22 जून 2011

बारिशों के मौसम में

हमारे शहर का हाल भीगा भीगा है ,
गीला गीला उसकी आँखों में तारा .

तुम्हारे ख़त के अक्षर धुंधले धुंधले 
मोती का पानी अब उतरा उतरा .

सूरज का नूर छुपा है बादल में, 
अब झांके तब झांके काला-गोरा .

बूढ़े बरगद के नीचे सिमटा जंगल ,
प्लावन में दुबका सहमा हर चेहरा.


कभी गर्मी की लू सताती है उसको,
कभी बारिश में वो बिफरा बिखरा .

घुटने घुटने पानी तेरी गलियों में
कागज  की कश्ती सहरा सहरा .


यादों के बादल जब मन में घुमड़े  ,
गीली लकड़ी , धुआं गहरा गहरा . 


लम्बी भीगी रातों में ऐसा होता है ,
गर्म लिहाफों में रिश्ता ठहरा ठहरा.


जब जवाँ दरिया हो उफान पर ,
टूट जाता हर बांध कतरा-कतरा .



6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।

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  2. yaadon ke badal aur gili lakdi aur dhuaan ... gahra bimb upasthit kiya hai

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  3. नई तरह की ग़ज़ल ,नए अंदाज़ में पढ़ाने के लिए धन्यवाद !

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  4. Bahut Khoob likha aur kha! Well said Trivedi ji. Yuhi likhte rahiye.
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आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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