16 जून 2010

रचना के बीच अंतराल

अन्यमनस्क मन ,
कई-कई दिन ,
खोजता है एक रचना ,
जीवन में .
बहुत दिनों तक सुनता है कोयल का गान ,
ढूंढता  है अतीत का एक प्रणय - प्राण ,
बुजूर्गों के सुनाये किस्से ,
पाठ के रटे - रटाये हिस्से ,
किसी से किया हुआ  अनुबंध ,
एक भूला हुआ सम्बन्ध .
नदी के किनारे घंटों बिताये क्षण  ,
बाजार  में बिना उद्देश्य प्रहरों घूमते कदम ,
आँखों के आगे चलचित्र की तरह गुजरते जीवन के दृश्य ,
बहुत से खाके , बहुत से शब्द , और बहुत कम ,
- ऐसा सबके साथ हो , यह जरूरी नहीं -
एकांत के क्षण .
बजते हैं कानो में घंटों निनाद ,
मन में उमड़ते घुमते है आशा - विषाद,
बिम्ब - प्रतिबिम्ब शब्दों के , अर्थों के ,
खोजते  हैं जीवन का सच झूठ.
एक अनसुलझा प्रश्न , एक त्रिशंकु उत्तर .
परिहास , आंसू , उल्लास , क्रंदन .
आँखों में आशा , चेहरे पे मुस्कान ,
एक बसा हुआ शहर , एक मातमी वीरान .
दो रचनाओं के बीच 
अंतराल ,
कभी पल का ,
कभी सदी की तरह लम्बा .
कभी सुखी हुई नदी  की पतली धार,
कभी समुद्र अथाह .
बहुत विचलित कर जाता है ,
जीना दो रचनाओं के बीच .
गर्भ को ढोना,
सहना अपने अन्दर पलते 
अविकसित शिशु को
सींचना अपने रक्त से .
कभी कभी होता है अजूबा प्रकृति में .
एक साथ जन्म लेते है ,
जुड़वां .
हो जाती है दूगनी.
अभिलाषा .

2 टिप्‍पणियां:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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