15 जून 2010

एक पूरा शहर

हवा में रिसी गैस 
रातों रात एक शहर को 
शमशान कर गई .
अफवाहों , टेलीफोन ,
अधकचरी खबरों के सहारे कटी रात .
आधी रात .
बंद कर गई दरवाज़े , खिड़कियाँ , और दिमाग .
चंद लोग  
जूझते रहे ,
करते रहे ,
मौत से ,
दो दो हाथ .
पूरा शहर ,
एक पूरा शहर ,
नींद में ,
एक जुलूस की तरह ,
भागता रहा इधर उधर .
अगली सुबह 
गुजरी 
गिनती लाशों ,
बुझती आँखों ,
और पसरे सन्नाटे को तोड़ती खांसी में .
एक अफवाह ने 
पेट्रोल पम्प पर लगी 
पूरी लाइन को
बेतरतीब भगा दिया .
अगली सुबह 
एक पूरा शहर तड़ीपार हो गया ज्यों .
जहाँ लोग अपनी ही परछाई से डरते हों ,
जहाँ लोग रिस रिस के मरते  हों ,
एक अस्पताल से दूसरे ,
एड़ियाँ घिसते हों ,
जहाँ गिद्ध भी उतरने से ,
ठिहरते हों ,
ऐसे शहर में कानून और व्यवस्था का डर ?
एक मुहावरा या एक घिनौना मजाक .
फिर मुनादी हुई ,
टैंक खाली होगा .
लोग शहर छोड़ दें ,
और जो नहीं जा सकते स्टेडियम में ठहरें ,
भोजन बनेगा , तम्बू लगेगा ,
हेलीकाप्टर से जल का छिडकाव होगा .
छलावा, नाटक , प्रहसन ,
भौंडापन .
कोई नहीं जुटा.
खाली था पूरा शहर .
गिनती के लिए भी नहीं थी जिंदगी .
उंगलियाँ मौत गिन कर थक चुकीं थीं .
फिर कई दिनों बाद ,
हुआ संस्कृति का पाखंड ,
विश्व कवि सम्मेलन.
कहा गया - मरे हुए लोगों के साथ 
मरा नहीं जा सकता .
एक पूरा शहर चुप था .
एक पूरा देश चुप है .
कविता जिन्दा है ,
आदमी मर गया .

3 टिप्‍पणियां:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...