कर रहा हूँ
तलाश ईश्वर की .
उसने स्वर्ग को नकार कहा -
वह है परी - कथा .
नहीं, यह नहीं है मेरी व्यथा .
कुछ ने कहा -
ईश्वर का अस्तित्व नहीं है
मैं नहीं तलाश रहा
ईश्वर को
किसी प्रमाण के लिए .
ना मुझे करनी है प्रार्थना
न चाहिए कोई वर
मुझे उससे कोई शिकायत नहीं करनी
न दूसरों की न अपनी
मैंने चढ़ावे के लिए नहीं रखी है चवन्नी
वो तो मैं लंगड़े भिखारी को दे चुका.
आकार और निराकार का फर्क नहीं देखना , दिखाना
मुझे उसके अवतारों और दूतों का पता नहीं लगाना
मैं किसी सत्य और असत्य के विवाद में नहीं पड़ा
किसी इंसान या शैतान का नहीं झगडा
मैंने किसी गुरु की नहीं लेनी शरण
मुझे नहीं चाहिए धर्मग्रंथों के निर्देशों का प्रमाणीकरण
मैं नहीं किसी लिंग , जाति, देश , भाषा, संस्कृति का प्रचारक
किसी की संस्तुति में लिप्त या वाचक .
मैं तलाश रहा हूँ ईश्वर को
सिर्फ पूछना है -
अगर वह सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी ,अन्तर्यामी है
तो बताये
सृष्टी - जिसकी भी बनाई हो
उसमे कोई और जगह तो है
धरती के अलावा .
जहाँ जाकर रह लेंगे
अज्ञानी , ज्ञानी , विज्ञानी ;
धर्मांध , आस्तिक , नास्तिक ;
नेता , अभिनेता , राजा, प्रजा ;
वैज्ञानिक , कलाकार , ज्योतिष ;
व्यवसायी , उद्योगपति , भूखा , भिखारी ;
कर्महीन , मेहनती , लेखक , कवि;
जिस तरह से रौंदी जा रही है प्रकृति
उजड़ी जा रही है धरा
धुंए में सिसकती हैं सांसे
सुलगते हैं आच्छादित वन
सूखती जा रही हैं नदियाँ , तालाब, जलाशय
विलुप्त हो रही हैं जातियाँ-प्रजातियाँ
पिघलते जा रहे हैं हिमनद
फैलते जा रहे हैं रेगिस्तान
और बढ़ता जा रहा है तापमान
अगर नहीं है ऐसी कोई जगह
तो क्या फर्क पड़ता है
की मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक
ईश्वर है या नहीं
और इस प्रश्न का उत्तर
उसके पास भी है या नहीं
वो मुझे मिले या नहीं !
क्या फर्क पड़ता है ?
तलाश ईश्वर की .
उसने स्वर्ग को नकार कहा -
वह है परी - कथा .
नहीं, यह नहीं है मेरी व्यथा .
कुछ ने कहा -
ईश्वर का अस्तित्व नहीं है
मैं नहीं तलाश रहा
ईश्वर को
किसी प्रमाण के लिए .
ना मुझे करनी है प्रार्थना
न चाहिए कोई वर
मुझे उससे कोई शिकायत नहीं करनी
न दूसरों की न अपनी
मैंने चढ़ावे के लिए नहीं रखी है चवन्नी
वो तो मैं लंगड़े भिखारी को दे चुका.
आकार और निराकार का फर्क नहीं देखना , दिखाना
मुझे उसके अवतारों और दूतों का पता नहीं लगाना
मैं किसी सत्य और असत्य के विवाद में नहीं पड़ा
किसी इंसान या शैतान का नहीं झगडा
मैंने किसी गुरु की नहीं लेनी शरण
मुझे नहीं चाहिए धर्मग्रंथों के निर्देशों का प्रमाणीकरण
मैं नहीं किसी लिंग , जाति, देश , भाषा, संस्कृति का प्रचारक
किसी की संस्तुति में लिप्त या वाचक .
मैं तलाश रहा हूँ ईश्वर को
सिर्फ पूछना है -
अगर वह सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी ,अन्तर्यामी है
तो बताये
सृष्टी - जिसकी भी बनाई हो
उसमे कोई और जगह तो है
धरती के अलावा .
