18 जनवरी 2011

शब्द टूटे बिखरे

लड़खड़ाती आवाज़ 
गले  में अटके 
शब्द टूटे बिखरे
शुष्क हो चला गला .
तोड़े मरोड़े 
रास्तों पर नहीं 
अक्सर कालीन पर खड़े  
होकर पसीजती अंगुलियाँ 
माथे पर आता पसीना .
कुछ लम्हे मौसम को मुतासिर नहीं 
जैसे सर पै खिली गर्मियों की धूप 
या पलकों में बारिशों का मौसम 
भींगी  अलकों सी सावन की घटा 
सलोनी सूरत ,काले नैनों की छटा  
क्यों पोछें भींगी आँखों का कोना .
किसी की गुलाबों से खिली मुस्कराहट 
से महकी - महकी सी लगती फिजा 
किसी माथे पै सजा सिन्दूरी चाँद 
मेहन्दी रची हथेली से झांकता उसका अक्श
या मरमरी त्वचा से सूर्य की रक्ताभ लालिमा .
मैंने उन आँखों में पढ़ा 
कुछ सकुचाया सा लिखा
रेत पर बिखरी लकीरों सा लफ्ज़ 
जंगल में बिखरे पत्तों की पाती 
पेड़ों के झुरमुठों से छुपछुपाती चांदनी की कथा .
यूँ ही नहीं उतरे 
शब्द टूटे बिखरे .
कुरेद - कुरेद कर वृक्ष की त्वचा पर उकेरे 
मिलने की तिथी
भग्न अवशेषों में 
जीवन वृतांत की वीथी
अग्निकुण्ड में स्वाहा हो गए 
मंत्रोच्चार के सप्तपदों के साथ 
स्वप्न सुनहरे 
शब्द टूटे बिखरे. 
कुछ सुनना 
कुछ कहना 
फिर गढ़ना 
जैसे तोड़कर 
पुराना गहना
ऐसी  थी ये रचना .
गहरी नींद से अचानक जाग उठना
फिर सोते ही 
चल पड़े वोही पुराना सपना 
तो विलक्षण है 
इस विशाल सृष्टी के रंगमंच का 
जीवन बिम्ब है , कण है .
अंतरिक्ष में ग्रह, नक्षत्र , और सितारे हैं 
शब्द टूटे - बिखरे हमारे हैं
इस नाटक का यहीं पटाक्षेप
नहीं कोई
अगली किश्त , अगली खेप .

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
    भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
    बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut bhavbhari kavita .aapke blog par pahli bar aakar achchha laga .mere blog ''kaushal'' par aapka hardik swagat hai .

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी लगी अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  4. कुरेद - कुरेद कर वृक्ष की त्वचा पर उकेरे
    मिलने की तिथी
    भग्न अवशेषों में
    जीवन वृतांत की वीथी
    अग्निकुण्ड में स्वाहा हो गए
    मंत्रोच्चार के सप्तपदों के साथ

    शब्द टूटे बिखरे ..... अजीब सी कशमकश छोड़ गए .

    जवाब देंहटाएं

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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