बहुत दिनों से
मौसम से बतियाता था
वो बूढा या बच्चा था
उसको हर बात सताती
क्यों फूलों के पंख झडे हैं
और हवा में धूल पसरी है
जुगनू में क्यों आग नहीं है
क्यों आकाश में बदरी है ?
अम्बर अगर बड़ी छतरी है
तो क्यों सर पर धूप चढी है
कलियाँ क्यों ना आँख मिलाती
किससे इतना शर्माती ?
दिन इतनी जल्दी क्यों ढल जाता है
उसको कहाँ की हडबडी है
ध्रूव तारा क्यों वहीं अटका है
पैरों में क्या जंजीर पड़ी है ?
चाँद दुल्हन क्या नई नवेली
जो बादल की ओट हो जाती
जब भी तारों की बारात गुजरती
क्या उनमे है रिश्तेदारी ?
और बदलिया क्या पायल पहने है
जब गुजरे है रुनझुन बाजे है
गुलमोहर क्या दुल्हा है
इतना क्यों हरसिंगार साजे है ?
पत्ते क्यों सब झर जाते हैं
इतन रूखापन क्या अच्छा है
लाल कोपले क्या फबती हैं
जैसे कोई नवजात बच्चा है
और रंगीनी तितली की देखो
सब फूलों पर सो जाती
क्यों तालाब का पानी मैला
मिट्टी इतना क्यों घुलमिल जाती
अब फिसली तब फिसली !वो बूढा या बच्चा था
उसको हर बात सताती
क्यों फूलों के पंख झडे हैं
और हवा में धूल पसरी है
जुगनू में क्यों आग नहीं है
क्यों आकाश में बदरी है ?
अम्बर अगर बड़ी छतरी है
तो क्यों सर पर धूप चढी है
कलियाँ क्यों ना आँख मिलाती
किससे इतना शर्माती ?
दिन इतनी जल्दी क्यों ढल जाता है
उसको कहाँ की हडबडी है
ध्रूव तारा क्यों वहीं अटका है
पैरों में क्या जंजीर पड़ी है ?
चाँद दुल्हन क्या नई नवेली
जो बादल की ओट हो जाती
जब भी तारों की बारात गुजरती
क्या उनमे है रिश्तेदारी ?
और बदलिया क्या पायल पहने है
जब गुजरे है रुनझुन बाजे है
गुलमोहर क्या दुल्हा है
इतना क्यों हरसिंगार साजे है ?
पत्ते क्यों सब झर जाते हैं
इतन रूखापन क्या अच्छा है
लाल कोपले क्या फबती हैं
जैसे कोई नवजात बच्चा है
और रंगीनी तितली की देखो
सब फूलों पर सो जाती
क्यों तालाब का पानी मैला
मिट्टी इतना क्यों घुलमिल जाती
कितने सारे फूल खिले हैं
जैसे सजा कोई छैला
सब अपनी में उलझें हैं
गिरगिट भी घिघियाता है
मेंढक अपनी ही टरियाता है
इतनी भीड़ नहीं अच्छी है
तबीयत अपनी घबराती है
जुगनू मेरी कहाँ सुनता है
बस अपनी भिनियाता है .
पंछी घास पर सो जाते
सूखे पत्ते पैरों से रौंदे जाते
आंधियां सब उड़ा कहाँ ले जातीं
उसकी अपनी भी क्या कोई बरसाती ?
गर्मी इतना क्यों सताती ?
नींद रात भर खो जाती
रात सखा दीवार छिपकली
जैसे सजा कोई छैला
सब अपनी में उलझें हैं
गिरगिट भी घिघियाता है
मेंढक अपनी ही टरियाता है
इतनी भीड़ नहीं अच्छी है
तबीयत अपनी घबराती है
जुगनू मेरी कहाँ सुनता है
बस अपनी भिनियाता है .
पंछी घास पर सो जाते
सूखे पत्ते पैरों से रौंदे जाते
आंधियां सब उड़ा कहाँ ले जातीं
उसकी अपनी भी क्या कोई बरसाती ?