जहाँ जाकर रह लेंगे
अज्ञानी , ज्ञानी , विज्ञानी ;
धर्मांध , आस्तिक , नास्तिक ;
नेता , अभिनेता , राजा, प्रजा ;
वैज्ञानिक , कलाकार , ज्योतिष ;
व्यवसायी , उद्योगपति , भूखा , भिखारी ;
कर्महीन , मेहनती , लेखक , कवि;
जिस तरह से रौंदी जा रही है प्रकृति
उजड़ी जा रही है धरा
धुंए में सिसकती हैं सांसे
सुलगते हैं आच्छादित वन
सूखती जा रही हैं नदियाँ , तालाब, जलाशय
विलुप्त हो रही हैं जातियाँ-प्रजातियाँ
पिघलते जा रहे हैं हिमनद
फैलते जा रहे हैं रेगिस्तान
और बढ़ता जा रहा है तापमान
अगर नहीं है ऐसी कोई जगह
तो क्या फर्क पड़ता है
की मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक
ईश्वर है या नहीं
और इस प्रश्न का उत्तर
उसके पास भी है या नहीं
वो मुझे मिले या नहीं !
क्या फर्क पड़ता है ?
wah bahut hi sunder shabdon main likhi shaandaar rachanaa,dil ko choo gai.badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंअगर नहीं है ऐसी कोई जगह
जवाब देंहटाएंतो क्या फर्क पड़ता है
की मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक
ईश्वर है या नहीं
और इस प्रश्न का उत्तर
उसके पास भी है या नहीं
वो मुझे मिले या नहीं !
क्या फर्क पड़ता है ?... phir fark hone ko rah kya jata hai, bahut sashakt abhivyakti
शनिवार (१८-०६-११)आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ...नयी -पुरानी हलचल पर ..कृपया आईये और हमारी इस हलचल में शामिल हो जाइए ...
जवाब देंहटाएंवाह वाह कितनी आसानी से इतने बड़े सवाल की खोज लिखी है आपने एक दम सत्य है धरा उजड़ने के बाद इश्वर मिल भी जाये तो क्या हो
जवाब देंहटाएंधरती की व्यथा को बखूबी शब्द दिए हैं ,
जवाब देंहटाएंअगर नहीं है ऐसी कोई जगह
जवाब देंहटाएंतो क्या फर्क पड़ता है
की मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक
ईश्वर है या नहीं
बहुत सुंदर, क्या बात है
अगर नहीं है ऐसी कोई जगह
जवाब देंहटाएंतो क्या फर्क पड़ता है
की मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक
कुछ अनसुलझे सवालों का उत्तर मांगती यह रचना रचना की विशेषता अंत तक बांधें रखना , बधाई की सीमा से बाहर ....
Anupama jee - Halachal ke liye dhanyavad. Par is par aapke vichar kee pratiksha rahegi
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसी बातों का उत्तर किसी के पास नहीं होता ... बस समय की पास होता है .. या मानने और न माने पर होता है ...
जवाब देंहटाएंईश्वर के हाथ का एहसास हो यही बहुत है।
जवाब देंहटाएंक्या फर्क पड़ता है कि ईश्वर है या नहीं है!
जिस तरह से रौंदी जा रही है प्रकृति
जवाब देंहटाएंउजड़ी जा रही है धरा
धुंए में सिसकती हैं सांसे
सुलगते हैं आच्छादित वन
सूखती जा रही हैं नदियाँ , तालाब, जलाशय
विलुप्त हो रही हैं जातियाँ-प्रजातियाँ
पिघलते जा रहे हैं हिमनद
फैलते जा रहे हैं रेगिस्तान
और बढ़ता जा रहा है तापमान
आपका चिंतन जायज़ है ...
पर क्या मनुष्य स्वयं ही ज़िम्मेदार नहीं है ..धरा की इस हालत के लिए...?
बहुत सार्थक रचना है ...
ईश्वर के प्रति इतनी बेरुखी ?
जवाब देंहटाएंआपको कोई डर नहीं है ईश्वर का ?
जब आपदा आती है,बुढ़ापा, बिमारी और मृत्यु
घेरती है,डर से ईश्वर की तरफ उन्मुख होता है
मनुष्य. या फिर गौतम बुद्ध की तरह खोज करने
निकल पड़ता है.क्या फरक पड़ता है.
दिल को समझाना ही तो है.
स्थाई चेतन आनंद की खोज में मनुष्य भटकता ही
रहता है.इसी का नाम 'सत्-चित-आनंद' ईश्वर भी कहा गया है.
आनंद हर किसी को चाहिये अस्थाई नहीं स्थाई,अचेतन नहीं चेतन.
अब सोचिये ईश्वर मिल गया तो क्या फर्क पड़ता है.
आपने सुन्दर अभिव्यक्ति की है,