बहुत दिनों के बाद
कितने प्रयत्नों और
कोशिशों के पश्चात
सुना मैंने
एकांत का स्वर
मौन की भाषा
सीख रहा हूँ
चुप्पी की परिभाषा |
निर्मिमेष आँखों का व्याकरण
पढ़ पाया
अनकहे शब्दों को
गढ़ पाया
देखा टूटते
मध्य रात्रि के नीरव में पसरा सन्नाटा
भूंकते श्वान की
गुंजायमान शब्दावलियों से ढहराता |
चांदनी में नहाया शहर
ओढ़कर रात्रि में
अँधेरे की चादर
सो गया थक हार कर |
फिर बियाबान में
चिर मकान में
स्वप्न सोपान में |
शब्दों का कोलाहल
गायन का शोर
जीवन का कलरव
रेला चहुँओर
कर्णभेदी संवाद
गरजती कर्कशा
किसी ने नहीं सुना
कड़कती दामिनी
खनकती वर्षा
कलकल बहती नदी
सरसर डोलती हवा का प्रलाप
टूटे सूखे पर्ण पत्तों पर
धराशायी पैरों की पदचाप |
बहुत दिनों के बाद
सुना मैंने
एकांत का स्वर
सीख रहा हूँ
चुप्पी की परिभाषा
कुछ कुछ सुनायी देने लगी है
अब
प्रकृति की अभिलाषा |
बहुत दिनों के बाद
जवाब देंहटाएंकितने प्रयत्नों और
कोशिशों के पश्चात
सुना मैंने
एकांत का स्वर
मौन की भाषा
सीख रहा हूँ
चुप्पी की परिभाषा |
अच्छी कविता है -
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जवाब देंहटाएंसुन्दर :) ये पंक्तियाँ मेरी उँगलियों से अपने आप छूट गयी
जवाब देंहटाएं"मैं सीख़ रहा हूँ खिलखिलाना आस्मां को देखकर, मैं सिख रहा हूँ जीना बेबाक बह रहे समुन्दर को माप कर" :)