एक शख्स जो भीड़ में अकेला लगा हो ,
ग़ज़ल में वैसा कोई मतला लगा हो .
संदूक से पुराने ख़त निकाले तो जैसे,
यादनगर में गाँव का मेला लगा हो.
शहर की बारिश में भींगना अच्छा लगा,
बदन में तपिश कहीं, कहीं नज़ला लगा हो.
अमूमन गाँव की नदी जब शहर आती है ,
रेले टूटते हैं , एक ज़लज़ला लगा हो .
्गज़ब की प्रस्तुति…………।दिल मे उतर गयी।
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