16 जून 2010

होली बिना लाग लपेट

माप - बाट नहीं तौला,
होली बिना लाग लपेट 
रंगों से खेला .
जीवन जैसा मिला ,
वैसा जिया .
हुरियारों की टोली संग ,
गली मोहल्ले डोला ,
खाई भंग ,चढ़ी तरंग ,
नहीं उतरा अब तक ,
मन चढ़ा रंग .
अपने बच्चे 
डर डर के लगाते हैं ,
माथे पर गुलाल ,
हरा , गुलाबी , अबीर लाल .
नहीं होते रंगों से तर बर,
बालों में नहीं डाला कभी 
आँख बचा , छुप कर ,
चुटकी भर रंग ,
नहीं रंग डाला किसी को ,
अपने रंग में .
गाया नहीं होरी में गीत ,
गला फाड़ फगवा ,
फाड़ा नहीं कुरता ,
खोली नहीं धोती ,
सजाया नहीं स्वांग ,
बनाया नहीं किसी को होली का राजा .
निकाली नहीं मस्तानों की बारात,
मय गाजा बाजा .
पिचकारी लिए ,
नहीं खेली आँख मिचोली है,
नहीं बोला - बुरा ना मानो होली है.
अल्हड़ उल्लास, मदमस्त परिहास .
पूरा का पूरा शहर , पूरा मोहल्ला ,
साथ खेलता था रंग , साथ छुड़ाता था ,
बैठ कर पक्के घाट.
दाऊ के मंदिर में होती थी 
दही हांड़ी की लूट,
रास में झूम कर नाचता था भर पूर.
शाम को मिलना- मिलाना  होली  .
खाना सबके घर तरह तरह की गुझिया.
हमने ऐसे जिया .
माप - बाट नहीं तौला,
होली बिना लाग लपेट 
रंगों से खेला .

2 टिप्‍पणियां:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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