हमारे शहर का हाल भीगा भीगा है ,
गीला गीला उसकी आँखों में तारा .
तुम्हारे ख़त के अक्षर धुंधले धुंधले
मोती का पानी अब उतरा उतरा .
सूरज का नूर छुपा है बादल में,
अब झांके तब झांके काला-गोरा .
बूढ़े बरगद के नीचे सिमटा जंगल ,
प्लावन में दुबका सहमा हर चेहरा.
कभी गर्मी की लू सताती है उसको,
कभी बारिश में वो बिफरा बिखरा .
घुटने घुटने पानी तेरी गलियों में
कागज की कश्ती सहरा सहरा .
यादों के बादल जब मन में घुमड़े ,
गीली लकड़ी , धुआं गहरा गहरा .
लम्बी भीगी रातों में ऐसा होता है ,
गर्म लिहाफों में रिश्ता ठहरा ठहरा.
जब जवाँ दरिया हो उफान पर ,
टूट जाता हर बांध कतरा-कतरा .
यादों के बादल जब मन में घुमड़े ,
गीली लकड़ी , धुआं गहरा गहरा .
लम्बी भीगी रातों में ऐसा होता है ,
गर्म लिहाफों में रिश्ता ठहरा ठहरा.
जब जवाँ दरिया हो उफान पर ,
टूट जाता हर बांध कतरा-कतरा .
बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।
जवाब देंहटाएंक्या बात है.. बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंyaadon ke badal aur gili lakdi aur dhuaan ... gahra bimb upasthit kiya hai
जवाब देंहटाएंनई तरह की ग़ज़ल ,नए अंदाज़ में पढ़ाने के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंBahut Khoob likha aur kha! Well said Trivedi ji. Yuhi likhte rahiye.
जवाब देंहटाएंGladly following your blog. You may like to follow mine.
Here's my popular post & video http://www.youtube.com/watch?v=B1BV8IoLeqM
खूबसूरत और भीगी भीगी सी रचना ..
जवाब देंहटाएं