँ
अजीब है जिंदगी !!
बेवकूफ बनने की खतिर ही
सब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ
और यह देख-देख बड़ा मजा आता है
कि मैं ठगा जाता हूँ
हृदय में मेरे ही
प्रसन्न-चित्त एक मूर्ख बैठा है
हँस-हँसकर अश्रुपूर्ण,मत्त हुआ जाता है
कि जगत्..... स्वायत्त हुआ जाता है।

कहानियाँ लेकर और
मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते
जहाँ जरा खड़े होकर
बातें कुछ करता हूँ
......उपन्यास मिल जाते।

दुख की कथाएँ, तरह तरह की शिकायतें
अहंकार विश्लेषण, चारित्रिक आख्यान,
जमाने के जानदार सूरे व आयतें
सुनने को मिलती हैं !

कविताएँ मुसकरा लाग- डाँट करती हैं
प्यार बात करती हैं।
मरने और जीने की जलती हुई सीढ़ियां
श्रद्धाएँ चढ़ी हैं !!

घबराए प्रतीक और मुसकाते रूप- चित्र
लेकर मैं घर पर जब लौटता.....
उपमाएँ द्वार पर आते ही कहती हैं कि
सौ बरस और तुम्हें
जीना ही चाहिए।
घर पर भी,पग-पग पर चौराहे मिलते हैं
बाँहे फैलाए रोज मिलती है सौ राहें
शाखाएँ-प्रशाखाएँ निकलती रहती हैं
नव-नवीन रूप-दृश्यवाले सौ-सौ विषय
रोज-रोज मिलते हैं....
और,मैं सोच रहा कि
जीवन में आज के
लेखक की कठिनाई यह नहीं कि
कमी है विषयों की
वरन् यह कि आधिक्य उनका ही
उसको सताता है
और वह ठीक चुनाव कर नहीं पाता है !!
                                      

3 टिप्‍पणियां:

  1. त्वरितर का महत्त्व फेसबुक से,ब्लॉगिंग से बिलकुल अलहदा है.अपना कोई सन्देश जल्द और चहुँ ओर फ़ैलाने के लिए इससे बढ़िया माध्यम नहीं है.

    आप काफी सक्रिय रहते हैं और कई लोगों के प्रेरणा-स्रोत भी बने हुए हैं !

    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन........आपको नववर्ष की शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  3. हिंदी साहित्य को अब तक उचित मंच की तलाश रही है , खेद है , की हिंदी की पत्र -पत्रिकाओं को पाठक नहीं मिल रहे हैं , ब्लॉग की परिधि सीमित है , लेकिन आशा है ,की इन्ही तंग गलियों से कोई मंजिल मिलेगी , |
    घुटन स्वाभाविक है , विकल्प सीमित हैं ,पर शायद हमारा समग्र प्रयास , और सबसे बढ़कर विश्वास साहित्य की प्रवाही परम्परा को जीवित रखे |

    जवाब देंहटाएं

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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