गर्मी इतना क्यों सताती ?
नींद रात भर खो जाती
रात सखा दीवार छिपकली
umra se pare akela aadmi yun hi kuch kuch kahta hai...
जवाब देंहटाएंइतनी भीड़ नहीं अच्छी है
तबीयत अपनी घबराती है
जुगनू मेरी कहाँ सुनता है
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंपंछी घास पर सो जाते
जवाब देंहटाएंसूखे पत्ते पैरों से रौंदे जाते
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
bahut pyari kavita.
जवाब देंहटाएंरात सखा दीवार छिपकली
जवाब देंहटाएंक्या बात है..
कितने सारे प्रश्न .... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंऐसे ही प्रश्न और उनके उत्तरों खी खोज बनाती है कविता ।
जवाब देंहटाएंचाहे बचपन का कुतूहल हो या बुढ़ापे का अनुभव दोनों के प्रश्न अनंत और वही । बहुत अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंगूगल ने पहले तो ये पोस्ट ही हटा दी थी , और जब वापिस आयी तो बहुत से कमेंट्स गायब हैं . ऐसा अनुभव और लोगों का भी हो सकता है . शायद यह भी अनुभव और तकनीक युग का यथार्थ है .इस पोस्ट पर से तीन टिप्पणी गायब हैं . पर मेरे पास सुरक्षित हैं .
जवाब देंहटाएंhttp://www.blogger.com/profile/14755956306255938813
जवाब देंहटाएंumra se pare akela aadmi yun hi kuch kuch kahta hai...
इतनी भीड़ नहीं अच्छी है
तबीयत अपनी घबराती है
जुगनू मेरी कहाँ सुनता है
http://www.blogger.com/profile/00019337362157598975
सुन्दर रचना।
http://www.blogger.com/profile/09549481835805681387
पंछी घास पर सो जाते
सूखे पत्ते पैरों से रौंदे जाते
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
आदरणीय,
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही इतने भोले-भाले पृश्न किसी गैर सांसारिक बूढ़े के हो सकते हैं या प्यारे से बच्चे के,
आज के सफल व्यक्ति के तो नहीं हो सकते , उसके दिमाग में आ ही नहीं सकते-
ये तो उसी के दिमाग में आ सकते हैं जो तितली को-- तितली आओ -- कह कर बुलाता है और हथेली फैला देता है,तितली उसकी नन्हीं सी हथेली पर बैठ जाती है तो उसके दिमाग में हथेली बंद करने की दुनियादारी की चालाकी अभी पैदा नहीं हो पाई है और कोई बूढ़ा भी हो सकता है जिसने अपने सारे नाते रिश्तों को काटकर , मां बाप को गांव भेजकर, समाज से कटकर, दिन रात अपने बच्चों का कैरियर बनाने में लगाया हो – बच्चे आईआईटी से डिग्री के साथ पत्नी अथवा पति भी लेकर पहुंचे हों और अगले महीने अमेरिका गए और अभी तक नहीं लौटे- इतना बलात् सात्विक चिंतन का सा शमसान बैराग्य उसे हो सकता है- रोजमर्रा की भागमभाग वाले को तो नहीं- उसे तो पता ही नहीं चलता कि वह कब 25 से 55 का हो गया ।
वाह- जुगनू में क्यों आग नहीं है—आपके भोले कवि को प्रणाम एवं बधाइयां
डॉ रावत
http://urvija.parikalpnaa.com/2011/05/blog-post_24.html?spref=fb
जवाब देंहटाएंaapki kavitayen bata rahi hai ki aap ek sudhridh kavi ho...:)
जवाब देंहटाएंbahut pyari si rachna...
अतुल जी काव्य की एक बेमिसाल यात्रा , आपका समर्थक बनना चाहूँगा जिससे इन बूंदों में भीगता रहूँ आभार
जवाब देंहटाएंप्रश्न प्रश्न प्रश्न .... बच्चे के चरित्र समान रचना ... उठ कर परिपक्वता तक जाती है ....लाजवाब काव्यमय प्रवाह ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब लाजवाब लाजवाब
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