किसी घुमक्कड़ की
सारी संपूर्ण
निरर्थक यात्रा |
अंतिम पड़ाव पर किसी
ने नहीं कहा
फिर मिलेंगे |
जैसे यात्रा के प्रारंभ
में कोई नहीं बोला
किसी ने शब्दों को नहीं तौला
और कहा
आपकी यात्रा मंगलमय हो |
जीवन की यात्रा बड़ी अनमोल है
इसका कोई प्रारंभ नहीं
कोई प्रारब्ध नहीं
यह पथ नहीं संरचना है
इससे सिर्फ गुजरना है
यह यात्रा नहीं अनुभव है
इसका वही खिलाड़ी है
जो अनाड़ी है
यह यात्रा है अनंत
इसका लो आनंद
यह प्रहसन है
नाटक है
कविता है
है महाकाव्य
कोई है शब्द
कोई है पंक्ती
कोई कोई अध्याय |
कुछ बेतरतीब बंधे पृष्ठ
कुछ कोरे , कुछ रिक्त
कुछ भाव , कुछ अर्थ में बंधे
कुछ संधि , कुछ अलंकार में सधे
राग रागिनियों की परम्पराएँ
ऋषियों की ऋचाएं
वेद के स्वर
अनादि अनश्वर
ध्वनि की तरह चारों दिशाओं में व्याप्त
कोई नहीं पर्याय !
इस यात्रा की यह है सहज अनुभूती
इसकी यही है व्युत्पति
इसकी तलाश यूँ ही चलती
चरैवेति चरैवेति !!
जीवन पर्यंत यात्रा का सशक्त वर्णन..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइस यात्रा की यह है सहज अनुभूती
जवाब देंहटाएंइसकी यही है व्युत्पति
इसकी तलाश यूँ ही चलती
चरैवेति चरैवेति !!
बिलकुल ठीक बात है -
जीवन अनुभूति है -
अच्छी रचना है .
बहुत खूब ....आप का स्वागत है !शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंagain
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
बेहतरीन रचना !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंकिसी घुमक्कड़ की/ सारी संपूर्ण / निरर्थक यात्रा |
@ सारी सम्पूर्ण ...... अर्थात ?
क्या 'सबसे बेस्ट' .. तरीका कहूँ 'पूर्णता' को जताने का.
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जवाब देंहटाएंअंतिम पड़ाव पर किसी / ने नहीं कहा / फिर मिलेंगे |
@ आप शब्द-बंधों के हिसाब से वाक्य को तोड़ा करें अन्यथा लगेगा कि आप संकुचित भावों को जबरन लंबा दिखाने की इच्छा रखते हैं.
नयी कविता में अक्सर देखने में आया है कि वह छोटे-बड़े वाक्यों के साथ व्यक्त की जाती है.
न केवल बोलने में बल्कि लिखने में भी हम उसकी रबड़-वृत्ति देखते हैं.
इसका कारण यही है कि नयी कविता का नया लेखक अपने मानस की यथास्थिति रख देना चाहता है.
उसके मानस में पहले की अपेक्षा अधिक तनाव, दो भावों के बीच अधिक अंतराल, एक भाव को पूरा व्यक्त करने के बीच में आयी थकावट..............ये सभी कारक माँग करते है कि वह कभी दो शब्द लिखता है, तो कभी लम्बी पंक्ति. और कभी पृष्ठ के बीच में कहीं से भी लिख देना उसे रुचता है. और कभी-कभी तो वह एक पैराग्राफ लिखे बिना इतना स्पेस देकर लिखना/बोलना पसंद करता है कि पाठक या श्रोता को महसूस होता है कि उस मौन-क्षण में लेखन चिंतन कर रहा है. या फिर आगे कही बात को समझने का समय दे रहा है.
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जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग का टिप्पणी वातायन आपकी इच्छा पर खुलेगा इस कारण आगे की यात्रा रोक रहा हूँ.
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@ प्रतुल वशीष्ठ - बन्धु नयी कविता / पुरानी कविता या उनके लेखक कैसे लिखते हैं , क्यों लिखते हैं . यह विधा विन्यास की बातें हैं . मेरे लिए यह काफी है की आपने मेरे लिखे को पढ़ा उसका अध्ययन किया .उस पर अपने विचार रक्खे . देखें कितना सीख पाता हूँ . आमंत्रण से बचता हूँ . स्वतंत्र प्रवृत्ति है . कभी कभी कुछ बन्धु व्यापार का विज्ञापन चस्पा कर जाते हैं . इसलिए वातायन बचा कर रखा है . सारी -संपूर्ण , सारी यात्रा संपूर्ण नहीं होती ऐसा लगा . बस इसलिए .
जवाब देंहटाएंवाह त्रिवेदी जी, ऐसी रचनाएं सीधे दिल में उतर जाती हैं...बधाई.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंआदरणीय त्रिवेदी जी,
आपने अपने संतुलित और निरुत्तर कर देने वाले प्रतिउत्तर से मुझे शर्मिन्दा कर दिया.
क्षमा चाहता हूँ. लेकिन यह स्वभाव है कि जहाँ लगता है - यहाँ मंथन से रत्न निकलेगा वहीं प्रयास करता हूँ.
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यह पथ नहीं संरचना है / इससे सिर्फ गुजरना है
जवाब देंहटाएंजीवन दर्शन का सुन्दर एवं शशक्त वर्णन.
मंजु
कडवे सच को दर्शाती यात्रा, जबरदस्त विश्लेषण. बधाई
जवाब देंहटाएंHi Atul sir, I seem to be the only one posting in English, the poetry is too good, too deep.
जवाब देंहटाएंThanks to all for finding time to leave their comments and liking the post. @Nilay Never mind the language you use in posting any comment. Visit itself is most welcome.
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