बहुत दिनों के बाद
एक भूली बिसरी याद
जीवन की सरिता को खंगाल गयी ,
मटमैला हो गया जीवन .
विस्मृत स्मृतियों की भीनी फुहार
भिंगो गयी मन की कंदराओं के द्वार ;
दबी अनुभूतियाँ , अनकहे संवाद ,
छिन्न-भिन्न कर टूट गया बाँध ;
कट गए तटबंध शिथिल,
विप्लव प्लावित हुआ मन.
मटमैला हो गया जीवन .
कर्पूर सी सहेजी स्मृतियाँ
औ ' चिरैय्या के चूजे ;
छोड़ गए तिनकों का घोसला,
चुग दाना उड़ गए गगन में ;
गोधूलि वेला में फंसा
अपने जाल निषाद यौवन .
मटमैला हो गया जीवन .
अब नहीं उगती कोंपले, बौराता वन,
जलता पलाश से जंगल ;
पारस की तलाश में
व्यय विनिमय सकल ;
थक गया पथिक , यात्रा अधूरी
शेष समर विधवा क्रंदन .
मटमैला हो गया जीवन .
बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंजलता पलाश से जंगल ;
जवाब देंहटाएंपारस की तलाश में
व्यय विनिमय सकल ;
थक गया पथिक , यात्रा अधूरी
शेष समर विधवा क्रंदन .
मटमैला हो गया जीवन .
शब्दावली और रचना दोनों आपकी कलम हुनर दिखाती हैं ......!!
Good one.
जवाब देंहटाएंAnurag